किस मुंह से गाली दूं एलोपैथी और एलोपैथी के डॉक्टरों को
एलोपैथी डॉक्टर लाखों लोगों के प्राण बचाने का कार्य देवदूत बन कर कर रहे थे, कर रहे हैं।
Positive India:Satish Chandra Mishra:
इतना कमीना और कृतघ्न मैं नहीं हो सकता क्योंकि जब तक जीवित हूं तब तक अपनी आत्मा को और ऊपर जाने के बाद ईश्वर को मुझे जवाब देना है…
मेरे परिवार में 7 अवसर ऐसे आए हैं जब मृत्यु के द्वार पर पहुंच चुके परिजन को वापस पुनर्जीवन देने का कार्य किसी एलोपैथी डॉक्टर ने ही किया।
इन 7 अवसरों में एक अवसर ऐसा भी था जब एलोपैथी के डॉक्टर ने ही मुझे मौत के मुंह से बाहर निकाला था। मेरी आयु उस समय दो ढाई वर्ष की थी। स्वाद में मीठी, घर में रखी कोरेक्स कफ सीरप की पूरी शीशी पीने के बाद मैं बेहोश हो गया था। सांसे लड़खड़ाने लगी थीं। पिता शहर के बाहर थे। वाराणसी में जन्मीं और पली बढ़ी नितांत सामान्य गृहणी मेरी मां लखनऊ से लगभग अनभिज्ञ थीं। वो बदहवास हालत में मुझे जैसे तैसे डॉक्टर के क्लीनिक लेकर पहुंची थीं। माताश्री की स्थिति समझ कर डॉक्टर साहब ने उन्हें शांति से बैठने के लिए कह कर सारी स्थिति खुद ही सम्भाली थी और लगभग 4-5 घंटे जूझकर मुझे मौत के जबड़ों से वापस खींच लाए थे। मुझे नया जीवन दिया था। वो डॉक्टर लारी थे। उनके ही परिवार द्वारा किए गए सहयोग से लखनऊ में लारी कार्डियोलॉजी बनी है। जो लखनऊ मेडिकल कॉलेज का ही महत्वपूर्ण अंग है तथा ह्रुदयरोग से पीड़ित गरीब एवं मध्यमवर्ग की जीवन रक्षा का एकमात्र सहारा है। मैं इतना कमीना, इतना कृतघ्न कैसे हो जाऊं, किस मुंह से गाली दूं एलोपैथी और एलोपैथी के डॉक्टरों को।
देवता भी सम्मान करते हैं: 1986 में पिता जी के अल्सर की लास्ट स्टेज थी। डॉक्टर भट्टाचार्य ने चेकअप के पश्चात ऑपरेशन को ही अंतिम उपाय बताया था, इस चेतावनी के साथ कि स्थिति बहुत गम्भीर है, ऑपरेशन बहुत नाजुक है। पिता जी के जीवित बचने की या ऑपरेशन टेबिल पर ही मृत्यु हो जाने की संभावनाएं लगभग बराबर हैं। साथ ही यह भी कहा था कि मैं क्योंकि एक डॉक्टर हूं इसलिए मुझे 100% विश्वास है कि ऑपरेशन सफल होगा, लेकिन मैं भगवान नहीं हूं। मैंने उन्हें ऑपरेशन की अनुमति दे दी थी। ईश्वर की कृपा और डॉक्टर भट्टाचार्या के चिकित्सकीय कौशल से ऑपरेशन सफल हुआ और पिता जी ने उसके बाद 33 वर्ष तक पूर्णतया निरोग रहकर स्वस्थ जीवन गुजारा। ऑपरेशन का खर्च लगभग नगण्य रहा था। उल्लेख कर दूं कि डॉक्टर भट्टाचार्य लखनऊ के ऐतिहासिक बंगाली क्लब के वरिष्ठतम और सर्वाधिक सम्मानित पदाधिकारियों में से एक थे। शारदीय नवरात्रि की अष्टमी की आरती उन्हीं के हाथों से होती थी। ऐसी ही एक अष्टमी के दिन मां दुर्गा की आरती समाप्त कर उन्होंने आरती का थाल जैसे ही जमीन पर रखा उसी समय अपने स्थान पर बैठे बैठे ही लुढ़क गए। वहां उनके साथी कई अन्य डॉक्टर उपस्थित थे। उन्होंने तत्काल जांच की तो पाया कि डॉक्टर भट्टाचार्य की मृत्यु हो चुकी है। क्या किसी की मृत्यु का चेहरा इतना सुंदर भी हो सकता है.? ऐसी स्थितियों के लिए ही हिन्दू धर्म में कहा गया है कि ऊपर बुलाने के लिए ईश्वर ने स्वर्ग से स्वयं अपना विमान भेजा है। अतः ऐसे डॉक्टरों का सम्मान देवतागण भी करते हैं। उन्हें और उनकी चिकित्सा पद्धति को चिकित्सा विज्ञान से हजारों कोस दूर किसी अनपढ़ दवा व्यापारी के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होती।
अतीत के अलावा वर्तमान के 2 उदाहरणों से बात खत्म करूंगा। सीएमओ के पद से रिटायर डॉक्टर पंजवानी तथा वर्तमान में डिप्टी सीएमओ के पद पर कार्यरत डॉक्टर देशदीपक पाल उसी विधानसभा क्षेत्र में रहते हैं जहां मेरा निवास है। लखनऊ में कोरोना का कहर जब भयानक रूप ले चुका था, अपने चरम पर था। हालात मुंबई और दिल्ली से भी नाजुक होते जा रहे थे। उस दौर में भी डॉक्टर पंजवानी और डॉक्टर पाल बहुत बड़ी संख्या में लोगों की जांच और उपचार कर रहे थे। गम्भीर मरीजों के घरों तक जा कर देख रहे थे। परिणामस्वरूप दोनों डॉक्टर खुद भी कोरोना संक्रमित हो गए थे। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने फोन बंद नहीं किए थे। उस दौर में भी उन दोनों डॉक्टरों ने मोबाइल के जरिए सैकड़ों की संख्या में लोगों का उपचार किया। ईश्वर कृपा से दोनों डॉक्टर आज पूर्णतया स्वस्थ हैं। ईश्वर उन्हें शतायु करें।
डॉक्टर लारी से डॉक्टर पंजवानी और डॉक्टर पाल तक की इस कहानी में ऐसे हजारों अन्य भी हैं जिन्हें मैं नहीं जानता लेकिन वो कहीं ना कहीं लाखों लोगों के प्राण बचाने का कार्य देवदूत बन कर कर रहे थे, कर रहे हैं।
अतः ऐसे डॉक्टरों और उनकी एलोपैथी विद्या को किसी शत प्रतिशत चिकित्सा विज्ञान के अनपढ़ दवा व्यापारी की चाटुकारिता करने के लिए गाली देने का पाप, अपराध मैं नहीं कर सकता। इतना कमीना और कृतघ्न मैं नहीं हो सकता क्योंकि जब तक जीवित हूं तब तक अपनी आत्मा को और ऊपर जाने के बाद ईश्वर को मुझे जवाब देना है…
विशेष: लूट करने वाले कुछ लुटेरे डॉक्टरों के नाम गिना कर पूरी एलोपैथी और एलोपैथ डॉक्टरों को गाली बक रहे मूर्खों धूर्तों को याद दिला दूं कि जेल में बंद आसाराम भी भगवा पहनकर आयुर्वेदिक दवाएं, साबुन तेल मंजन बेचा करता था। कुछ मूर्ख जिस अनपढ़ दवा व्यापारी की चाटुकारिता में एलोपैथी और ऐलोपैथिक डॉक्टरों को गाली दे रहे हैं उन मूर्खों को याद दिला दूं कि बड़े बड़े नामी गिरामी वकीलों की सहायता से उस अनपढ़ दवा व्यापारी द्वारा की गयी लम्बी मुकदमेबाजी के बाद अदालत ने यह फैसला सुनाया था कि इस अनपढ़ दवा व्यापारी ने 75 करोड़ रूपये के उस टैक्स की चोरी की है, जिस टैक्स का पैसा उसे जनता को देना था।
ऐसा आदमी दवाओं के मामले में कितना ईमानदार होगा यह खुद तय करिए।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा(ये लेखक के अपने विचार है)