सनातन धर्म में कुत्ते का इतना बड़ा महत्व क्यो है ?
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
सनातन धर्म में कुत्ते का बड़ा महत्व है । गृहस्थ से अपेक्षा की जाती है कि वह भोजन की पहली रोटी गाय के लिये और अंतिम रोटी कुत्ते के लिये निकालेगा । पशु पक्षियों चींटी आदि को भोजन देना भूत यज्ञ कहलाता है और गृहस्थ का दैनिक कर्तव्य है । माँ गोवर्द्धन पूजा वाले दिन आँगन में गोवर्द्धन बनाती थीं तो द्वार पर एक कुत्ता बनाना नहीं भूलती थीं ।
युधिष्ठिर का कुत्ता तो स्वर्गारोहण के लिये यात्रा में अंत तक उनके साथ रहा यहाँ तक कि युधिष्ठिर ने बिना कुत्ते के स्वर्ग में प्रवेश करने से मना कर दिया ।
कुत्ते ने यह प्रतिष्ठा और मनुष्य का विश्वास अपनी अनवरत वफ़ादारी से अर्जित किया है । अपनी मौत की परवाह किये बिना वह अपने मालिक के प्रति हर हाल में वफादार बना रहता है । जहाँ अनेक जीव जंतु सृष्टि की इस यात्रा में मनुष्य का साथ छोड़ चुके हैं , हाथी दिखाई नहीं देते , घोड़े तो अब शौकीन अमीरों के पास रह गये हैं , कुत्ता अपनी दुम हिला कर आदमी के साथ डटा हुआ है ।
मदीना में एक बार पैग़ंबर ने यह इरशाद किया कि मदीने के सारे कुत्ते क़त्ल कर दिये जायें । लिहाज़ा ग़लीज़ कुत्तों को मारा जाना शुरू हो गया । इस हुक्म के पीछे क्या वजह रही होगी इसका पता नहीं चलता । हमारी गली में भी बहुत सारे कुत्ते हैं जो रात बिरात राहगीरों को दौड़ा लेते हैं । एक आध हम पर भी मुँह मार चुके हैं । पिता जी को एक बार सवेरे सवेरे टहलते समय काट लिया तो अस्पताल ले जाना पड़ा और एंटी रेबीज़ सुई लगवानी पड़ी । कई बार नगरपालिका वाले पकड़ ले जाते हैं मगर फिर आ जाते हैं । दुम हिला हिला कर खाना पानी पाते रहते हैं । हो सकता है नबी करीम भी इनकी हरकतों से आजिज़ आ चुके हों ।
पैग़ंबर का हुक्म एक तरफ़ लेकिन इस मासूम मख़लूक की कमाल की वफ़ादारी दूसरी तरफ़ । कितने ही मदीना वालों ने शिकार के लिये कुत्ते पाल रखे थे । उनकी रोज़ी कुत्तों के सहारे चलती थी , कुत्ते उन्हें शिकार पकड़ कर ला कर देते थे या फिर भागते हुए शिकार को घेरने में मदद करते थे । कुत्तों ने अपने मालिकों को मजबूर कर दिया कि वह पैग़ंबर से कुत्तों के लिये रियायत की इल्तिज़ा करें । बहरहाल रियायत मिली और शिकार के लिये कुत्ते पालना जायज़ क़रार हो गया । शौकिया कुत्ता पालना हराम हो गया और कुत्ते को एक ग़लीज़ जानवर की हैसियत से ज़िंदा रहने की इजाज़त मिल गई ।
ग़लीज़ होने के बावजूद कुत्ता अपनी बेमिसाल वफ़ादारी की वजह से अपने लिये इज़्ज़तदार जगह बनाये रहा । बरेलवी मसलक के आला हज़रत अहमद रज़ा साहब जब हज पर गये तो नबी के रौज़े पर दर्शन की अभिलाषा में बड़ा ही भावुक नात लिखा और लगभग रोते रोते गाया ,
वो सू ए लालाज़ार फिरते हैं
तेरे बिन ऐ बहार फिरते हैं
क्यूँ सुने कोई तेरी बात रज़ा
तुझसे कुत्ते हज़ार फिरते हैं
अक़ीदा है कि उन्हें नबी के दर्शन हुए ! अब आला हज़रत अपने को कुछ भी कह लें लेकिन उनके अनुयायी भला उनकी तुलना कुत्ते से कैसे क़ुबूल कर लें तो यह नात जब गाई जाती है तो कुत्ते की जगह शैदा यानी आशिक़ लफ़्ज़ का इस्तेमाल किया जाता है ।
शिया धर्मगुरु कल्बे आबिद , कल्बे सादिक , कल्बे जव्वाद भी कुत्ते से गुरेज़ नहीं करते । कल्ब के मानी कुत्ता ही होता है । अपने को सादिक , आबिद और जव्वाद का कुत्ता मानना गौरव की बात समझी जाती है ।
कुत्ता ईश्वर की बनाई हुई अद्भुत कृति है विनम्रता की प्रतिमूर्ति , स्वामिभक्ति में प्राण न्यौछावर करने वाला और दिलेरी में शेर से भी भिड़ जाने वाला । कुत्ते का अपमान करना ईश्वर का अपमान करना है । अपमान रचयिता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे । मशहूर पेंटिंग मोनालीसा की अगर आप तारीफ करते हैं तो वास्तव में वह तारीफ पेंटर लिओनार्डो द विंसी की ही है ।
ये चाहें तो दुनिया को अपना बना लें
ये आक़ाओं की हड्डियाँ तक चबा लें
कोई इनको अहसासे ज़िल्लत दिला दे
कोई इनकी सोई हुई दुम हिला दे ( फ़ैज़)
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)