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भारतीय मदद के बावजूद क्या तुर्की अब भारतीय मुसलमानों पर डोरे डालना छोड़ेंगा?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
तुर्की अब भारतीय मुसलमानों पर डोरे डालने वाला तीसरा देश हो गया है । सऊदी अरब के पेट्रों डॉलरों और वहाबी विचारधारा नें भारत के गाँव गाँव में भारतीय इस्लामी वास्तुकला को मदीना की मस्जिद की नकल और हरे रंग का रोज़ा बना कर रख दिया था । अरब के डॉलर और पाकिस्तान के बेरोज़गारों ने मिलकर भारत के मुसलमानों का ब्रेनवॉश करने का अभियान चला रखा था ।

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मुस्तफा कमाल पाशा के धर्मनिर्पेक्ष तुर्की को एर्दोगन ने अब पूरी तरह रैडिकलाइज़ कर दिया है । जैसे अकबर की सुलह कुल नीति को उसकी दो पीढ़ी बाद ही औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया लगभग वही काम एर्दोगन तुर्की में कर रहे हैं । और करें भी क्यों न ? ख़िलाफ़त का असली वारिस तो तुर्की ही रहा है , उसके रहते मुल्ला उमर और बग़दादी जैसे ऐरा ग़ैरा नत्थू ख़ैरा चार पटाख़े छोड़ कर ख़ुद को ख़लीफ़ा घोषित कर दें और तुर्की जो नाटो का मेम्बर है , अच्छी ख़ासी मजबूत सेना है , हौसले ऐसे कि रूस का फाइटर हमला कर के गिरा दिया , वह तुर्की इन टटपूँजियों को ख़लीफ़ा तसलीम कर ले ये तो बड़ी नाइंसाफी है । आख़िर तुर्की की ख़िलाफ़त को बचाने के लिये हिंदुस्तानी मुसलमानों ने मालाबार में क़त्ले आम किया , हिंदुस्तान को दारुल हर्ब घोषित करवा के लाखों मुसलमान अफ़ग़ानिस्तान को हिजरत कर गये । हिंद के मुसलमानों ने तुर्की के पक्ष में इतना दंगा किया कि आख़िरकार मुल्क तकसीम हो गया ।

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टीपू सुल्तान ने तुर्की के उस्मानी ख़लीफ़ा से अपने लिये सुल्तान का दर्जा हासिल किया था । तुर्की जानता है कि हिंदुस्तानी मुसलमानों में अपने हिंदी होने को लेकर भारी हीन भावना है । सऊदी तो इन्हें बेहद हिकारत की नज़र में देखता है । बरेलवियों के मज़ार पर सजदा करने वालों को तकलीफ पहुँचाने के लिये सऊदी अरब ने पैग़ंबर के परिवार और उनके साथियों की मजारें खोद कर मैदान कर दीं । शिया इमामों की भी कब्रें मिसमार कर दीं ।

तो जनाब एर्दोगन ने पाकिस्तान एसेंबली के अपने भाषण में ख़ूब लफ़्फ़ाज़ियाँ झाड़ीं । तैमूर और बाबर को अपना पूर्वज बताया । उनके दादे परदादों ने हिंदुस्तान जीता था तो असलीहक़ तो उन्हीं का है भारत और भारतीय मुसलमानों पर । कश्मीर पर पाक दावे का समर्थन किया । कुतुबुद्दीन ऐबक बलबन सब तुर्क थे इसलिये हिंदुस्तान तो तुर्की का ही है । लिहाज़ा सऊदी फंड से पाकिस्तान से हथियार ले कर सौ साल बाद फिर हिंदुस्तानी मुसलमान जिहाद करे । कष्मीर तो प्लेट में रख कर पाकिस्तान को सौंप दे ।

हम तो चाहते हैं कि तुर्की फिर से ख़लीफ़ा बने । इस्लामी देश एक साथ संगठित हों ताकि इनके पाखंड को लोग समझ सकें ।

तुर्की के राष्ट्रपति का पाकिस्तान एसेंबली में दिया गया भाषण केवल भारत को अपने रक्षाबलों को और अधिक मुस्तैदी से रखवाली करने के लिये प्रेरित करेगा ।
रिपोस्ट:
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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