स्वाति मालीवाल ने अपने ही पिता के चरित्र की बलि क्यो चढ़ा दी ?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
पहले गांव में डायनें हुआ करती थीं। अपने पूरे समाज में हानि पहुंचाने के लिए बुरी शक्तियों का प्रयोग करती थीं। उन बुरी शक्तियों को हासिल करने के लिए, ऐसी जनश्रुति है कि अपने घर से किसी का बलिदान देना होता था।
यही स्वाति मालीवाल(Swati Maliwal) पहले कह चुकी थी कि वह एक फौजी पिता की बेटी है और उसे अपने पिता पर गर्व है। लेकिन विचारधारा का जहर जब दिमाग पर चढ़कर नाचने लगे, तब यह जहर सबसे पहले अपने ही डीएनए को ताड़ना शुरू करता है। कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाटी हाथ, जो घर फूंके आपनों चलो हमारे साथ। डायन बनने की भी यही प्रक्रिया है। स्वाति मालीवाल ने अपने ही पिता के चरित्र की बलि चढ़ा दी।
स्वाति मालीवाल ने जो बयान दिया है वह फेमिनिज्म का सबसे सुकूनजनक बयान होता है। स्मैश पैट्रिआर्की के बिना भारतीय समाज के खिलाफ वोक नहीं हुआ जा सकता। ऐसे में अपने पिता का ही इस्तेमाल कर लेना बहुत सुरक्षित बात होती है। और जब पिता का निधन हो चुका हो तो सोने पर सुहागा। बयान के प्रमाणिकता का भी भय नहीं।
स्वाति मालीवाल को इससे फायदा क्या है? अब स्वाति मालीवाल ऐसा महसूस करने लगी होगी कि पूरे भारतीय समाज को पितृसत्तात्मक बोलकर समाज के खिलाफ वोक हो सकती हैं, जिसके लिए उसे नैतिक ताकत मिल चुकी है।
स्वाति मालीवाल जैसी महिलाएं भारतीय समाज की किसी भी प्रकार प्रतिनिधि नहीं हो सकती। वह भले एक ऐसी संस्था का हिस्सा हो सकती हैं जो संस्थाएं वैश्विक जहरीले विचारधाराओं का एक नेक्सस भर है। भारतीय समाज का प्रतिनिधि भारतीय सभ्यता और संस्कृति है। हम जैसे लोग हैं जो हमारी संस्कृति में आस्था रखते हैं। हम अपने आसपास मालीवाल के बयान अनुसार ना कुछ देखते हैं ना कुछ पाते हैं। हमारे समाज के लिए ये सुनने में भी बातें बिल्कुल नई हैं।
विलायती अरबी समाज के संक्रमण के कारण हमें ऐसी घटनाएं सुनने को अवश्य मिल जाती हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि ऐसी घटनाएं भारतीय समाज के ऊपर दोष के रूप में थोप दिया जाए। यह भारत का दुर्भाग्य है कि मुख्य विमर्श में स्वाति का बयान ही स्थान पाता है। जबकि स्वाति के बयान की सीमा क्या है बातें इस पर होनी चाहिए।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)