www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

रावण के असल चरित्र के साथ छेड़छाड़ क्यो किया जा रहा है ?

-विशाल झा की कलम से-

Ad 1

Positive India:Vishal Jha:
अब यह प्रश्न पूर्णतया शांत हो चुका है कि रावण को हर साल जलाया जाना क्यों प्रासंगिक है। बल्कि अब यह प्रश्न एक दूसरे स्तर पर शिफ्ट हो रहा है। रावण के असल चरित्र के साथ छेड़छाड़ किया जा रहा है। रावण के चरित्र से शिवभक्ति, ब्राह्मणत्व और विद्वता को खत्म ही कर दिया जाए, तो रावण का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। और स्वाभाविक तौर पर उसके साल दर साल जलाने का प्रश्न भी खत्म हो जाएगा। रावण के चरित्र में फेरबदल दरअसल पहले प्रश्न का ही दूसरा हिस्सा है।

Gatiman Ad Inside News Ad

पश्चिमी विज्ञान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता आज जिस अनुपात में विकसित हो रहा है, रावण के अधार्मिक चरित्र को समझना मानव समाज के लिए उतना ही प्रासंगिक होता जा रहा है। पश्चिमी बुद्धिमत्ता से देखें तो, विद्वान आज कौन है जिसकी नैरेटिव चलती है। भले यह नैरेटिव बार-बार मानव समाज के लिए विध्वंसकारी सिद्ध हुआ हो। भारत में ऐसे तमाम नैरेटिव आज डिजाइनर बुद्धिजीवियों के कब्जे में है। जिसमें मानवाधिकार है, धर्मनिरपेक्षता है, गंगा जमुनी तहजीब है, अमन चैन है, और अब तो इसमें फैक्ट चेक भी शामिल हो गया है। क्योंकि विश्व भर में कत्लेआम के लिए उकसाने वाला मोहम्मद जुबेर अब नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित हो गया है।

Naryana Health Ad

ब्राह्मणत्व तो अब बिना वेदाध्ययन के प्राप्त हो जाता है। क्योंकि यह अब केवल और केवल जन्म आधारित हो गया है। तथापि जन्म के संस्कार से मिलने वाला ब्राह्मणत्व आत्म कल्याण अथवा जगत कल्याण में लगाए जाएं, ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं रह गई है। भारत में तमाम मानव विरोधी नैरेटिव वाले संगठन को देखा जाए, तो वहां कहीं ना कहीं कोई ना कोई ब्राह्मणत्व का दुरुपयोग करता मिल जाएगा।

शिव की भक्ति समकालीन राजनीतिक समाज में जिस प्रकार से कालनेमियों ने आरंभ कर दिया है, एक वक्त आएगा जब यह स्पष्ट करना जरूरी हो जाएगा कि शिव भक्त होना किसी के सदाचारी होने का प्रमाण नहीं है।

आधुनिक समाज में जब बुद्धि, विद्वता, बल और भक्ति युक्त कोई चरित्र हमारे सामने होगा, लेकिन उसका आचरण उसका व्यवहार अधार्मिक होगा, तब हमें वहां रावण जैसे उदाहरण की आवश्यकता पड़ेगी। हम दिखा सकेंगे कि तमाम विशेषताओं के बावजूद धर्म और सदाचरण अनिवार्य है। अर्बन नक्सल हो, डिजाइनर बुद्धिजीवी हो, अथवा फैक्टचेकर्स, तमाम ऐसे तत्वों का हमारा समाज प्रतिवर्ष दहन करेगा। लेकिन जब रावण के किरदार से उसके तमाम गुणों को हटाकर उसे एक बर्बर और असभ्य किरदार में बदल दिया जाए, तो प्रतिवर्ष उसे दहन करने की महत्ता क्या रह जाएगी?

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.