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ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर क्यो है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
सत्य को जानने के लिए विप्र होना कसौटी है। ठीक उसी प्रकार जैसे विज्ञान के किसी सिद्धांत को योग्य विद्यार्थी हुए बिना नहीं समझा जा सकता। लेकिन क्या कल्पना भी की जा सकती है कि कैसे सत्य अर्थात शिव की उपासना की धारा में ज्ञानी-अज्ञानी, सात्विक-विषयी, साधु-असाधु सभी एक साथ जुड़े हुए हैं। इनके लिए उपासना की कसौटी एकसमान होने की बाध्यता भी नहीं है। ठीक वैसे जैसे विज्ञान के किसी स्तर की कक्षा के लिए एक तय योग्यता धारक ही प्रवेश पा सकते हैं।

आदि गुरु भगवान शंकराचार्य जब अद्वैत का सूत्र लेकर आए, तब उपासना जगत के लिए यह एक क्रांतिकारी सूत्र बना। लेकिन इसे समझना केवल विप्र के लिए ही सुलभ था। संस्कृत की समझ और उपासना पद्धति की कठोरता ने सनातन जगत में एक बड़े वर्ग को इस सूत्र से विभाजित कर विलग कर दिया। जिनके लिए सत्य को जानना धीरे-धीरे दुर्गम सिद्ध हो गया। कालांतर में धर्म विरोधियों के नैरेटिव से यह स्थापित हो गया कि वेदों के अध्ययन से गैर ब्राह्मणों को जानबूझकर प्रतिबंधित किया गया है।

कुछ दिनों पहले आईएएस विजन कोचिंग क्लासेस की कक्षा में यह पढ़ाते हुए भी पाया गया कि भारत में पूर्व मध्यकाल की स्थिति कास्ट सिस्टम के कारण इतनी भयावह हो गई थी, कि अरब से निकले इस्लाम को लोग हाथों हाथ अपनाने लगे। इस्लाम की इस लोकप्रियता से व्याकुल होकर भारत में भक्ति धारा का एक कल्ट चलाया गया। कोचिंग के इस प्रकार व्याख्या का फुटेज सोशल मीडिया पर आया था। प्रतिरोध और असहमतियां उठने लगी। लेकिन यह प्रतिरोध तभी सार्थक होगा जब हम यह स्थापित करने में कामयाब होंगे, कि भक्ति धारा अद्वैत की समझ से वंचित लोगों के लिए द्वैत रूप में एक विकल्प प्रस्तुत करता है।

कबीर, तुलसी, सूरदास, नंददास, कृष्णदास, मीराबाई, रसखान, चैतन्य महाप्रभु न जाने कितने ही महान व्यक्तित्वों ने आध्यात्मिक सामाजिक जगत में क्रांति ला दी। भगवान विष्णु के अवतार राम की उपासना पर बल देने वाले रामानुजाचार्य की परंपरा से आने वाले रामानंद ने भक्ति क्षेत्र में ऊंच-नीच के भेद को सफलतापूर्वक खंडित किया। सभी जातियों को अपना शिष्य बनाया। बड़ा सुंदर और सहज सूत्र दिया- “जाति पाति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।” आज ओशो रजनीश को पढ़ने समझने वाला बौद्धिक समाज भक्तिधारा से जुड़े लोगों का उपहास कर सकता है, लेकिन राम कृष्ण और शिव के वेदांतिक सत्य की समझ को सबके लिए सहज उपलब्ध नहीं करा सकता।

इसलिए ‘सत्य ही शिव है’ कि समझ भक्ति धारा के उपासक भले ना रखते हों, लेकिन अपनी उपासना से उस न्यूनतम शांति को अवश्य प्राप्त कर लेते हैं, जो अद्वैत की समझ होने के बावजूद सत्य के स्वाद से वंचित लोगों में नहीं पाया जाता। तो आज के लिए समर्पित पंक्ति- ‘ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है।’ हर हर महादेव।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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