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डिजाइनर नैरेटिव में बदलते सवालों पर ध्यान देने की क्यों आवश्यकता है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
खबर जब आई थी कि पीयूष जैन के घर पर रेड पड़ी है और पीयूष जैन समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं, तब डिजाइनर मीडिया में एक ही प्रश्न तैर रहा था कि क्या चुनाव के समय में विरोधियों को दबाने के लिए यह कार्रवाई की जा रही है?

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अखिलेश यादव ने कहा था कि अभी तो बस आईटी ही आया है, अभी इईडी आएगा, सीबीआई आएगी। बड़े-बड़े प्राइमटाइम ने मोर्चा संभाल लिया था कि सरकार अपने नेताओं मंत्रियों पर छापा क्यों नहीं मरवाती?

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आज जब अरबों के हिसाब से रुपया, क्विंटल के हिसाब से चंदन का तेल और पसेरी के हिसाब से सोना-चांदी निकल कर सामने आया, तब दरबारी मीडिया ने यह प्रश्न गायब ही कर दिया कि सरकार ने चुनावी राजनीति के लिए रेड करवाया।

अब समाजवाद वाले बता रहे हैं कि ये कारोबारी भाजपाई ही हैं। सरकार ने गलती से अपने ही कारोबारी के ऊपर रेड डलवा लिया। जबकि यह पहले ही स्पष्ट हो चुका था कि पीयूष जैन पुष्पराज जैन का ही साला है। यह भी मान लिया जाए यदि की गलती से अपने ही कारोबारी पर सरकार ने रेड डलवाया तो कम से कम अपने कहे पर कायम तो है कि “ना खाएंगे, ना खाने देंगे”।

मैग्सेसे कुमार तो जख्मी हो गए हैं। बता रहे हैं कि यह तो व्यापारियों पर हमला हैं। पीयूष जैन ने तो स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल बनवाया था। जीएसटी लागू होने के बाद भी यदि ब्लैक मनी इकट्ठा हो रहा है तो यह जीएसटी की विफलता है। पता नहीं ऐसी पत्रकारिता को कैसे लोग सराहते हैं।

जिस मैग्सेसे पत्रकारिता ने सवाल पूछने के नाम पर अपना एक बाजार खड़ा किया था, आज उसी बाजार में उनके ही सवालों का मूल्य रद्दी भर भी नहीं रह गया है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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