Positive India:Kumar S:
ये बिरादरी भी विचित्र है।
इनकी नजर में हिन्दू कोई चुन्नू मुन्नू टाइप एलकेजी का बच्चा है और ये एकेडमिक प्रोफेसर जन्मजात ठेका लिए हिन्दुओं को पढ़ाने की ड्यूटी पर है।
ये लोग खुद ही एक दूसरे की रिपोर्ट शेयर कर, परस्पर गढ़े हुए आंकड़ों को आधार बनाकर, कपोल कल्पित भविष्यवाणियों के बल पर, स्वयं की स्थापित परिभाषाओं की जुगाली करते हुए बड़ी बड़ी बातें करते हैं।
इनका एक बहुत प्रसिद्ध तर्क है “आप कार से 4 लोग जा रहे हैं, 3 सिगरेट पीना चाहते हैं पर एक नहीं। वे इसका फैसला वोटिंग से करते हैं और सिगरेट पीने वाले जीत जाते हैं। यह कोई डेमोक्रेसी नहीं बल्कि स्टुपिडेन्स है!”
इस तरह ये डेमोक्रेसी को नकारते हैं।
दरअसल ये कहना चाहते हैं कि मेजोरिटी डेमोक्रेसी के नाम पर माइनॉरिटी को सताती है।
विगत 75 वर्षों से इस तर्क के सहारे इन्होंने माइनॉरिटी को इतना सर चढ़ा रखा है और मेजोरिटी को इतना अपराधबोध से भर दिया है कि इनकी बौद्धिक जुगाली कइयों को सही लगती है।
वस्तुतः ये यह नहीं देख रहे हैं कि मेजोरिटी में है कौन?
ईरान में क्या हुआ था?
ईरानी क्रांति से पूर्व इन्हीं कम्युनिस्टों ने रेडिकल इस्लाम को खूब समर्थन दिया, उनके पक्ष में प्रचार कर उदारवादी ईरान में सत्ता पलट करवा दिया और वहाँ खुमैनी का कट्टरपंथी इस्लाम काबिज हो गया।
कट्टरपंथियों ने ईरान में सबसे पहले उन्हीं कम्युनिस्टों को चुन चुनकर समाप्त कर दिया और कहीं कोई चूं तक नहीं हुई।
जब भी कोई कम्युनिस्ट इस्लाम के फेवर वाली किसी क्रांति की बात करता है, वस्तुतः वह एक सुसाइड मिशन पर होता है।
बस नुकसान यह है कि ये स्वयं मरने से पहले कइयों मासूमों की जान ले लेते हैं।
#कुमारsचरित
साभार: कुमार एस-(ये लेखक के अपने विचार हैं)