ज़ुबैर क्यों चाह रहा है कि सड़कों पर बैठी इन गायों का क़त्ल कर दिया जाए ?
-सुशोभित की कलम से-
Positive India:Sushobhit:
सड़क पर बैठी गायों की एक तस्वीर किसी ने इस कैप्शन के साथ ट्वीट की कि इस ‘समस्या’ को हल करना इतना मुश्किल क्यों है? इसे री-ट्वीट करते हुए मोहम्मद ज़ुबैर ने कहा कि सॉल्यूशन बोलूंगा तो प्रॉब्लम हो जायेगा। ज़ुबैर किस तरफ़ इशारा कर रहा है, यह समझना कठिन नहीं है। वो ये कहना चाह रहा है कि सड़कों पर बैठी इन गायों का क़त्ल कर दिया जाए तो समस्या ही नहीं बचेगी। ज़ुबैर जैसे नराधम से हम इससे बेहतर की उम्मीद नहीं कर सकते। किन्तु इस मुद्दे पर कुछ कहना अवश्य ज़रूरी है।
अव्वल तो यह कि सड़कों पर बैठी गायें ‘समस्या’ नहीं हैं, मनुष्य सड़कों पर अपना वाहन चलाकर वहाँ से गुज़रते हैं, यह समस्या है। जानवरों ने मनुष्यों के मूवमेंट वाले इलाक़े में प्रवेश नहीं किया है, आदमी जानवरों के मूवमेंट वाले इलाक़ों में अतिक्रमण कर गया है। ये धरती मनुष्यों की बपौती नहीं है कि पूरी भूमि पर अकेले मनुष्य ही पसरकर रहेंगे, कोई और प्राणी वहाँ नहीं रह सकेगा और अगर रहेगा तो मनुष्य उसको व्यवधान और समस्या की तरह देखेंगे।
दूसरी बात और ज़रूरी है। जिस बात को समस्या बताया जा रहा है, उसे ख़ुद मनुष्यों ने पैदा किया है। ये सड़कों पर बैठी गायें ख़ुद मनुष्यों के किए-धरे का परिणाम हैं, ये आसमान से वहाँ नहीं गिरी हैं। ख़ुद ही समस्या उत्पन्न करना और फिर यह पूछना कि इससे निजात कैसे मिले- यह मनुष्य-जाति की चिर-परिचित नीचता और मूर्खता है।
आपने कभी सड़कों पर भैंसे क्यों नहीं बैठी देखीं, गायें ही क्यों देखीं? भेड़-बकरियाँ क्यों नहीं सड़कों पर बैठती हैं? और गायें भी केवल भारत की सड़कों पर ही क्यों दिखलाई देती हैं? जवाब सरल है। भारत में गोक़शी पर प्रतिबंध है, दुनिया के दूसरे देशों में नहीं है। वहाँ गायों का नि:संकोच क़त्ल कर दिया जाता है। वहीं भारत में भैंसों और भेड़-बकरियों के क़त्ल पर कोई पाबंदी नहीं है। इसलिए वे आपको सड़कों पर नहीं दिखाई देंगी, गाएँ ही दिखेंगी। लेकिन सवाल है कि देश और दुनिया में इतनी तादाद में गाएँ आती कहाँ से हैं?
यह जो आप दूध और उससे निर्मित उत्पादों का भरपूर सेवन कर रहे हैं, वहाँ से।
कितनी बार दो और दो चार जैसी इस सीधी-सी बात को दोहराना पड़ेगा कि गाय तभी दूध देगी, जब उसके पेट में बच्चा होगा। पेट में बच्चा होगा तो जन्मेगा भी। जन्मने के बाद अगर वह बछड़ा हुआ तो दूध का धंधा करने वाले के किस काम का? भारत में गोवध पर क़ानूनी रोक है, उसको मार तो सकते नहीं। तब दूध का धंधा करने वाला क्या करेगा? अगर वह बछड़े को अपनी माँ का दूध पीने देगा तो धंधे में घाटा न होगा? उसके लिए तो बछड़े के द्वारा पी जाने वाली दूध की हर बूँद मुनाफ़े में कटौती है। वैसे में वह क्या करेगा, सिवाय इसके कि बछड़ों को, बैलों को, बाँझ या बूढ़ी गायों को मरने के लिए सड़कों पर छोड़ दे?
देश में दूध की नदियाँ बह रही हैं। लेकिन इस नदी की बाढ़ में जो गोवंश बह रहा है, वह देशवासियों की नज़रों में खटकता है। डेयरी इंडस्ट्री या तो इन मवेशियों को सड़कों पर डम्प कर देती है, या केरल-बंगाल में उनकी अवैध तस्करी कर दी जाती है। गोवंश से लदे ट्रक चुंगी नाकों से बेरोकटोक गुज़र जाते हैं। इसका क्या समाधान है? सरकार तो समाधान नहीं खोज रही है। वह तो दूध के उत्पादन को और बढ़ाने पर फ़ोकस कर रही है। दूध फ़ैक्टरी में तो पैदा नहीं होता, वह एक माँ के थनों में अपने बच्चे के लिए उत्पन्न होता है। लेकिन दूध के साथ जो बच्चा उत्पन्न हो रहा है, उसके साथ क्या किया जाए, इसका कोई जवाब खोजने की तैयारी न तो सरकार की है, न नागरिकों की।
उस पर यह बेशर्मी भरा सवाल कि सड़कों पर बैठी गायों की ‘समस्या’ को हल कैसे करें? समस्या गाय है, या मनुष्य की अंधी भूख है?
यह ‘यूज़-एंड-थ्रो’ की घृणित सोच, जिसमें कार में बैठा कोई अमीरज़ादा आइस्क्रीम खाने के बाद उसके ख़ाली कप को सड़क पर कूड़े की तरह फेंक देता है- और ठीक उसी तर्ज पर गोवंश का दोहन करने के बाद उन्हें भी आवारा भटकने और मरने के लिए सड़कों पर छोड़ दिया जाता है- यह मनुष्य जाति की नीचता का परम उदाहरण है!
ज़ुबैर कहता है, सॉल्यूशन बोलूंगा तो प्रॉब्लम हो जायेगा। ज़ुबैर को सॉल्यूशन नहीं पता है। वह इतना भर चाहता है कि इन गायों का क़त्ल करवा दिया जाए। पर मैं ज़ुबैर को किस मुँह से दोष दूँ जब इस देश के लोगों ने ही गैय्या को पूजने का ढोंग करके उसकी यह बुरी दशा आज कर दी है?
साभार: सुशोभित-(ये लेखक के अपने विचार हैं)