Positive India:Dayanand Pandey:
जो लोग अयोध्या की पौराणिक कथा जानते हैं , वह लोग जानते हैं कि अयोध्या कभी भी शासकों के लिए शुभ नहीं रही। राम के लिए भी शुभ नहीं रही। तो योगी आदित्यनाथ के लिए भी कैसे शुभ होती। चुनाव तो योगी अयोध्या से भी जीत जाते। मथुरा से भी जीत जाते। लेकिन क्या तब निर्विघ्न मुख्य मंत्री भी रह पाते ? कहना कठिन है। राजनीति में कभी कुछ निश्चित नहीं रहता। अनिश्चितता ही राजनीति का स्थाई रंग है। वैसे अयोध्या अभी तक किसी भी शासक के साथ नहीं खड़ी हुई। एक समय विनय कटियार भाजपा के बड़े नेता थे। राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रहने के कारण विनय कटियार की जगह बजरंगी कहे जाते थे। अयोध्या से सांसद थे।
पर जब वह दुबारा चुनाव लड़े तो हार गए। मैं ने उन से पूछा कि गड़बड़ कैसे हुई ? तो वह बोले , अरे यह अयोध्या है। जब भगवान राम की नहीं हुई तो मेरी कैसे होती। यह अयोध्या किसी को नहीं छोड़ती। तो भाजपा में योगी के शुभचिंतक बहुत हैं। इन्हीं शुभचिंतकों ने उन्हें अयोध्या में घसीटने की क़वायद की और मीडिया में निरंतर अयोध्या से योगी के चुनाव लड़ने की ख़बर चलवाई। अयोध्या के साथ ही मथुरा की भी। लेकिन अयोध्या की ही तरह मथुरा भी कभी अपने शासकों के लिए शुभ नहीं रही।
इसी लिए योगी आदित्यनाथ ने ऐसी तिकड़मों का जाल काटते हुए चुनाव लड़ने के लिए गोरखपुर सदर सीट को चुना। जहां उन का डंका बजता है। गोरखपुर उन के लिए सब से सुरक्षित सीट है। इतनी कि योगी अगर पूरे चुनाव में गोरखपुर में झांकने भी नहीं जाएंगे तो भी वहां से सभी उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त करवा कर भारी मतों से विजयी होंगे। इस लिए कि गोरखपुर में बतौर मुख्य मंत्री इतना सारा काम किया है कि पूछिए मत। मैं गोरखपुर का रहने वाला हूं। मूल निवासी। पर बीते नवंबर में गोरखपुर शहर गया तो चकित रह गया। सड़क तो सड़क हर गली की सड़क भी चमचमाती मिली। बरसों से बंद पड़े फर्टिलाइजर कारखाने की शुरुआत हो गई है। एम्स जैसे अस्पताल हैं। फ्लाईओवर , मेट्रो पर काम। चौबीसो घंटे बिजली।
विकास और रोजगार के इतने सारे काम कि पूछिए मत। सड़क चौड़ी करने के लिए योगी ने गोरखनाथ मंदिर परिसर की बाउंड्री तक तोड़ डाली है। मंदिर के सामने की संकरी सड़क अब फोर लेन की सड़क बन गई है। फिर गोरखपुर , गोरखनाथ मंदिर की पारंपरिक सीट है। विधान सभा की भी और संसद की भी। महंत दिग्विजयनाथ सिंह , महंत अवैद्यनाथ सिंह की यह परंपरा योगी आदित्यनाथ तक यह परंपरा बनी हुई है। बीच में दो-चार बार कोई अन्य चुनाव लड़ा और जीता भी तो गोरखनाथ मंदिर के समर्थन के कारण ही। एक बार मंत्री रहते हुए भी भाजपा उम्मीदवार शिवप्रताप शुक्ल चुनाव हार गए तो सिर्फ़ इस लिए कि योगी ने उन्हें नहीं चाहा। योगी ने वर्तमान भाजपा विधायक राधामोहन अग्रवाल को निर्दलीय उम्मीदवार बना कर शिवप्रताप शुक्ल के खिलाफ खड़ा कर दिया। शिवप्रताप चुनाव बुरी तरह हार गए थे।
लेकिन बीते कुछ दिनों तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री आदित्यनाथ योगी के अयोध्या से चुनाव लड़ने की ख़बर ऐसे आंधी की तरह चली कि पूछिए मत। जैसे योगी का अयोध्या से विधानसभा चुनाव लड़ना कोई अजूबा हो। कोई योगी को वहाँ से लड़ने की ख़बर लाता था तो कोई मथुरा से उन्हें चुनाव लड़ाने की फ़रमाइश करता। जाने क्यों कोई उन्हें गोरखपुर से चुनाव लड़वाने की बात नहीं कर रहा था। योगी ख़ुद कहते घूम रहे थे कि पार्टी जहां से लड़ने को कहेगी , चुनाव लडूंगा। वैसे तो वर्तमान स्थितियों में योगी जहां भी कहीं से चुनाव लड़ेंगे , जीत जाएंगे। अयोध्या और मथुरा से भी। लेकिन सवाल था कि अयोध्या या मथुरा से चुनाव जीतने के बाद भी क्या वह मुख्य मंत्री बन पाते ? बन भी जाते तो कितने दिन टिक पाते ? असल सवाल यही है। इस लिए भी कि अयोध्या हो या मथुरा , अपने शासकों के लिए कभी शुभ नहीं रही। कम से कम अयोध्या राम के लिए तो कभी शुभ नहीं रही।
आप कहते रहिए रामराज्य। लेकिन रामराज्य में राम से ज़्यादा दुःखी कौन था भला। राज्याभिषेक होने वाला था , 14 बरस के वनवास पर भेज दिए गए। वन में पत्नी का अपहरण हो गया। रावण का वध कर पत्नी ले कर लौटे तो पत्नी को वनवास देना पड़ा। अपने ही पुत्रों से पराजित हुए। जलसमाधि लेना पड़ा। राम का वनवासी जीवन तो सैल्यूटिंग है। वही वनवासी जीवन उन्हें भगवान बनाता है। पूजनीय और वंदनीय बनाता है। पर राजा राम का जीवन ? कई सारी दुविधाओं , दाग़ और कठिनाइयों से भरा पड़ा है। ऐसी अनेक कथाओं और दुःखों से रामराज्य के राम का जीवन विधा पड़ा है। कहते हैं अयोध्या को भरत का एक श्राप भी लगा हुआ है। कहते हैं कि जब राम लौटे वनवास से तो भरत की उपस्थिति में प्रजा से औपचारिकतावश पूछ लिया कि आप सब लोग सुखी तो हैं। मेरे न रहने से कोई कष्ट तो नहीं हुआ ?
कोई व्यक्ति बोल पड़ा , कहां सुख ? आप के न रहने से दुःख ही दुःख था। वह तो राम से विछोह का दुःख बता रहा था। पर भरत को उस की यह बात अपने राजकाज से जुड़ी लगी। लगा कि वह भरत के शासन की बुराई कर रहा है। भरत दुःखी हो गए। इस बात को दिल पर ले लिया। फिर श्राप दे दिया अयोध्या को कि जाओ हरदम दुःखी ही रहो। तो यह भरत का यह एक श्राप भी अयोध्या के साथ नत्थी हो गया। आप ग़ौर कीजिए कि राम मंदिर की अस्मिता के लिए हिंदू समाज ने भले लंबा संघर्ष किया , लड़ाई लड़ी। पर जब कभी कोई मंगल कार्य संपन्न करता है , कोई शुभ कार्य होता है तो गणेश जी की पूजा होती है। शंकर और पार्वती जी की पूजा होती है। लेकिन राम या कृष्ण की पूजा नहीं होती किसी मांगलिक कार्य में। क्यों ?
और कृष्ण का जीवन ?
वेदव्यास ने ही महाभारत लिखी और गीता भी। कृष्ण ही दोनों जगह केंद्रीय विषय हैं। लेकिन महाभारत के कृष्ण और हैं और गीता के कृष्ण और। जैसे राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने लक्ष्मणपुरी बसाया जो अब लखनऊ है। वैसे ही शत्रुघन द्वारा बसाए नगर मथुरा में पैदा होते ही कृष्ण को मथुरा छोड़ना पड़ा। मां देवकी को छोड़ना पड़ा। यमुना की लहरों से लड़ते हुए यशोदा के पास पहुंचे। बचपन ही से राक्षसों का वध ही हिस्से आया। महाभारत की कथा को आप जैसे देखिए , कृष्णनीति को पढ़िए। कृष्ण का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज होने से बहुत दूर है। कृष्ण कई जगह खल चरित्र के रुप में भी उपस्थित हैं। आख़िर समय में मथुरा छोड़ द्वारिका जाना पड़ा। लेकिन गीता के कृष्ण हमारे आध्यात्मिक पक्ष के इतने सशक्त हस्ताक्षर कि गीता का ज्ञान मशहूर है। गीता के नाम पर लोग शपथ लेते हैं।
पर हम भजन ज़रुर गाते हैं , जग में सुंदर हैं दो नाम , चाहे कृष्ण कहो या राम। पर राम और कृष्ण का जीवन सुंदर और सुविधाजनक नहीं , संघर्षों और कांटों से भरा पड़ा है। तो शायद इस लिए कि अयोध्या और मथुरा दोनों ही अपने शासकों के लिए कभी शुभ नहीं रही। भाजपा के भीतर योगी के कुछ शुभचिंतक इस तथ्य से भली-भांति परिचित हैं। इसी लिए वह योगी के लिए कभी अयोध्या , कभी मथुरा की माला फेरते दिखे। जब कि सच यह है कि समूचे उत्तर प्रदेश में योगी के लिए अगर सब से सुरक्षित सीट है तो वह गोरखपुर ही है। और हर कोई चुनाव सुरक्षित सीट से ही लड़ना चाहता है। अयोध्या या मथुरा कोई नोएडा का अपशकुन नहीं है। यह अच्छा है कि बड़े-बड़े सेक्यूलर जिस अपशकुन के डर से नोएडा नहीं जाते थे कि मुख्य मंत्री नहीं रह पाएंगे। वह अपशकुन योगी ने बड़ी दिलेरी से बारंबार तोड़ा है। दर्जनों बार वह नोएडा गए हैं अपने इस कार्यकाल में।
लेकिन नोएडा आना और अयोध्या या मथुरा से चुनाव लड़ना , दोनों दो बात है।
अभी जो अयोध्या हमारे सामने उपस्थित है , कम से कम राम की बसाई अयोध्या नहीं है। यह बात भी लोगों को अच्छी तरह जान लेना चाहिए। जान लेना चाहिए कि राम की बसाई अयोध्या उजड़ गई थी। बहुत बाद में इसे फिर से राम के पुत्र कुश ने बसाया। राम की नगरी अयोध्या कैसे बसी , कितनी बार उजड़ी , यह तथ्य भी कितने लोग जानते हैं ?
अयोध्या है कौन जिस के नाम पर यह नगर अयोध्या बसा। नहीं जानते तो पढ़िए कभी कालिदास लिखित रघुवंशम् । तो पता चलेगा कि अयोध्या एक लड़की का नाम है। अयोध्या इस नगर की अधिष्ठात्री देवी भी कही जाती हैं। इस स्त्री अयोध्या के नाम पर ही अयोध्या नगर बसा। रघुवंशम् के मुताबिक़ अयोध्या चिर यौवना थी। इंद्र का वरदान था कि वह कभी बूढ़ी नहीं होगी। सर्वदा जवान रहेगी। सदियों-सदियों जवान रहेगी। आप ख़ुद देखिए कि आज फिर अयोध्या सब से ज़्यादा जवान होने की ओर अग्रसर है। तो योगी और मोदी के कारण अयोध्या का वैभव फिर लौट रहा है। अयोध्या के राजनीतिक मुनाफ़े और घाटे की बात फिर कभी। अभी अयोध्या नगर के बसने की कथा पर संक्षेप में ग़ौर कर लेते हैं।
इक्ष्वाकु वंश के महाराज दिलीप को एक ऋषि ने बताया था कि जहां भी कहीं जाइएगा , वहां एक लड़की मिलेगी। वहीं अपना नगर बसा लीजिएगा। तो महाराज दिलीप एक दिन सरयू नदी में नहा कर निकले तो वह अयोध्या नाम की लड़की मिली। पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है। तो उस ने बताया अयोध्या। दिलीप ने पूछा , कि कब से हो यहां ? तो वह लड़की बोली , लाखों साल से यहीं हूं। महाराज दिलीप हंसे और बोले , इतनी तो तुम्हारी उम्र भी नहीं है। तो अयोध्या ने इंद्र के वरदान के बारे में बताया। और बताया कि इसी लिए वह चिरयौवना है। खैर महाराज दिलीप ने फिर यहां अयोध्या नाम से नगर बसाया। तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस के बालकांड में लिखा भी है :
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
सरयू नदी उत्तराखंड बागेश्वर के पास से निकली बताई जाती है। बागेश्वर से अयोध्या की दूरी कोई 500 किलोमीटर है। सरयू नदी को सर्वमैत्रेस भी कहा गया है। बौद्ध ग्रंथों में इसे सवेर नदी के नाम से दर्ज किया गया है। ऋग्वेद में भी सरयू का ज़िक्र है। बहरहाल महाराज दिलीप ने अयोध्या नगर बसाया और न्याय प्रिय शासन की स्थापना की। कालिदास ने राजा दिलीप के चरित्र का बहुत ही दिलचस्प वर्णन किया है , रघुवंशम में। बताया है कि वैवस्वत मनु के उज्जवल वंश में चंद्रमा जैसा सुख देने वाले दिलीप का जन्म हुआ।
राजा दिलीप के चरित्र और व्यक्तित्व का बहुत ही दिलचस्प वर्णन कालिदास ने लिखा है। दिलीप को सारा सुख था पर उन की पत्नी सुदक्षिणा के कोई संतान नहीं थी। फिर गुरु वशिष्ठ के यहां जाने , कामधेनु का श्राप प्रसंग , नंदिनी गाय और शेर आदि की कई दिलचस्प कथाओं का वर्णन मिलता है। फिर एक पुत्र का जन्म होता है जिस का नाम रखा जाता है , रघु। कालांतर में इसी रघु के पराक्रम के कारण इस वंश को रघुवंश नाम से जाना जाता है। फिर अज , दशरथ आदि के क़िस्से सभी जानते हैं। रघुकुल मर्यादा, सत्य, चरित्र, वचनपालन, त्याग, तप, ताप व शौर्य का प्रतीक रहा है। कोई 29 पीढ़ी की कथा मिलती है रघुवंश की। जिस में अग्निवर्ण अंतिम राजा बताए गए हैं। अग्निवर्ण की कोई संतान नहीं हुई। सो रघुवंश की यहीं इति मान ली गई है।
बीच में एक कथा फिर यह भी आती है कि राम ने जब भाइयों , पुत्रों के बीच सारा राज-पाट बांट कर जल समाधि ले ली तो बाद के समय में अयोध्या पूरी तरह उजड़ गई। तो अयोध्या नाम की वह लड़की पहुंची कुश के पास। माना जाता है कि वर्तंमान छत्तीसगढ़ में ही तब कुशावती कहिए , कुशावर्ती कहिए , कुश का शासन था। तो अयोध्या अचानक कुश के शयनकक्ष में पहुंच गई। कुश उसे देखते ही घबरा गए। बोले , तुम कैसे यहां आ गई। किसी ने रोका नहीं , तुम्हें ? फिर वह प्रहरी आदि को बुलाने लगे।
तो अयोध्या ने कहा , घबराओ नहीं। किसी को मत बुलाओ। मैं अयोध्या हूं। मेरे युवा होने पर मत जाओ। तुम्हारे सभी पुरखों को जानती हूं। सभी मेरी गोद में खेले हैं। फिर अयोध्या ने इंद्र के वरदान के बारे में बताया। और बताया कि राम के बाद अयोध्या नगर उजड़ कर अनाथ हो गया है। जंगल हो गया है। अयोध्या में अब मनुष्य नहीं , जानवरों का वास हो गया है। सो तुम चलो और अयोध्या को फिर से बसाओ। कुश ने कहा कि लेकिन पिता राम ने तो मुझे यहां का राजकाज सौंपा है। अयोध्या कैसे चल सकता हूं। फिर अयोध्या ने जब कुश को बहुत समझाया तो कुश मान गए। लौटे अयोध्या। उजड़ चुकी अयोध्या को फिर से बसाया। तो आज की अयोध्या कुश की बसाई हुई अयोध्या है। वैसे अयोध्या को पहला तीर्थ और धाम भी माना जाता है। कहा ही गया है :
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥
अयोध्या जैनियों का भी तीर्थ है। 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकुवंशी थे और उनमें से सबसे पहले तीर्थंकर। आदिनाथ (ऋषभ-देव जी) का और चार और तीर्थंकरों का जन्म यहीं हुआ था। बौद्धमत की तो कोशला जन्मभूमि ही है। शाक्य-मुनि की जन्मभूमि कपिलवस्तु और निर्वाणभूमि कुशीनगर दोनों कोशला में थे। अयोध्या में उन्होंने अपने धर्म की शिक्षा दी और वे सिद्धांत बनाए और दुनिया भर में मशहूर हुए। बहरहाल अयोध्या जिसे साकेत भी कहते हैं कि पौराणिक कहानियां और अन्य कहानियां बहुत सारी हैं। जिन का बहुत विस्तार यहां ज़रुरी नहीं है। पर अयोध्या की आज की राजनीतिक कथा बांचने के लिए इतनी पौराणिक पृष्ठभूमि भी बहुत ज़रुरी है।
गरज यह कि अयोध्या सर्वदा ही उथल-पुथल की नगरी रही है। पौराणिकता तो जो है इस की वह है ही। पर एक समय बौद्धों का भी यहां बहुत प्रभाव था और जैनियों का भी। यही कारण है कि मुगलों ने अयोध्या पर हमला कर भारत के पौराणिक नगर में प्रभु राम के मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई और अपनी श्रेष्ठता और हनक क़ायम की। बाक़ी हज़ारों / सैकड़ों बरसों का राम मंदिर विवाद सब के सामने है। विस्तार में जाने की ज़रुरत नहीं है। अब विवाद समाप्त है। आग बुझ चुकी है। पर विवाद की राख अभी भी उड़ती दिखती रहती है यदा-कदा । और इसी विवाद की उड़ती राख के बीच योगी आदित्यनाथ अयोध्या से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए घेरे जाने लगे थे।
राम के बाद अनाथ हो कर उजड़ चुकी अयोध्या को जैसे कुश ने कभी दुबारा बसाया था , ठीक वैसे ही , मुगलों के आक्रमण के बाद , आज़ादी के बाद फिर से बरबाद हो रही अयोध्या और उस की अस्मिता को प्रतिष्ठित करने का काम अपने वर्तमान कार्यकाल में नरेंद्र मोदी और योगी ने बख़ूबी किया है। लोग इस कार्य के लिए उन से असहमत हो सकते हैं। विरोध कर सकते हैं पर मोदी , योगी ने अयोध्या को नई साज-सज्जा दी है। नया रंग , नया रुप , नया कलेवर और नया तेवर दिया है। सुविधाजनक और सुंदर बनाया है। बनाते ही जा रहे हैं। इस से कोई भला कैसे इंकार कर सकता है। अयोध्या पहले तहसील थी। अब जनपद है। अब अलग बात है कि अखिलेश यादव का एक संदेश घूम रहा है , सोशल मीडिया पर कि सत्ता में आते ही वह अयोध्या को फिर से फैज़ाबाद कर देंगे। यह उन का अधिकार है। पर सत्ता में आएं तो। ख़ैर , सड़क से लगायत एयरपोर्ट तक विकास के कई स्तंभ लांघते हुए वर्ड क्लास शहर बनने की ओर अग्रसर है अयोध्या। सिर्फ़ राम नगरी और भव्य राम मंदिर ही नहीं , पर्यटन का एक बड़ा केंद्र बन कर हमारे सामने अयोध्या नगर उपस्थित है।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)