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रक्षाबन्धन के समय को लेकर थोड़ा सा मतभेद क्यो बना हुआ है?

- सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
रक्षाबन्धन के समय को लेकर थोड़ा सा मतभेद बना हुआ है। हमारी परम्पराओं में ऐसे मतभेद नए नहीं हैं। अनेक पर्वों के समय को लेकर दो मत बन जाते हैं। यहाँ तक कि अनेक तीर्थों को लेकर भी कई कई मत हो जाते हैं। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को लेकर दो मत हैं। कुछ परंपराएं कहती हैं कि यह ज्योतिर्लिंग परली, महाराष्ट्र में है, तो कुछ स्थान के लोग इसे देवघर झारखंड में मानते हैं।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के स्थान को लेकर भी दो मत हैं। एक मत के अनुसार यह स्थान महाराष्ट्र में है, तो दूसरे मत के अनुसार यह स्थान आसाम में हैं। दोनों ही स्थानों को मानने वालों की संख्या करोड़ों में है।
माँ भगवती के तीसरे शक्तिपीठ को लेकर तो तीन तीन मान्यताएं हैं। कुछ जन इस स्थान को कराँची के निकट बताते हैं, तो कुछ जन इसे ब्लूचिस्तान में हिंगलाज देवी के निकट करवीपुर में। इसी के साथ इस स्थान को कोल्हापुर में भी मानने वालों की बहुत बड़ी संख्या है।
एक सामान्य व्यक्ति ऐसी स्थिति में असहज हो जाता है कि हम किसे सही मानें और किसे गलत। क्या ऐसा सम्भव है कि इस विवाद पर कोई व्यक्ति किसी एक को मानने से इनकार कर दे? मैं स्वयं बाबा बैद्यनाथ का स्थान देवघर, झारखंड में ही मानता हूं, क्योंकि हमारे यहाँ पीढ़ियों से लोग उसी स्थान में श्रद्धा रखते आये हैं। तो क्या इस आधार पर परली, महाराष्ट्र को नकारा जा सकता है? नहीं।
फिर किया जाय? किस स्थान को सही स्थान मानें? पर्व के दो दिन हो जाने पर किस दिन को सही मान कर मनाएं?
तो सुनिये। हमारी धार्मिक व्यवस्था किसी एक पुस्तक या एक सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति की आज्ञा के आधार पर नहीं चलती। हमारे यहाँ शास्त्र के साथ साथ लोक की भी अपनी रीतियाँ हैं, अपने नियम हैं। और लोक की परंपराएं कई बार गाँव बदलते ही बदल जाती हैं।
ऐसी स्थिति में सबसे बेहतर चयन यही होगा कि हम अपने कुल-पुरोहित की सुनें। आपके क्षेत्र और आपके कुल की परम्परा आपके कुलपुरोहित हरिद्वार वाले किसी विद्वान से अधिक जानते होंगे। यदि टीवी पर बैठे कोई बड़े महात्मा जी सोमवार को पर्व बता रहे हों, और हमारे कुलपुरोहित उसी पर्व को मंगल को बताएं या हमारे गाँव में वह पर्व मंगल को मनाया जा रहा हो, तो हमारे हिसाब से मंगल ही सही होगा। हाँ, यह अवश्य होना चाहिये कि हम सोमवार को पर्व मनाने वालों को भी मूर्ख घोषित न करें। आम जन के लिए धर्म विवाद का विषय नहीं होना चाहिये।
और हाँ। ऐसे विवादों पर यदि एकपक्षीय राय देना हो या शास्त्रार्थ करना हो तो उसके लिए विद्वानों के बीच जाना चाहिये। फेसबुक फ़रियाने की जगह नहीं।
और हाँ। हमारे यहाँ की मान्यताओं के अनुसार रक्षाबन्धन 31 अगस्त को है, क्योंकि उस दिन पूर्णिमा में सूर्योदय हो रहा है सो दिन भर पूर्णिमा ही मानी जायेगी।😊

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साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार है)
गोपालगंज, बिहार।

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