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यसरब शहर का नाम बदल कर मदीना क्यों रखा गया ?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India: Rajkamal Goswami:
मुसलमान कोई अलग से नस्ल या क़ौम नहीं है । किसी भी नस्ल का आदमी मुसलमान बन सकता है । बहादुरी किसी क़ौम की बपौती नहीं है इसलिए मुसलमानों में भी बहादुर पाये जाते हैं । वह कोई ख़ास फ़र्क़ डालने वाली बात नहीं है ।

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फ़र्क़ इस्लाम से पड़ता है । जब इस्लाम किसी मुल्क पर क़ब्ज़ा करता है उसकी प्राचीन सभ्यता संस्कृति धर्म सब नष्ट कर देता है । इस्लाम के पूर्व का जो कुछ भी है वह जहालत का युग है उस युग की पुस्तकें बचेंगी तो जहालत को फिर से जड़ जमाने का मौक़ा मिलेगा इसलिए इस्लाम जहाँ भी पहुँचा उन्होंने सारे पुस्तकालय जला डाले । जब असली किताब आ गई तो नक़ली शैतानी किताबों का क्या काम । नालंदा कोई पहली यूनिवर्सिटी नहीं है जिसे इस्लाम ने जलाया इससे पहले अलेक्ज़ेंड्रिया की सदियों पुरानी लाइब्रेरी भी फूंक ताप चुकी थी ख़लीफ़ा उमर की फ़ौज ।

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जीते हुए मुल्क के सारे शहरों के नाम बदल दिए जाते थे और तो और जिन इंसानों को मुसलमान बनाया जाता था उनके भी नाम बदल कर उनकी पहचान मिटा देने की परंपरा है ।सबसे पहले यसरब शहर का नाम बदल कर मदीना रखा गया । मुर्शीद कुली ख़ान जो बंगाल के नवाब थे कोई पठान या ख़ान नहीं थे बल्कि पंडित सूर्य नारायण मिश्रा हुआ करते थे इस्लाम क़ुबूल करने से पहले ।

इस्लाम क़ुबूल करने से कोई बहादुर नहीं हो जाता लेकिन क्रूर हो जाता है । सौ बार हार कर मैदान से भाग जाने में उसे कोई शर्म नहीं पर एक बार जीत गया तो पूरी क्रूरता के साथ सब कुछ बर्बाद कर देगा । ऐसा नहीं है कि विजयनगर साम्राज्य ने बहमनी सल्तनतों को पहले हराया न हो पर बहमनी कॉनफेडरेशन केवल तालीकोट का एक युद्ध जीती और उन्होंने सदा के लिये विजयनगर को नष्ट कर दिया । हाम्पी में आज भी विजयनगर के खंडहर देखे जा सकते हैं । भारत ने ७१ के युद्ध में ९१००० सैनिक वापस कर दिए लेकिन मध्यकालीन इस्लामी विजेता के हत्थे इतने युद्धबंदी आ जाते तो मृत्यु और इस्लाम में से एक ही चुनना पड़ता ।

ख़ून से तुम घबराते हो और खून से अपनी यारी है । उन्हें बचपन से बकरा हलाल करने की ट्रेनिंग मिली है । शुरु शुरू में उनके बच्चे भी बकरा कटते हुए देख नहीं पाते । ख़ून से वह भी घबराते हैं लेकिन ट्रेनिंग इंसान को जल्लाद बना देती है ।

बालक को जन्म देना पालना पोसना पढ़ाना लिखाना बड़ा कठिन काम है । हज्जाम के लिए उस पर उस्तरा चलाना बड़ी मामूली बात है ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं
#बदायूँ

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