Positive India:Vishal Jha:
अरब विजय से पहले ईरान की संस्कृति प्राकृतिक थी। करीब 640 ईसवी के बाद अरब विजय हो जाने पर वहां की ऑर्गेनिक संस्कृतियों को जोकि पारसियों की थी पर लगातार प्रहार किया जाता रहा। उनकी पुस्तकें जला दी गई। पारसियों पर जजिया लगाया गया। धीरे धीरे ऑर्गेनिक संस्कृति पूरी तरह से नष्ट हो गई और एक अप्राकृतिक संस्कृति क्षैतिज रूप में लाकर अध्यारोपित की गई।
प्राकृतिक संस्कृति उस स्थान की माटी से उगती है जोकि ऑर्गेनिक किस्म की होती है। इसको जब भी नष्ट किया जाता है तब मानव सभ्यता में सबसे प्रथम शिकार स्त्रियां ही बनती है। ब्रिटेन और अमेरिका की नज़दीकियों के प्रभाव में ईरान में पहलवी वंश स्त्रियों को उनका अधिकार इस हद तक दिया कि कश्फ-ए-हिजाब हिजाब लागू हुआ। अर्थात स्त्रियां हिजाब पहनेगी तो उसे पुलिस द्वारा उतरवा दिया जाएगा। यद्यपि कुछ वर्षों बाद कश्फ-ए-हिजाब बैन कर दिया गया। लेकिन महिलाओं को शिक्षा, समाज और राजनीति के क्षेत्र में तमाम अधिकार दिए गए।
क्योंकि संस्कृति अप्राकृतिक थी, अध्यारोपित थी, तो ईरान की इसी सामाजिक उन्नति को पश्चिमीकरण का हवाला देकर ईरान में फिर एक बार खूनी संघर्ष की जमीन तैयार हो गई। ईरान से निर्वासित कट्टर नेता आयतुल्लाह खोमेनी 20 लाख का जन समर्थन लेकर शाहयाद चौक पर उतर गया। इस्लामिक क्रांति का नाम लेकर अब जो ईरान समाज में महा परिवर्तन होने वाला था, उस परिवर्तन को भी मूर्त रूप स्त्रियों को ही देना था। बड़ी संख्या में स्त्रियों ने भी इस क्रांति में भाग लिया और अपने लिए हिजाब मांगा। शरिया कानून लागू हुआ। स्त्रियों ने शरिया कानून में 9 साल की उम्र होते ही हिजाब पहनने की अनिवार्यता सुनिश्चित की। विवाह का उम्र घटाकर 18 वर्ष 9 वर्ष हुआ। शरिया कानून के रक्षक पुलिस लिपस्टिक पर ब्लेड चलाने लगे। स्वाभाविक है पहलवी शासक शाह रजा 1979 में देश छोड़कर भाग गया और अयातुल्लाह ईरान आया। 50 लाख मुसलमान अयातुल्लाह के स्वागत में सड़कों पर उतर गए। अयातुल्लाह न केवल ईरान का बल्कि इस्लाम का सुप्रीम लीडर बना।
पहलवी शासन के करीब 40 साल बाद जिस ईरान में महिलाओं ने क्रांति कर अपनी आवाज से हिजाब की मांग की थी, शरिया लागू होने के ठीक 40 साल बाद फिर एक बार ईरान की वही स्त्रियां आज उसी हिजाब से आजादी मांग रही हैं। हिजाब खत्म मतलब शरिया कानून खत्म। मतलब ईरान की स्त्रियां आज शरिया कानून से आजादी मांग रही हैं, शरिया कानून खत्म मतलब इस्लामिक क्रांति से पहले का ईरान खोजा जा रहा है। लेकिन यह खोज स्थाई कब होगी, इसके लिए ईरान को और पीछे जाना होगा, अरब विजय से पूर्व। अरब विजय से पूर्व का इरान दरअसल पारसियों का इरान है। जिनकी संस्कृति ऑर्गेनिक थी। मतलब साफ है किसी समाज को यदि एक सदी में तीन बार खूनी संघर्ष में झोंकना हो तो वहां की संस्कृति को बस मिटा दिया जाए। हिजाब मांग कर यह कोशिश भारत में जारी है।
स्त्रियां ही किसी समाज की तस्वीर बताती हैं। आज जो ईरान की तस्वीर है उसका वाहक भी स्वयं स्त्रिया ही हैं। और यदि वापस से रिस्टोर करना है तो इसकी जिम्मेवारी भी स्त्रियों के कंधे पर ही है। इस क्रम में जो दर्द भरा संघर्ष होता है, उसका मोल भी अकेली स्त्रियां ही चुकाती हैं। यह दर्द उस अस्थिरता के कारण होता है जो अस्थिरता मूल संस्कृतियों के नाश से उत्पन्न हुआ था। मेहसा अमीनी के पिता इस बात को अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए उन्होंने अमीनी के दफनाने पर फातिहा पढ़ने से इनकार कर दिया। जैसे ईरान अब मूल में लौटना चाहता है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)