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ग़ज़वा और मुनाफ़िक़ के बारे में आपको जानना चाहिए

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India: Rajkamal Goswami:
ग़ज़वा उन छोटी बड़ी जंगों को कहते हैं जिनमें पैग़ंबर ने ख़ुद हिस्सा लिया । मुनाफ़िक शब्द़ उन मुसलमानों के लिये इस्तेमाल होता है जो भय या प्रलोभन के कारण मुसलमान तो हो गये लेकिन दिल से अभी भी इस्लाम के विरुद्ध थे ।

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क़ुरान की कुल ११४ में ८२ सूरा: मक्का में अवतरित हुईं किंतु किसी में भी जिहाद या मुनाफ़िक़ शब्द का उल्लेख नहीं है। स्पष्ट है कि मक्का में रहते हुए मुसलमान मक्का के क़ुरैशों से जंग करने की स्थिति में नहीं थे और जो लोग मक्का में रहते हुये मुसलमान बने थे उनमें कोई भी मुनाफ़िक़ नहीं था । मदीना में पैग़ंबर के नेतृत्व में इस्लामी रियासत बनने के बाद ही आस पास के क़बीलों में इस्लाम के प्रचार और राज्य विस्तार के लिये ग़ज़वा शुरू हुये और बहुत से ऐसे लोग इस्लाम में घुस गये जो मृत्यु या ग़ुलामी के भय से मुसलमान हो गये थे । इस्लाम का सामान्य युद्ध नियम था कि ग़ैर मुस्लिम युद्धबंदियों को तथा कब्ज़े में आई महिलाओं और बच्चों को ग़ुलाम बना लिया जाता था और इन पर सख़्त निगरानी रखी जाती थी ।
जंग ए ख़ंदक में मुसलमानों को धोखा देने के कारण तथा संधि भंग करने के कारण मदीना में रहने वाले यहूदी क़बीले बनू नज़ीर के सभी युवा मर्दों को युद्ध बंदी बनाने के बाद मृत्यु दंड दे दिया गया । इसके बाद मुसलमानों का रौब और आतंक आस पास के अरब क़बीलों में छा गया । ग़ज़वा ए फ़दक में तो बिना लड़े ही फ़दक वालों ने आत्मसमर्पण कर दिया ।

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मक्का पर संभवत: जन्मभूमि होने के कारण पैग़ंबर की विशेष मेहरबानी रही । मक्का विजय में भी कोई रक्तपात करने की ज़रूरत नहीं पड़ी । मक्का वालों ने मुसलमानों पर सबसे ज़्यादा ज़ुल्म किये थे । उहुद की जंग से पहले मक्का की प्रतिष्ठित घराने की महिला हिंद ने मुसलमान योद्धा और पैग़ंबर के चाचा हम्ज़ा का कलेजा खाने की क़सम खाई थी और अपनी यह क़सम उसने पूरी भी की । पैग़ंबर ने हम्ज़ा की शहादत के बाद उन्हें सैयदुश्शुहदा की उपाधि से अलंकृत किया था । मक्का विजय के बाद हिंदा को भी मुआफ़ कर दिया गया । आगे चल कर इसी हिंदा और अबू सूफ़ियान का बेटा मुआविया इस्लामी अंत:कलह का केंद्रबिंदु बना ।

मुनाफ़िक पैग़ंबर की चिंता का विषय अंत तक बने रहे । मुनाफ़िकों की वजह से पैग़ंबर को तबूक का अभियान बीच में छोड़ना पड़ा । तबूक से लौटते समय ही क़ुरान की अंतिम बड़ी सूरा: अल तौबा अवतरित हुई जिसमें जिहाद के बारे में विस्तृत निर्देश दिये गये हैं ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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