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हिमानता बिसवा सरमा के इंडिया बिलॉन्ग्स टू हिन्दू कहने पर पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से क्यों गूंज उठता है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
एक इंटरव्यू में हिमानता बिसवा सरमा(Himanta Biswa Sarma) कहते हैं, “इंडिया बिलॉन्ग्स टू हिन्दू”(India belongs to Hindu)और पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है। इतने में ही पत्रकार महोदया काउंटर करती हैं, “आई थिंक इंडिया बिलॉन्ग्स टू इंडियन”। हिमानता जी बड़ी सुविधा से फिर उत्तर देते हैं, “इंडियन वर्ड केम इन 1947, फॉर 7 थाउजेन इयर्स वी अर नोन एज अ हिंदू।”

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हिमानता बिसवा सरमा द्वारा कही गई यह बात केवल नागरिक के लिए ही नहीं, यह सत्य भारत के लिए भी है। भारत की लिखित पहचान हजारों बरस से है। कंगना राणावत एक कदम और आगे बढ़ कर ऐसे ही किसी जर्नलिस्ट को जवाब देती है, कहती हैं- अगर अंग्रेजों के आने से पहले भारत का कोई कंसेप्ट नहीं था तो फिर महाभारत क्या था?

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इसलिए गांधी को लेकर कोई हमें यह न धमकाए कि गांधी से ही इस देश की पहचान है। बिल्कुल नहीं। इस देश की पहचान गांधी के आगमन से हजारों साल पहले से है। हद तो तब हो गई जब सौ-डेढ़ सौ साल पहले जन्म लिया कोई व्यक्ति के बारे में कहा जाए कि इस देश का पिता जन्म लिया।

हाँ, राम-कृष्ण की धरती वाले इस भारत में असंख्य महान सपूतों में अवश्य जन्म लिया। गांधी ना होते तब भी भारत होता। आजाद भारत भी होता। और आजाद भारत का इतिहास कदाचित 47 से पहले ही आरंभ हो जाता।

लोग पूछते हैं ना, गांधी और कांग्रेस के सिवाय बाकियों ने कुछ किया क्यों नहीं? यही तो मेरा उत्तर है कि कांग्रेस और गांधी ब्रिटेन के सेफ्टी वाल्व ही तो बनाए गए थे। ताकि कोई कुछ कर ना पाए। सुभाष चंद्र बोस की 1941 में बर्लिन में इंडियन लीग की स्थापना से ब्रिटिशों की सुरक्षा के लिए ही तो गांधी ने क्विट इंडिया मूवमेंट चलाया था। आखिरकार इस खेल में भी गांधी जीते और सुभाष हार गए। भले देश के एक सपूत के तौर पर सुभाष चंद्र बोस विजयी हुए।

इसलिए यह स्थापित कर बड़ी भूल की गई कि गांधी के बिना भारत नहीं। गांधी नहीं तो कोई और सही, लेकिन भारत था, है और रहेगा।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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