योग्यता पिट जाती है आरक्षण तोड़ता बहुत है
एक ग़ज़ल दयानंद पांडेय की कलम से।
Positive India:Dayanand Pandey:
योग्यता पिट जाती है आरक्षण तोड़ता बहुत है,
मेरिट मार खाती है तो लड़का टूटता बहुत है।
जुबां ख़ामोश रहती है दिल चीख़ता बहुत है,
हारा हुआ आदमी बोलता कम टूटता बहुत है।
जातियों का भस्मासुर अब बड़ी गांठ हो गई,
राजनीति का रेगिस्तान अब तोड़ता बहुत है।
रोटी दाल के युद्ध में कभी बोली नहीं निकलती,
जुगाड़ के रथ पर बैठा आदमी बोलता बहुत है।
स्वार्थ जब जागता है तो माता पिता भूल जाते हैं,
संवेदना सूख जाती है तो रिश्ता छूटता बहुत है।
आज कल लोग अभिनेता हैं समझना मुश्किल,
अब बच्चा भी टी वी देख कर सीखता बहुत है।
ख़ुद के पैसे से घूमने में तारे दिखने लगते हैं,
हराम का पैसा हो तो आदमी घूमता बहुत है।
गांव में अब गोबर काछने का भी काम नहीं,
दूध दही घी हुआ सपना बच्चा रूठता बहुत है।
साभार:दयानंद पांडेय