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नफरत की पहचान मुनव्वर फारुकी ने वामपंथियों का दिल क्यों जीत लिया ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
सनातन आस्था के विरुद्ध नफरत फैलाने के जुर्म में जेल काट चुका मुनव्वर फारुकी अपने सॉफ्ट अंदाज से एक बार फिर वामपंथियों का दिल जीत लिया है।

बेंगलुरु में आयोजित होने वाली एक कॉमेडी शो रद्द होने के पश्चात् मुनव्वर का कहना है “नफरत जीत गई और एक कलाकार हार गया”। जो फारुकी स्वयं नफरत की एक पहचान है उसके मुंह से नफरत के खिलाफ ऐसे मधुर बोल सुनकर जैसे स्वयं नफरत ही शरमा जाए।

उसका नफरत उजागर होते ही वामपंथी खेमा उसे लहरिया लुटिहऽ राजा जी तान के चदरिया अंदाज में कवर फायर देने लगता है। जमानत नहीं होने पर हाईकोर्ट से उसकी जमानत कराता है। फिर चुपचाप से बिना कोई प्रतिक्रिया के मुनव्वर फिर अपने शो अटेंड करने की तैयारी करने लगता है। बेंगलुरु में होने वाला उसका 12वां ऐसा शो था जो लॉ एंड ऑर्डर मामलों के कारण रद्द कर दिया गया।

मुनव्वर से पूछना चाहता हूं, क्यों मुनव्वर इतनी जल्दी क्यों हार गए? मानव समाज ने तो नफरत के सामने अपने 57 देश हार गए। फिर भी हिम्मत किए हुए हैं। हिम्मत की मिसाल देखनी हो तो इंडोनेशिया को देख लो। भारतीयों को ही देख लो, 1000 साल से संघर्ष कर रहे हैं, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश सब हार गए। फिर भी हिम्मत किए हुए हैं। विकास के लबादे में दिल्ली के सिंहासन पर अपने धर्म रक्षक बैठा लिए हैं। उत्तर प्रदेश से अगले कैंडिडेचर के लिए परीक्षा है अगली साल।

बावजूद इसके कि तुम भारत के कौन सी दिशा में शोज आयोजित कराना चाहते हो? पंजाब, राजस्थान, मद्रास, बंगाल हर दिशा तो तुम्हारे लिए अनुकूल ही है अभी।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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