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शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य की बढ़ती सीमाएं अचानक सिकुड़ने क्यों लगी थीं ?

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
सन 1680 ई में शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य की बढ़ती सीमाएं अचानक सिकुड़ने लगी थीं। ऐसा अनायास ही नहीं था, उस महान चामत्कारिक व्यक्तित्व के चले जाने के बाद मराठों को सम्भलने में कुछ वर्ष तो लगने ही थे, सो लगे भी। 1680 से अगले तीस वर्ष केवल एक बड़े वृक्ष के गिरने के बाद उभरे सूनेपन के थे, जिसमें पारिवारिक कलह था, एक दूसरे को पीछे छोड़ने की चालें थीं और था हिंदवी स्वराज के मूल लक्ष्य से भटकाव! शिवाजी जैसे महान व्यक्तित्व के जाने के बाद इतना होना ही था।

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पर! सन 1713 में मराठा साम्राज्य को एक ऐसा व्यक्ति मिला, जिसने शिवाजी के सपनों को पूरा करने की जिम्मेवारी अपने कंधों पर ली, और आज के लगभग सात-आठ जिलों के बराबर क्षेत्र में बचे साम्राज्य की सीमाओं को अटक से कटक तक पहुँचाने का मार्ग प्रशस्त किया। वे थे कोंकड के चित्तपावन कुल में जन्में पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट्ट! सामान्य परिवार से निकला युवक जो अपनी योग्यता के बल पर मराठा साम्राज्य का दूसरा संस्थापक कहलाया।अपनी योग्यता और निष्ठा के कारण एक सामान्य लिपिक से मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्री और फिर महान साम्राज्य निर्माता होने तक की यात्रा ऐसी है जो किसी के लिए भी प्रेरणा का स्रोत होगी।

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मात्र कुछ वर्षों पूर्व तक शिवाजी महाराज, उनके पुत्र शम्भुजी और पोते शाहूजी को जिस मुगल शासन की कैद में रहना पड़ा था, उसी मुगल शासन की राजधानी पर एक दिन मात्र 15000 सैनिकों के साथ बालाजी पहुँचे और पल भर में मुगल सत्ता बदल गयी। दिल्ली की गद्दी पर फर्रूखशियर को हटा कर उस रफी-उद- दरजाक को बैठाया गया, जिसने पेशवा को सरदेशमुखी(टैक्स) देना स्वीकार किया था। मुगलों को टैक्स देने वाले राज्य को मुगलों से टैक्स लेने वाला राज्य बनाने का श्रेय इसी महान कूटनीतिज्ञ को जाता है।

यदि आप पुरंदरे की संधि के बारे में जानते हैं, तो जानते होंगे कि यह एक बिल्कुल ही अपमानजनक संधि थी। इस संधि के बाद शिवाजी महाराज को अपने 23 किले और बहुत बड़ा भूभाग मुगलों को सौंप देना पड़ा था। इसका बदला बालाजी ने ही लिया था। सन 1719 में मुगल सूबेदार सैयद हुसैन से हुई संधि में शिवाजी द्वारा जीता गया समूचा क्षेत्र वापस मिला, और मिला मुगलों के क्षेत्र से भी चौथ और सरदेशमुखी वसूलने के अधिकार। इतिहास के विद्यार्थी जानते होंगे कि इस संधि से ही मुगलों की उल्टी गिनती शुरू हुई थी।

शिवाजी महाराज के पोते शाहूजी अपनी माता के साथ औरंगजेब की कैद में थे। सन 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों ने यह सोच कर उन्हें कैद से छोड़ दिया कि इससे मराठाओं में उत्तराधिकार को लेकर कलह बढ़ेगा और वे उनकी ओर से निश्चिन्त रहेंगे। ऐसा ही हुआ भी। मराठा राज्य की वास्तविक प्रगति तभी शुरू हुई, जब डोर बालाजी के हाथ मे आई। शाहूजी महाराज की माता को मुगलों की कैद से वापस लाने वाले बालाजी विश्वनाथ ही थे।

बालाजी के सम्बंध में कहा जाता है कि उन्हें घोड़े पर चढ़ने में परेशानी होती थी। सम्भव है कि अनेक इतिहासकार उन्हें बड़ा योद्धा न भी मानते हों। पर अपनी कूटनीति के बल पर उन्होंने जो अर्जित किया वह बड़े बड़े योद्धा लड़ाइयां लड़ कर भी अर्जित नहीं कर पाते।

वैसे इन सब के बाद, मराठा राज्य को मराठा साम्राज्य बनाने की नींव रखने वाले पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट्ट इस बात के लिए भी याद रखे जाने चाहियें कि वे मध्यकाल के सर्वश्रेष्ठ योद्धा पेशवा बाजीराव बल्लाळ भट्ट के पिता थे।

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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