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तो क्या तब भी यह माई नेम इज ख़ान का खिलौना बाज़ार में शेष रहेगा ?

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
तुम कितने अफजल मारोगे , हर घर से अफजल निकलेगा ! यह नारा तो याद ही होगा। इस बाबत ज्यूडिशियरी किलिंग का तंज और रंज भी याद ही होगा। अब वही रंग फिर जमा है और खेल फिर शुरु हो गया है। सेक्यूलरिज्म के कीड़े फिर रेशम बुनने लगे हैं। शाहरुख़ ख़ान पुत्र आर्यन ख़ान को ले कर। वही मुस्लिम विक्टिम कार्ड खेला जा रहा है। तो क्या माई नेम इज ख़ान वाली यातना ही है ? सचमुच ? वैसे इस हफ़्ते भर में किसिम-किसिम के बहाने बेटे को बचाने ख़ातिर शाहरुख़ ख़ान करोड़ो रुपए बहा चुके हैं। आर्यन को निर्दोष साबित कर छुड़ाने के लिए। और तो और नारकोटिक्स व्यूरो के आफिस के सामने फर्जी शूटिंग का स्वांग भर कर लगातार कैमरे आदि से वाच भी करते रहे हैं सब कुछ।

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जब कुछ नहीं चला तो कश्मीर से एक महबूबा हवा चली कि आर्यन ख़ान चूंकि ख़ान है इस लिए यह सब हो रहा है। गोया गोवा क्रूज़ पर वह ड्रग लेने नहीं , नमाज पढ़ने गया था। ग़ज़ब है। कश्मीर से चली यह हवा अब रफ़्तार पकड़ चुकी है। जाने क्या हमारे देश के मुसलामानों को यह बीमारी लग गई है। कि अफजल जैसों को आतंकी नहीं मुसलमान बता कर पेश किया जाता है। गोया वह मुसलमान थे इसी लिए आतंकी बता कर फांसी दी गई। ज्यूडिशियरी किलिंग की गई। तिस पर तुर्रा यह कि हर मुसलमान आतंकी नहीं होता और कि आतंक का कोई मज़हब नहीं होता। अस्सी चूहे खा कर हज पर जाने की कहावत और क़वायद ऐसे ही तो नहीं है।

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अज़हरुद्दीन जब इंडियन क्रिकेट टीम के कैप्टन बनाए गए तब वह मुसलमान नहीं थे। पर जब मैच फिक्सिंग में फंसे तो फ़ौरन वह मुसलमान बन गए। क्या कि वह अगर मुसलमान नहीं होते तो मैच फिक्सिंग में नहीं फंसते। यह कहते हुए वह यह भी भूल गए कि उन के साथ ही अजय जडेजा, मनोज प्रभाकर, निखिल चोपड़ा आदि भी उसी मैच फिक्सिंग में फंसे थे। पर मुसलमान होते हुए भी वह हिंदू संगीता बिजलानी से दूसरा विवाह रचा सकते हैं फिर उन्हें दुत्कार कर छोड़ सकते हैं। भारत की संसद में जा सकते हैं। यह बात वह भूल जाते हैं।

यह ठीक वैसे ही है जैसे दस साल लगातार उपराष्ट्रपति रहने के बाद हामिद अंसारी को देश में डर लगने लगता है। क्यों कि वह मुसलमान हैं। जो लोग क़ुरआन की आयत नहीं पढ़ पाते उन का कत्ल हो जाता है। कश्मीर में जिन की आइडेंटिटी कार्ड पर मुसलमान नाम नहीं दर्ज है , उन शिक्षकों को किनारे कर गोली मार दी जाती है। दवाई बेचने वाले को , गोलगप्पे बेचने वाले ग़रीब को भी सरे आम गोली मार दी जाती है , मुस्लिम आतंकियों द्वारा। पर उन्हें इस देश में डर फिर भी नहीं लगता। लेकिन धन-धान्य से परिपूर्ण मुंबई में रह रहे नसीरुद्दीन शाह , आमिर खान की तब की हिंदू बीवी को और शाहरुख़ ख़ान जैसों को यह देश डराने लगता है। यह ग़ज़ब का मुस्लिम डर है। कि आप मारें भी और डरें भी। और इस डरने का नैरेटिव रच कर आग भी मूतें।

तो क्या आर्यन ख़ान के साथ और भी जो लोग गिरफ़्तार हैं और अभी तक ज़मानत से महरुम हैं , उन में सारे मुसलमान ही हैं ? हिंदू नहीं हैं ? तो फिर यह ख़ान सरनेम का विक्टिम कार्ड कहां से आ गया है ? क्यों आ गया है ? निश्चित रुप से देश में अब आई पी सी में भी संशोधन का समय आ गया है। नहीं कभी धर्म के नाम पर कभी जाति के नाम पर विक्टिम कार्ड खेलना और नफ़रत के तीर चलाना देश के लिए भारी पड़ रहा है। इस पर तुरंत लगाम लगनी चाहिए। अपराध , अपराध होता है। हिंदू , मुसलमान नहीं होता है।

अच्छा कल को अगर आर्यन ख़ान को ज़मानत मिल जाती है , जैसी कि उम्मीद भी है तो क्या तब भी यह माई नेम इज ख़ान का खिलौना बाज़ार में शेष रहेगा ? या फिर कोई नया खिलौना पेशे खिदमत होगा। और जो ज़मानत में थोड़ी देर हो ही गई तो क्या कोई आज़म ख़ान की तरह संयुक्त राष्ट्र संघ में भी गुहार लगा बैठेगा ? वैसे एन सी बी ने तो आर्यन ख़ान के इंटरनेशनल ड्रग कनेक्शन के आरोप भी जड़ दिए हैं। जाने यह आरोप कोर्ट में कितना टिकेगा।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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