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अयोध्या में राम मंदिर में भीड़ अब कभी कम होने वाली क्यों नहीं है?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India: Rajkamal Goswami:
अस को जीव जंतु जग माहीं
जेहि रघुनाथ प्राणप्रिय नाहीं
और जिन्हें प्राणप्रिय नहीं हैं वे जीव जंतुओं की श्रेणी से बाहर हैं जड़ हैं । सोच रहा था कि भगवान राम की लोकप्रियता कितनी अधिक है तभी यह चौपाई ध्यान में आ गई । राम जीवन में इतने रचे बसे हैं कि जाने अनजाने सोते जागते उनका नाम उच्चारित हो ही जाता है । यह मिथ्या अवधारणा है कि तुलसी ने राम को लोकजीवन में इतना लोकप्रिय बनाया है । तुलसी से और तीन सौ साल पहले अमीर खुसरो दैनिक जीवन में राम के महत्व को अपनी सुप्रसिद्ध कविता “ कह मुकरियाँ “ में रेखांकित करते हैं ।

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बखत बखत मोहे बा की आस
रात दिना वो रहत मोरे पास
मेरे मन को करत सब काम
का सखि साजन ? ना सखि राम !

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परम कृष्ण भक्त मीरा अपनी आध्यात्मिक उपलब्धि का वर्णन इस पद में करती हैं,” पायो जी मैंने राम रतन धन पायो “ । कबीर लाख दशरथ नंदन से अपने राम को अलग मानते हों पर राम ही उनके परम तत्व हैं । सूर भी गाते हैं सुने री मैंने निर्बल के बल राम !

अयोध्या में राम मंदिर में भीड़ अब कभी कम होने वाली नहीं है , करोड़ों लोग तो भीड़ कम होने की प्रतीक्षा ही कर रहे हैं । और अभी रामनवमी आने वाली है जो इस बार ऐतिहासिक होगी । रामनवमी की भीड़ में सरयू पर पीपे का पुल मैंने बचपन में टूटते हुए देखा है । आज से पचास साल पहले इतनी भीड़ होती थी इस बार तो बात ही और है ।

शंकर जी के भक्तों की तो आन बान शान ही निराली है जो मंदिरों से अधिक सड़कों पर दिखाई देती है । सावन में तो हरिद्वार के रास्ते जाम हो जाते हैं । ज्ञानवापी सर्वे रिपोर्ट का असर आठ मार्च को महाशिवरात्रि पर ही दिखाई देने लगेगा । भक्तों का उत्साह धीरे-धीरे चरम पर पहुँचेगा । बाबा विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना शुरू करने की माँग शुरू हो गई है । भीड़ का मनोविज्ञान अलग ही होता है । राममंदिर की सफलता से उत्साहित भक्तों को सर्वे रिपोर्ट से ज्ञानवापी में भी सफलता की सुगंध आने लगी है ।

राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं उनके भक्तों का स्वभाव भी पीड़ पराई जाने रे वाला होता है । शंकर तो प्रलयकाल में तांडव करनेवाले महादेव है । भक्तों के आग्रह पर तांडव करते हैं तो शिवसूत्रों का सृजन भी करते हैं । आशा है कल्याण ही करेंगे ।

नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपंचवारे
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालं

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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