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क्रिकेट ग्राउंड में अलग से अर्धनग्न चीयरलीडर्स क्यों रखी जाती है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
कल स्टेडियम की एक तस्वीर वायरल हुई। जिसमें पाकिस्तान की कोई कन्या किसी दृश्य पर आनंद में झूमती दिख रही थी। वह वीडियो क्लिप अश्लील कैप्शंस के साथ पूरे दिन फेसबुक फीड पर चक्कर काटती रही। फब्तियां कसी जाती रही। किस तरह का आचरण है यह? ऐसा आचरण बाकी खेलों के दर्शकों में नहीं पाया जाता। तमाम खेलों के वैश्विक आयोजन होते हैं। उन खेलों के कैमरे हवस की भूख लिए अपना शिकार नहीं खोजते। ऐसा केवल क्रिकेट में ही होता है।

मुझे आज तक नहीं पता चला क्रिकेट ग्राउंड में अलग से अर्धनग्न बालाएं क्यों रखी जाती थी? और उन्हें नचवाई जाती थी। नाम दिया गया था चीयरलीडर्स। दरअसल पश्चिमी मैदानों वाला क्रिकेट जब भारत के गांव में घर-घर तेजी से अपनी जगह बना रहा था, टीवी पर यही चीयरलीडर्स बालाएं दर्शक जुटा रही थीं। न जाने इन चीयरलीडर्स बालाओं को देखते हुए भारत में करोड़ों दर्शक रातों-रात तैयार हो गए। क्रिकेट को छोड़कर मुख्य तौर पर कोई भी खेल उठा लें, उनकी अपनी सात्विकता होती हैं। लेकिन क्रिकेट को लेकर दर्शकों में आचरण का प्रश्न खड़ा होता है, इसमें दर्शकों का कोई दोष नहीं।

धोनी ने वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले ही आकर कहा था, ओरियो बिस्किट जब-जब लॉन्च होती है भारत वर्ल्ड कप जीतता है। इस बार भी ऑडियो बिस्किट लांच हुई है, भारत इस बार भी वर्ल्ड कप जीतेगा। कितना शर्मनाक बयान है यह। अर्थात् अश्लीलता के बाद क्रिकेट का यह दूसरा आचरण है- विपणन। क्या धोनी के ऐसा बयान देते वक्त किसी को भी इस बात की शर्म आई, कि भले क्रिकेट प्राइवेट कंपनी का खेल हो, भले क्रिकेट भारत के खेल संघ में निचले दर्जे पर भी दाखिल ना हो, लेकिन यह खेल राष्ट्र की भावना से जुड़ा हुआ है, तो भारत के लिए वर्ल्ड कप का तकदीर बाजार की एक बिस्किट कैसे तय कर सकता है? इस बयान से न क्रिकेट के किसी भारतीय दर्शकों को शर्म आई, न ही आयोजकों को।

स्टेडियम में जब क्रिकेटर्स खड़े होकर अपने-अपने देश का राष्ट्रगान गाते हैं, आज एक तस्वीर आई है कि उनके सामने बाईजूज विज्ञापन की टी शर्ट पहना कर बच्चों को खड़ा कर दिया गया था। कैसा शर्मनाक मजाक है? यह खेल राष्ट्रगान को भी बेचने से बाज नहीं आया। तमाम खेलों में वर्ल्ड कप होते हैं, उनकी अपनी सात्विक भावनाएं होती हैं, अपनी राष्ट्र भावना होती हैं, लेकिन न ही कहीं इतनी अश्लीलता होती है, ना ही इतना बाजारवाद। इसका बड़ा सरल सा और सीधा सा कारण है- खेल की बुनियाद ही बड़ी अप्राकृतिक है। क्योंकि इसकी प्रकृति ही साम्राज्यवादी है। इसकी तस्वीर आपको क्रिकेट ग्राउंड में भी मिल जाएगा। एक वक्त में क्रिकेट ग्राउंड में सभी प्लेयर समान दर्जे के नहीं होते। एक बैट्समैन केंद्र में होता है, और बाकी प्लेयर्स उसके आगे पीछे।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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