Positive India:Vishal Jha:
भूख से मृत्यु की अंतिम खबर भारत में 2017 में झारखंड से आई थी। जो खबर मूलतः सामाजिक कार्यकर्ताओं के कहने के आधार पर द वायर की रिपोर्ट से प्रोपागेट की गई थी। जबकि मृत्यु का वैज्ञानिक पक्ष मलेरिया को कारण बताया था। ऐसे प्रोपेगेंडा को काउंटर करने के लिए सरकार ने खाद्य सुरक्षा अधिनियम को अपना हथियार बनाया। आज हालात ऐसी है कि जन वितरण के सरकारी स्थानीय आउटलेट पर लोग अनुदान समर्थित मूल्य पर 2-₹3 में गेहूं और चावल खरीदते हैं और आउटलेट के बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर रेहड़ी लगाकर उस राशन को खरीदने के लिए व्यापारी खड़ा रहता है। लोग 5-6 गुना अधिक मूल्य पर अच्छी कीमत पर उस राशन को बेच देते हैं। अलग बात है कि इक्का-दुक्का लोग ऐसा नहीं करते होंगे।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी करने वाली आयरलैंड और जर्मनी के एनजीओ क्रमश: कंसर्न वर्ल्डवाइड एंड वेल्ट हन्गर हिल्फ ने भारत की रैंकिंग को पिछले 3 वर्षों में 13 रैंक नीचे कर दिया है। इस बार भारत को 107 रैंक दिया गया है। जबसे खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लोगों को मुफ्त में 2-2 सरकारें राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर भोजन दे रही हैं, जीएचआई इंडेक्स की माने तो तब से स्थिति और खराब हो गई है। ताज्जुब की बात है कि इतने गहरे संकट के बावजूद किसी लुटियंस मीडिया ने इस पर बात करने की हिम्मत नहीं की।
जबकि सच्चाई यह है कि जब जब सरकारें मुफ्त राशन के लिए घोषणा करी हैं, लुटियंस मीडिया ने जमकर सरकार पर प्रश्न उठाया है। कि जब लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल रहे हैं तब उन्हें मुफ्त राशन क्यों दिया जा रहा? प्रश्न के नाम पर एजेंडा बेचने वाली दरबारी पत्रकारिता ने मुफ्त राशन पर इतना प्रश्न उछाला है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स के रैंकिंग पर प्रश्न करने के लिए खुद ही स्थान नहीं छोड़ा।
दरअसल अब जो मोदी दौड़ चल रहा है, जिसमें एक एक वैश्विक मुखौटा पहने तमाम संगठन एक्सपोज हो रहे हैं। पैगेसस मामले पर तमाम वैश्विक मीडिया संगठन एक्सपोज हुआ। पत्रकारिता पुरस्कार वितरण करने वाले अंतर्राष्ट्रीय संस्थानें एक्सपोज हुईं। अब गरीबी और भुखमरी के नाम पर फंड इकट्ठा करने वाले एनजीओज के ऐसे मजाकिया इंडेक्स जारी हो रहे हैं कि जिस पर वाम खेमा भी बात नहीं करना चाहता, पैनल नहीं बिठाना चाहता। जब पूर्ववर्ती सरकारों के भारत में वास्तव में भूखमरी हुआ करती थी, इंडेक्स जारी होते ही हाहाकार मच जाता था। इन आंकड़ों को लेकर संसद से सेक्रेटेरिएट तक नीति नियम बनने लगते थे। मतलब कंपीटिशन के बच्चों से लेकर विधायिकियों के संसद तक जैसे लगता था ये आंकड़े भारत के तकदीर की लकीर तय करती थीं। शर्मनाक। आज के भारत में फूड एंड एग्रीकल्चर विभाग को इन आंकड़ों पर ध्यान देने से स्पष्ट मना कर दिया है।
भूख से दाने-दाने को मरने वाला देश श्रीलंका से लेकर युद्ध ग्रसित देश यूक्रेन तक विश्व ने देखा है कि मोदी ने किस प्रकार राशन और दवाइयों की खेप पहुंचाई है। बाढ़ से ग्रसित होने पर मोदी ने पाकिस्तान को भी मदद ऑफर किया था। विश्व अब ऑफ ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंकड़ों के बजाय इस सत्य को देख रहा है। और तभी पहली बार भारत ने अथवा शायद किसी भी देश ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स को नकार दिया है। एक भारत जैसे डेवलपिंग कंट्री के लिए यह एक बड़ी बात है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)