कुछ लोग रोहित सरदाना की मृत्यु पर घृणा के संगीत पर हर्ष के गीत क्यो गा रहे?
Positive India:Dayanand Pandey:
जो लोग कभी असहिष्णुता के खिलाफ लड़ाई का ड्रामा कर रहे थे , वही लोग आज एक पत्रकार , एंकर रोहित सरदाना की मृत्यु पर घृणा के संगीत पर हर्ष के गीत गा रहे हैं। नफ़रत की नागफनी हाथ में लिए खड़े हैं। गोया नागफनी नहीं , गुलाब का फूल लिए हों। इन लोगों के जानवर बनने की यह घटना भी उन की असहिष्णुता की लड़ाई का पोल तो खोलती ही है , बताती है कि ऐसे लोग किस मानसिकता और बीमारी में जीते हैं। मनुष्यता के विरोधी इन बीमार लोगों की दवा दुनिया में कहीं नहीं है।
यह फासिस्ट और तानशाह लोग हैं। असहमति और विरोध का यह कौन सा विमर्श है कि आदमी , आदमी भी न रह जाए। कोई जानवर भी अपने जानवर समुदाय की मृत्यु पर शोक मनाता है। देखिए न कभी किसी कसाई की दुकान पर किसी बकरे , किसी मुर्गे को। जानवर हो कर भी अपने साथियों के निरंतर कत्ल होते हुए देखते कितनी तो दहशत में रहते हैं। अरे , आप को कोई व्यक्ति नापसंद है तो उस के शोक में शामिल हों , न हों यह आप का अधिकार है। लेकिन किसी की मृत्यु पर हर्ष की लहर , अपशब्द की बौछार तो आप का अधिकार नहीं है। किसी भी का अधिकार नहीं है।
दुःख और अवसाद की इस घड़ी में भी बंद कमरे में अपना नफ़रती गीत हर्ष विभोर हो कर गा लीजिए। पर इस का सार्वजनिक उपहास और इजहार आप के मनुष्य होने पर प्रश्न खड़ा करता है। आप तो जानवर भी कहे जाने लायक भी नहीं रह गए हैं। जानवरों के पास भी संवेदना और उस की अनुभूति होती है। वनस्पतियों के पास भी। आप अपनी असहमति और नफरत के विषैले खेल में यह संवेदना और उस की अनुभूति भी गंवा बैठे हैं। मनुष्यता की प्राथमिक सीढ़ी भी खो चुके हैं। इस ध्वंस से कौन सा समाज गढ़ना चाहते हैं आप यह भी स्पष्ट है। फासिज्म और तानाशाही की इंतिहा है यह। नफरत और घृणा की खेती की पराकाष्ठा है यह। मनुष्यता का क्षरण हो गया है आप और आप के इस समुदाय से। किसी सभ्य समाज के लायक नहीं रह गए हैं आप। कबाइली भी तो ऐसे नहीं होते। हद्द हो गई है। आख़िर चुप रह कर भी असहमति जताई जा सकती है। चुप रहना भी एक कला है।
लेखक:दयानंद पांडेय(ये लेखक के अपने विचार हैं)