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क्या मुसलमान यह तय करेंगे कि देश के बहुसंख्यक हिन्दू सिक्ख ईसाई अपने धार्मिक उत्सव किस तरह मनाएंगे ?

- सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
पिछले कई दशकों से मुस्लिम नेतृत्व जयश्रीराम, वंदेमातरम और भारत माता की जय के उदघोष से अपनी भावनाओं के आहत होने, भड़कने की बात कर रहा है. इन उदघोषों को भड़काऊ नारे मानता रहा है। इनका विरोध करता रहा है। इसबार उनके इस विरोध का चरित्र और चेहरा हिंसक और हत्यारा हो चुका है। उनके इस चरित्र और चेहरे को पूरी दुनिया देख रही है।
“”अल्लाह सबसे बड़ा है,
मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं।
अल्लाह सबसे बड़ा है।
कोई इबादत के लायक नहीं सिवाय अल्लाह के।”

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देश की तीन लाख से अधिक मस्जिदों से प्रतिदिन 5 बार अजान के नाम पर उपरोक्त भड़काऊ संदेश देने वाले जब जयश्रीराम, वंदेमातरम और भारत माता की जय के उदघोष को भड़काऊ नारा कहते हैं तो केवल उनका दोहरा दोगला चरित्र ही बेनकाब नहीं होता, उनकी भारत विरोधी, हिन्दू विरोधी खतरनाक मानसिकता, उनके खतरनाक इरादे, उनका खतरनाक षड़यंत्र भी उजागर हो जाता है।
वो यह क्यों भूल जाते हैं कि “कोई इबादत के लायक नहीं सिवाय अल्लाह के” सरीखा भड़काऊ ऐलान वो दिन में 5 बार चिल्ला चिल्लाकर जब करते हैं तो शेष भारत के 100 करोड़ हिन्दूओं के देवी देवताओं, 5 करोड़ सिक्खों के दसों गुरुओं, 3-4 करोड़ ईसाइयों के प्रभु ईसा मसीह, करोड़ो बौद्धों के प्रभु गौतम बुद्ध तथा जैनियों के भगवान महावीर का रोजाना अपमान करते हैं। अतः इन सभी धर्मों के लोगों को क्या उसी तरह क्रोधित उत्तेजित होकर उनपर हमला कर देना चाहिए जिस तरह जयश्रीराम, वंदेमातरम और भारत माता के ऐलान से भड़क कर हमला करने का बहाना बना रहे हैं कट्टर धर्मान्ध जिहादी गुंडे और उनके दलाल सेक्युलर नेता।
ध्यान रहे कि अगर यही कसौटी हिन्दूओं सिक्खों ईसाइयों, बौद्धों, जैनियों ने भी अपना ली तो जिहादियों का जीना हराम हो जाएगा….
प्रभु श्रीराम का उदघोष और भजन स्वीकार्य नहीं होने का हिंसक ऐलान स्पष्ट संदेश दे रहा है कि हिन्दूस्तान में एक और पाकिस्तान बनाने की रणनीति पर कार्य हो रहा है। देश में दूसरा पाकिस्तान बनाने की तैयारी की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि नववर्ष, रामनवमी, हनुमान जयंती पर शोभायात्राएं किस मस्जिद मदरसे या दरगाह के परिसर में आयोजित नहीं की गयी थीं। पुलिस एवं स्थानीय प्रशासन की अनुमति से सार्वजनिक सरकारी सड़कों पर निकलने वाली शोभायात्राओं पर आपत्ति करने का संवैधानिक, नैतिक अधिकार इन दंगाइयों को किसने दिया है? क्या इस देश में सार्वजनिक स्थान पर होने वाली गतिविधियों को अब धर्मान्ध मज़हबी दंगाई तय करेंगे ?
क्या इस देश के मुसलमान यह तय करेंगे कि देश के बहुसंख्यक हिन्दू , सिक्ख, ईसाई अपने धार्मिक उत्सव किस तरह मनाएंगे, अपने धार्मिक रीति, रिवाजों, परंपराओं को निर्वहन किस तरह करेंगे.? अबतक पाकिस्तान में ऐसा होता रहा है, जिसे अब भारत में भी लागू करने का प्रयास प्रारंभ हुआ है।

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साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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