शरद पवार की बात और वायदे की औकात दो कौड़ी की भी क्यो नहीं रह गयी?
शरद पवार की निम्न स्तर की राजनीतिक नंगई का विश्लेषण ।
Positive India:Satish Chandra Mishra:
ऐसी किसी मीटिंग या डील के अपने अधिकार को शरद पवार ने डेढ़ साल पहले अपनी करतूतों से अपने हाथ से जला कर राख कर दिया था….
अहमदाबाद में अमित शाह के साथ शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल की गुप्त भेंट की खबर परसों शाम तेजी से गर्म हुई और सोशल मीडिया में जंगल की आग की तरह फैल गयी। इसी के साथ “कउव्वा कान ले गया” वाली शैली में “डील हो गयी… डील हो गयी…” का हंगामा हुड़दंग शुरू हो गया है। यद्यपि खबर की पुष्टि या खंडन किसी ने नहीं किया है। सच क्या है, यह भी किसी को ज्ञात नहीं है। लेकिन मैं इस खबर को सच ही मान कर यह पोस्ट लिख रहा हूं। यदि ऐसी कोई मीटिंग और उसमें कोई तथाकथित डील हुई भी है तब भी मेरे अनुसार उस मीटिंग और उस तथाकथित डील का महत्व कचरे की टोकरी से अधिक नहीं है क्योंकि ऐसी किसी मीटिंग या डील के अपने अधिकार को शरद पवार ने डेढ़ साल पहले अपनी करतूतों से अपने हाथ से जला कर राख कर दिया था। आज शरद पवार की बात और वायदे की औकात दो कौड़ी की भी नहीं रह गयी है, विशेषकर प्रधानमंत्री मोदीं के दरबार में। सम्भवतः यही कारण है कि उस तथाकथित मीटिंग से लौटने के कुछ घंटों बाद ही शरद पवार की तबियत खराब होने और ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती होने की खबर गर्म हो गयी है।
उपरोक्त संदर्भ में मैंने लगभग डेढ़ साल पहले, 28 नवम्बर 2019 को बहुत विस्तृत पोस्ट लिखी थी। आज उसी पोस्ट का एक महत्वपूर्ण अंश यहां पुनः प्रस्तुत कर रहा हूं। उस अंश को पढ़ने के पश्चात आप आसानी से समझ जाएंगे कि शरद पवार की बात और वायदे की औकात अब दो कौड़ी की भी क्यों नहीं रह गयी है।
प्रस्तुत है वह अंश…
20 नवम्बर की दोपहर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से शरद पवार ने लगभग एक घण्टे की मुलाकात अकेले की थी। एनसीपी के किसी भी छोटे या बड़े नेता को वो अपने साथ लेकर नहीं गया था। उस मुलाकात के बाद बाहर निकले शरद पवार ने कहा था कि उसने महाराष्ट्र के किसानों की समस्या पर बात करने के लिए बंद कमरे में प्रधानमंत्री मोदी से एक घण्टे लम्बी मुलाकात की है। ,
शरद पवार की इस बात पर उन्हीं राजनीतिक विश्लेषकों ने विश्वास कर लिया था जिनकी बुद्धि वास्तव में घास चरने गई थी। इस मुलाकात के बाद शरद पवार 22 की सुबह मुम्बई लौटा था और 22 की रात को ही अजित पवार एनसीपी के समर्थन की चिट्ठी लेकर फणनवीस के पास पहुंच गया था। उसकी इस बात पर ज्यादा सोच विचार किए बिना उसको साथ ले जाकर देवेन्द्र फडणवीस ने वो चिट्ठी गवर्नर को सौंप दी थी। परिणामस्वरूप रात में ही कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन हटाने की संस्तुति की थी और राष्ट्रपति ने सवेरे के सूर्योदय के साथ ही उस संस्तुति को स्वीकार कर लिया था। अपने पेशाब से डैम भर देने की गाली देकर किसानों को भगा देने के लिए जग कुख्यात हुए भ्रष्टाचार के पुतले अजित पवार का राजनीतिक कद क्या इतना बड़ा और भारी है कि वो अचानक रंग बदल कर कुछ कहे और उसके कहे पर महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र का राज्यपाल, देश का प्रधानमंत्री, देश का राष्ट्रपति इतना विश्वास कर लें कि उसके कहे पर तत्काल फैसला लेकर त्वरित कार्रवाई कर डालें.?
इस बात पर भी वही राजनीतिक विश्लेषक विश्वास कर सकते हैं जिनकी बुद्धि वास्तव में घास चरने गई हो।
दरअसल इस पूरे घटनाक्रम में अजित पवार और देवेन्द्र फडणवीस की भूमिका मात्र एक डाकिए की ही थी।
इस सनसनीखेज राजनीतिक थ्रिलर की पटकथा 20 नवम्बर की दोपहर प्रधानमंत्री से अकेले मिलने पहुंचे शरद पवार ने उस एक घण्टे की मुलाक़ात में लिख दी थी। राजनीति की दुनिया में शरद पवार सरीखे राजनीतिक कद और पद वाले व्यक्ति द्वारा एकांत में कही गयी बात को बहुत वजनदार माना जाता है। विशेषकर यह वजन तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब ऐसा व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री से बंद कमरे में अकेले में कोई बात कहता करता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी शरद पवार की बातों पर विश्वास कर लिया था।
यही वह बिंदु था जहां प्रधानमंत्री मोदी बुरी तरह मात खा गए थे। वह यह समझ ही नहीं पाए कि उनके सामने बैठा एक कद्दावर राष्ट्रीय नेता उनके साथ सड़कछाप राजनीतिक मक्कारी का खेल खेलने आया है।
यही कारण है कि उन्होंने देवेन्द्र फणनवीस को शपथ लेने के कुछ क्षणों बाद ही बधाई देने में कोई संकोच नहीं किया था। जबकि येदियुरप्पा ने जब जबरिया सरकार बनाई थी तो प्रधानमंत्री ने उस समय बधाई देने के बजाय मौन साधे रखा था।
जहां तक मैंने देखा जाना समझा है, उस हिसाब से नरेन्द्र मोदी से सम्भवतः पहली बार इतनी बड़ी राजनीतिक चूक हुई है। इसका कारण भी सम्भवतः यही है कि दो कद्दावर राष्ट्रीय नेताओं के मध्य हुई वार्ता और विश्वास का उपयोग दोनों में से एक नेता द्वारा इतने निम्न स्तर की राजनीतिक नंगई के लिए किया जाए, ऐसा घृणित राजनीतिक उदाहरण देश ने इससे पहले कभी देखा सुना नहीं था।
इसीलिए कल मैंने लिखा था कि महाराष्ट्र का घटनाक्रम देवेन्द्र फणनवीस का राजनीतिक नौसिखियापन या उनकी अनुभवहीनता का परिणाम नहीं है। यह घटनाक्रम अजित पवार की भी किसी धूर्तता का परिणाम नहीं है। वह तो मात्र एक मोहरा था जिसे शरद पवार ने आगे बढ़ाया था। यह पूरा घटनाक्रम राजनीति के उच्चतम स्तर पर निम्नतम स्तर की सड़कछाप राजनीति के घटिया हथकंडे आजमाने अपनाने की शरद पवार की घिनौनी करतूत का ही परिणाम था। अपनी इस करतूत से शरद पवार ने राजनीति की दुनिया मे व्यक्तिगत सम्बन्धों पर विश्वास की कितनी अनमोल पूंजी गंवा दी है। इसका अनुभव जब शरद पवार को होगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री मोदी ऐसे सबक कभी भूलते नहीं हैं। प्रतीक्षा करिये, शरद पवार द्वारा सिखाए गए इस सबक को प्रधानमंत्री मोदी चक्रवृद्धि ब्याज के साथ वापस शरद पवार को लौटाएंगे। अपनी करतूतों से शरद पवार प्रधानमंत्री मोदी को वह अवसर शीघ्र ही प्रदान करेगा।”
डेढ़ साल पहले की मेरी पोस्ट का उपरोक्त अंश मेरे विचार से उन दुःखी आत्माओं को शांति प्रदान करेगा जो पिछले 2 दिनों से “डील हो गयी… डील हो गयी…” का हंगामा हुड़दंग कर रही हैं।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार)