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सोमनाथ को भगवान भोलेनाथ का पहला ज्योतिर्लिंग क्यो कहा जाता है?

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
सोमनाथ!
भारत के पश्चिम छोर पर समुद्रतट पर अवस्थित भगवान भोलेनाथ का पहला ज्योतिर्लिंग! पहला क्यों? तो उत्तर है कि भगवान शिव ने यहीं सर्वप्रथम सोम अर्थात चंद्रमा को अपना ज्योति-स्वरूप प्रदान किया था। भगवान शिव द्वारा अपना स्वरूप विग्रह किसी को दिए जाने की यह पहली घटना थी, इसीलिए इसे पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
कथा यह है कि चन्द्रमा का विवाह प्रजापति दक्ष की सत्ताईस पुत्रियों से हुआ था। चन्द्रमा अपनी सत्ताईस पत्नियों में रोहिणी को सर्वाधिक प्रेम करते थे। चन्द्रमा का यह व्यवहार अन्य पत्नियों को बुरा लगता था, सो उन्होंने इसकी शिकायत पिता दक्ष से की। दक्ष ने चन्द्र को समझाने का प्रयत्न तो किया, पर रोहिणी के मोह में डूबे चन्द्र नहीं माने। तब दक्ष ने उन्हें शाप दिया कि उनका क्षय होने लगेगा। अपने ही श्वसुर के शाप से मुक्त होने के लिए सोम ने भगवान शिव की आराधना की, तब शिवकृपा से उनका शाप वरदान में बदल गया। उसी स्थान पर भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग विराजमान है।
अब तनिक कथा का वैज्ञानिक पक्ष देखिये। सोम की सत्ताईस पत्नियां कौन हैं? वे हैं सत्ताईस नक्षत्र। पुरुखों ने समूचे आकाश को सत्ताईस भागों में बांटा, और हर भाग को एक नक्षत्र कहा गया। आकाश के उस प्रत्येक भाग में चमकते तारों के किसी एक समूह के आधार पर किसी आकृति की कल्पना कर के उसे एक नाम दिया। पृथ्वी की परिक्रमा करते चन्द्र रोज किसी एक नक्षत्र के क्षेत्र में होते हैं, जिसे कथा में कहा जाता है कि चन्द्रमा रोज अपनी एक पत्नी के साथ रहते हैं। है न अद्भुत…? अब रोहिणी से अधिक प्रेम होने का क्या अर्थ है? तो यह आप ढूंढिये… कुछ न कुछ तो मिल ही जायेगा।
अब आइये तनिक इतिहास देखा जाय। पवित्र सोमनाथ मंदिर को आतंकियों ने कुल सात बार तोड़ा है। सबसे पहले सन 725 ई में सिंध के सूबेदार अल जुनैद ने, फिर सन 1024 ई. में मोहम्मद गजनवी ने, सन 1297 में अलाउद्दीन खिलजी ने, फिर सन 1395ई में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह ने, फिर 1412 में उसी के बेटे अहमद शाह ने, और सन 1665 तथा 1706 में दो बार औरंगजेब ने।
मन्दिर तोड़ने वाले लोग थे, तो बनाने वालों की कब कमी रही? सनातन परम्परा तो कहती ही है कि आसुरी शक्तियां समय समय पर प्रभावी होती हैं और इस तरह धर्म की हानि भी होती है। पर इससे धर्म समाप्त नहीं होता, सभ्यता बार बार उठ खड़ी होती है। सोमनाथ का भव्य मंदिर हर बार बनता रहा।
यदि आप मन्दिर तोड़ने वाले असुरों के वंश के अंत की कहानियां पढ़ेंगे तो आश्चर्य में डूब जाएंगे। औरंगजेब द्वारा मन्दिर तोड़े जाने के केवल 33 वर्ष बाद एक दिन उसका पोता मुहम्मदशाह अपने ही दरबार मे किसी नर्तकी का घाघरा पहने नाच रहा था, और उसकी गद्दी पर बैठा विदेशी लुटेरा नादिरशाह उसपर गिन्नियां फेक कर “लूट लिया, लूट लिया” जैसी अश्लील फब्तियां कसते हुए मुस्कुरा रहा था। यह औरंगजेब के वंश को मिला सभ्यता का दण्ड था।
गुजरात वाले सुल्तान मुजफ्फर शाह और उसके बेटे अहमद शाह ने मन्दिर तोड़ा। तो मात्र डेढ़ सौ वर्ष बाद एकदिन उनका वंशज सुल्तान मुजफ्फर शाह तृतीय अकबर के भय से भागता हुआ प्राण बचाने के लिए उसी सोमनाथ क्षेत्र में छिपता फिर रहा था। और एक दिन जब अकबर के सैनिक उसके गले में जंजीर डाल कर कुत्ते की तरह घसीटते हुए दिल्ली ले जा रहे थे, तब शौच करने के बहाने रुके मुजफ्फर ने चाकू से अपना गला काट लिया। यह अहमद शाह को मिला दण्ड था।
अन्य का भी बताएं? पोस्ट लम्बी हो जाएगी, आप स्वयं तनिक परिश्रम करें। आप पाएंगे कि उन सब का वंश बहुत ही बुरी तरीके से समाप्त हुआ था।
खैर! देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के प्रयत्नों से बना भव्य सोमनाथ मंदिर पश्चिम समुद्र तट पर पूरे शान से खड़ा है, और महादेव की कृपा पाने के लिए जुटे भक्तों के जयकारे से पूरा क्षेत्र गुंजायमान रहता है।
महादेव सबकी सुनते हैं। उनकी कृपा सब पर बरसती है।
साभार:सर्वेश तिवारी “श्रीमुख”-(ये लेखक के अपने विचार है)
गोपालगंज, बिहार।

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