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लाल किले की प्राचीर से मोदी शासन का यह 10वाॅं संवाद अलग क्यों है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
लाल किले की प्राचीर से मोदी शासन का यह 10वाॅं संवाद है। 11वाॅं संवाद होगा या नहीं, यह देश पर निर्भर करता है। इस दृष्टिकोण से इस संवाद में बाकी सारे टर्म तो स्वाभाविक और राजनीतिक हैं, लेकिन एक टर्म बाकी 9 संबोधनों से अलग है और महत्वपूर्ण है। इसे हम अगले शासन के लिए देश का विजन भी कह सकते हैं, राजनीतिक भाषा में मेनिफेस्टो भी।

मोदी के दो हिस्टोरिक शासनकाल में तमाम आरोप प्रत्यारोप हो सकते हैं। लेकिन कोई ये नहीं कह सकता है कि उन्होंने कभी किसी मंच से एक भी ऐसी बातें की हों, जिसको लेकर ’14 से पहले गुजरात शासन के आधार पर उनके प्रति एक नैरेटिव सेट किया गया था। उन्होंने विकास का नारा पकड़ा और लगातार अपने दो शासनकाल में उसे निभाते आ रहे हैं। यहां तक के उन्होंने हर ऐसी संभावना को लगातार दूर करने का काम किया, जो सरकार के स्तर पर विकास से अलग हटकर कोई एजेंडा सेट कर दे। इसका सबसे रोचक उदाहरण है नूपुर शर्मा प्रकरण। शासन का एजेंडा बिल्कुल क्लियर है कि क्या मुद्दे पर रखना है और क्या हटा देना है।

बावजूद हरियाणा का मेवात कांड इस आयाम पर पहुंच चुका है कि वह सामाजिक आन्दोलन की दिशा ले लिया है। 50 से अधिक पंचायतें बैठी हैं। ये कोई प्रायोजित और वैसी खाप पंचायतें नहीं हैं, बल्कि जीवंत पंचायतें जिससे समाज का आकार और दिशा तय होता है, बड़ी कोशिश के बावजूद संविधान भी जिस पंचायत जितनी सफलता हासिल नहीं कर पाता। हरियाणा के पंचायत में आर्थिक बहिष्कार का मोदी के शासन से क्या लेना देना है? जवाब है, प्रत्यक्ष तौर पर कोई लेना देना नहीं। अब, मोदी के 10 वर्षीय शासन के बिना ऐसी पंचायत और ऐसे बहिष्कार की कल्पना करें, संभव है? नहीं। अर्थात् मोदी शासन जितनी साफगोई से चलता चला जा रहा है, उसे स्पष्ट पता है कि किस एजेंडे पर काम करना है और किस एजेंडे पर कोई प्रत्यक्ष काम नहीं करना है, बल्कि वह स्वत: उत्प्रेरित होकर ही सफल हो सकता है।

10वें संबोधन का जो सबसे महत्वपूर्ण टर्म है वह है, ‘तीसरा टर्म’ और ‘विश्व अर्थव्यवस्था में भारत के तीसरे स्थान का लक्ष्य’। बड़ी साफ बात है कि तीसरे टर्म के लिए एक बार फिर बड़ी सफाई से विकास का एजेंडा सेट किया जा रहा है और इस एजेंडे में भारत में समानांतर रूप से चल रहा हिंदू राष्ट्र के विमर्श का कोई स्थान नहीं है। जबकि तीसरे टर्म में भी भारत दोनों दिशाओं में उसी प्रकार समान रूप से आगे बढ़ेगा। यहां ध्यान देने वाली बात है कि पूरे शासन काल के दौरान जब कभी भी हिंदुत्व अथवा धर्म से जुड़ा कोई मुद्दा होता है, उस पर जो लोग बड़ी शीघ्रता से उत्तेजित हो जाते हैं, उन्हें अभी से ही सावधान हो जाना चाहिए कि देश में एक बार फिर मोदी शासन की वापसी हो रही है तो प्रत्यक्ष रूप से विकास के मुद्दे पर ही हो रही है। न कि किसी हिंदुत्व अथवा धर्म के मुद्दे पर।

जय हिन्द!
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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