www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

एनजीओ चलाने वाले अधिकांश वामपंथी लेखक ऐक्टिविस्ट क्यो बन गए?

-दयानंद पांडेय की कलम से-

Ad 1

Positive India:Dayand Paney:
वामपंथी लेखकों से जो लोग विमर्श की चोंच लड़ाते हैं , उन को देख कर तरस आता है। क्यों कि अब उन के यहां विमर्श का मतलब या तो डिक्टेशन सुनना है या हां में हां मिलाना है। जो उन का डिक्टेशन यानी इमला नहीं सुन सकता है , वह भाजपाई , संघी , हिंदुत्ववादी आदि-इत्यादि होता है। तो विमर्श के नौसिखियों से पूछता हूं कि आप लोग कहां फंस गए हैं। गो कि कुछ पके और तजुर्बेकार दोस्तों को भी इस विमर्श के दलदल में फंसे देखता हूं तो हंसी आती है। कुछ मित्र तो इन दिनों सफाई पर सफाई का झंडा भी फहरा रहे हैं , नित्य-प्रति।

Gatiman Ad Inside News Ad

तो फिर से पूछता हूं कि आप लोग कहां फंस गए हैं। क्यों कि वामपंथी लेखकों से अब विमर्श करना, दीवार में सिर मारना है। इस्लामिक कट्टरपंथ से , कठमुल्लों से भी ज़्यादा कट्टर वामपंथी लेखक हो चले हैं। बल्कि कट्टरपंथ से भी बड़ा इन का अहंकार होता है। हिमालय से बड़ा अहंकार। तो इन से विमर्श करना सिर्फ़ और सिर्फ़ वक्त बरबाद करना है। इन की चुनी हुई चुप्पी, चुने हुए विरोध किसी बैल की तरह इन्हें अपने जुआठ में बांधे रहते हैं। तेली के बैल की तरह यह लोग अपनी परिधि नहीं छोड़ सकते। किसी सूरत नहीं छोड़ सकते। यह बीमार लोग हैं। बहुत बीमार।

Naryana Health Ad

तिस पर अधिकांश वामपंथी लेखक एन जी ओ चलाने वाले लोग हैं।कभी मानव संसाधन मंत्री रहे अर्जुन सिंह ने इन लोगों के एन जी ओ को विपुल धनराशि दे-दे कर इन की आदतें बिगाड़ दीं । मनबढ़ बना दिया। कहूं कि अपना कुत्ता बना लिया। यह एन जी ओ अनुदान का काकस मोदी राज ने तोड़ दिया है। किताबों की सारी सरकारी खरीद, सारी विदेश यात्राओं पर ग्रहण लगा दिया है। तो यह बिन पानी की मछली बन गए हैं। छटपटा रहे हैं। हर असहमत को संघी , हिंदुत्ववादी , भाजपाई कहने की मिर्गी का दौरा रह-रह कर पड़ रहा है ।

हालत यह हो गई है कि अगर आप कह दीजिए कि सूरज पूरब से उगता है तो यह कहेंगे कि अरे, यह तो दक्षिणपंथी है। संघी है। हिंदुत्ववादी है । जैसे भी हो , इन्हें सच सुनना किसी सूरत गवारा नहीं है। तथ्य से नहीं, विचारधारा के थर्मामीटर से हर बात को नापने की बीमारी है।

इन की विचारधारा अगर इन्हें बता देती है कि सूरज पश्चिम से निकलता है तो यह इसी को मानेंगे। ठीक वैसे ही जैसे जब तक अरब में चांद नहीं दिखा तो भारत में नहीं दिखा मान लेने की परंपरा है। अरब में चांद दिखा तब ही ईद मनेगी , वरना नहीं। खुदा न खास्ता अगर आप ने टोक दिया कि नहीं, सूरज तो पूरब से ही निकलता है। तो यह फौरन आप को संघी आदि का सर्टिफिकेट थमा कर खुश हो लेंगे। गोया पूरा देश ही संघी हो गया हो। सो, कुतर्क की इन्हें लत है। तो इन्हें बिन पानी के छोड़ दीजिए। इन की चर्चा होती है तो इन्हें लगता है, यह अभी भी ताकतवर हैं। तो इन्हें बेदम ही छोड़ दीजिए। इन की सांस उखड़ चुकी है।

इसी लिए यह लोग अब लिखना छोड़ कर ऐक्टिविस्ट बन गए हैं। इन के पास अब रचना नहीं, सिर्फ़ फतवा है। भौ-भौ और कांव-कांव ही शेष रह गया है इन के हिस्से। तो दोस्तों , इन्हें इन के हाल पर छोड़ कर आगे बढ़ लिजिए। कुछ अप्रतिम, कुछ सार्थक रचिए।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)

Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.