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छावा के बाद की की कहानी आपको अवश्य जाननी चाहिए

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
छावा के बाद…
सन 1689 ई में छत्रपति सम्भूजी महाराज की मृत्यु के बाद औरंगजेब की सेना ने रायगढ़ के किले पर आक्रमण किया और सम्भूजी महाराज की पत्नी यशुबाई, उनके पुत्र शाहूजी महाराज, शाहूजी की पत्नी सावित्री बाई, और शाहूजी के सौतेले भाई मदन सिंह कैद कर लिए। इस समय शाहूजी की आयु सात वर्ष थी।

इधर शिवाजी महाराज के दूसरे बेटे राजाराम को छत्रपति बनाया गया। उनके लिए राजमुकुट कांटो का ताज ही रहा, वे लगातार मुगलों से संघर्ष करते रहे। उन्होंने अपने बड़े भाई संभाजी की क्रूरतापूर्ण हत्या का प्रतिशोध लेने और भतीजे शाहूजी को मुक्त कराने का प्रण लिया था, और वे सदैव इस कार्य में लगे रहे। सन्ताजी घोड़पडे जैसे योद्धाओं के बल पर उन्होंने मुगलों को भयानक चोट दी, पर शाहूजी को मुक्त कराना सम्भव नहीं हुआ। 1700 ई. में उनकी भी मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र शिवाजी द्वितीय छत्रपति बने, और उन्होंने भी मुगलों से संघर्ष जारी रखा…

सन 1707 में जब औरंगजेब की मृत्यु हुई, तब उसके उत्तराधिकारी बहादुरशाह प्रथम ने शाहूजी को रिहा कर दिया। क्यों? इसलिए, ताकि शाहूजी जब लौट कर सतारा पहुँचे तो उत्तराधिकार के लिए मराठे आपस में ही लड़ पड़ें।

शाहूजी सतारा आये, छत्रपति की गद्दी पर बैठे शिवाजी द्वितीय से हल्का विवाद भी हुआ, लेकिन अंततः पांचवे छत्रपति के रूप में उनका राज्याभिषेक हुआ। शिवाजी द्वितीय सतारा से अलग कोल्हापुर चले गए और वहाँ एक अलग राज्य स्थापित किया। पर यशुबाई? सावित्रीबाई? वे अब भी मुगलों की कैद में थीं। बहादुरशाह ने उन्हें बंधक रखा था, ताकि मुगल कैद से रिहा हुए शाहूजी संधि के नियमों का उलंघन न करें…

मराठा साम्राज्य में यहाँ एक बड़ा परिवर्तन हुआ। पेशवाई आई बालाजी विश्वनाथ के हाथों में, और उन्होंने तय किया कि अब से छत्रपति युद्ध में भाग नहीं लेंगे। उनके लिए युद्ध पेशवा लड़ेंगे, रक्त पेशवा बहाएंगे, छत्रपति को किसी युद्ध में जाने की आवश्यकता नहीं…

1713 में बालाजी विश्वनाथ पेशवा बने तब उनके सामने दो चुनौतियां थीं। एक तो मुगल, और दूसरा कोल्हापुर का मराठा राज्य! इन दोनों मोर्चों पर एक साथ कूटनीतिक तरीके से लड़ता और विजयी होता वह चित्तपावन अपने पुत्र बाजीराव के साथ 1718 में पहुँचा दिल्ली!

कुछ मराठों की मार और कुछ आपसी तकरार के कारण डगमग चल रही मुगल सत्ता का गिरेबान पकड़ कर पेशवा ने अपनी शर्तें मनवाई। दक्षिण के मुगल प्रान्तों से चौथ और सरदेशमुखी(टैक्स) वसूलने का अधिकार! इतना ही नहीं, गुजरात भी। और मुगल दरबार द्वारा शाहूजी को छत्रपति के रूप में स्विकार्यता… और? और पुत्रवधु समेत राजमाता यशुबाई की मुक्ति…

लगभग 30 साल तक मुगल कैद में रहने के बाद यशुबाई मुक्त हुईं, और उन्हें मुक्ति दिलाने वाले थे पेशवा बालाजी विश्वनाथ! बाजीराव बल्लाळ!
छावा की कहानी यहाँ पूरी होती है।

साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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