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तो फिर नरेंद्र मोदी की यह कमीज की कॉलर की बटन मुसलसल बंद क्यों है ?

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
किसी कुंठित कांग्रेसीजन या विषैले वामपंथियों के लिए यह शोध का विषय है कि नरेंद्र दामोदर दास की कमीज की कॉलर की बटन इन दिनों निरंतर बंद मिल रही है। पूरी सेक्यूलर ब्रिगेड भी इस शोध में संलग्न हो सकती है। सुना है कि अभिनेता देवानंद अपने चेहरे को चुस्त-दुरुस्त और जवान रखने के लिए , झुर्रियां न दिखें , प्लास्टिक सर्जरी करवाते रहते थे। तो चेहरे के नीचे गले पर , सीने पर काट-पीट के निशान पड़ते रहते थे। सो कमीज़ की कॉलर के बटन बंद कर उसे छुपाते थे। दिलीप कुमार और अन्य अभिनेताओं के बारे में भी ऐसा सुनने को मिलता था। अब भी अन्य अभिनेताओं के बारे में । तमाम अभिनेत्रियों के तो इस बाबत अजब-गज़ब किस्से हैं। चेहरे ही नहीं अन्य जगहों के बारे में भी अकथ कहानियां हैं। माइकल जैक्सन की तो अनंत कथाएं हैं प्लास्टिक सर्जरी के।

तो क्या नरेंद्र दामोदर दास मोदी के साथ भी ऐसा कुछ हुआ है ? लेकिन प्लास्टिक सर्जरी या किसी अन्य सर्जरी के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है। कुछ दिन सार्वजनिक जीवन से भी अनुपस्थित रहना पड़ता है। पर बकौल विषैले वामपंथियों के नरेंद्र दामोदर दास मोदी को टी वी कैमरे के बिना रहने का अभ्यास नहीं है। बीमारी है , यह मोदी की। परंतु इन दिनों क्या बीते पचीस-तीस बरसों से एक भी दिन वह कैमरे के बिना नहीं रहे हैं। हर दिन सार्वजनिक उपस्थिति भी दर्ज करवाते रहे हैं। कम से कम गुजरात के तीन बार मुख्यमंत्री रहते और नौ बरस से प्रधान मंत्री रहते तो हर दिन कैमरा उन के आगे-पीछे है।

तो फिर नरेंद्र दामोदर दास की कमीज की कॉलर की बटन क्यों बंद है ? मुसलसल बंद है।

मोदी के कुर्ते के कॉलर की बटन बंद होना तो समझ आता है पर यह कमीज़ की कॉलर की ? इसी लिए कहा कि कुंठित कांग्रेसी जन या विषैले वामपंथी के लिए यह शोध का विषय है। यह लोग चाहें तो कुछ वैज्ञानिक , कुछ जस्टिस आदि-इत्यादि को भी इस काम पर लगा सकते हैं। यह तमाम खलिहर यूट्यूबर भी अपना असाइनमेंट बना सकते हैं। यथा रवीश , पुण्य प्रसून , अभिसार , अंजुम आदि-इत्यादि। अरे हां , अरविंद केजरीवाल और उन के भुखाए लोगों को तो मैं भूल ही गया। यह और ऐसे अन्य कुंठित क्रांतिकारीजन भी ज़रूर पता लगाएं कि यह मोदी के कमीज के कॉलर की बटन बंद क्यों है ? कहीं 2024 की विजय के लिए कोई जोग-टोक तो नहीं है ? शोध बहुत ज़रूरी है , कुंठित और विषैलेजनों के लिए। फिर एक रास्ता यह भी है कि शोध जाए भाड़ में कम से कम संसद का अगला सत्र तो इस एक बिंदु पर ठप्प हो ही सकता है !

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)

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