संजय राउत औरतों से ही क्यों लड़ता है?
-सतीश चन्द्र मिश्रा की कलम से-
Positive India:Satish Chandra Mishra:
सवाल यह पूछिए…
संजय राउत औरतों से ही क्यों लड़ता है? किसी आदमी से टकराव में भीगी बिल्ली क्यों बना रहता है?
पहला तथ्य…
संजय राऊत आजकल अमरावती की सांसद नवनीत राणा से जूझने में जुटा हुआ है। हनुमान चालीसा पढ़ने की जो चेतावनी महाराष्ट्र की सरकार और मुख्यमंत्री को महिला सांसद नवनीत राणा ने दी है, बिल्कुल वही चेतावनी राज ठाकरे ने भी दी है। नवनीत राणा से कई गुना अधिक उग्र और आक्रामक शैली में दी है। लेकिन राउतवा राणा पर तो टूट पड़ा पर राज ठाकरे के खिलाफ एक शब्द बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। शिवसेना के लफंगे महिला सांसद राणा का घर घेरने पहुंच गए, लेकिन राज ठाकरे के घर से उतनी ही दूर रहे जितना कुत्ते हाथी से दूर रहते हैं।
दूसरा तथ्य…
इसी तरह 2 साल पहले संजय राऊत कंगना राणावत से जूझ गया था। जबकि कंगना राणावत से कई गुना अधिक, शिवसेना की प्रचंड धुलाई राणे बन्धु नितेश राणे, नीलेश राणे की जोड़ी कर रही थी। एक नहीं अनेकों न्यूजचैनलों पर जा जाकर शिवसेना को जेबकतरों, गिरहक़टों का गिरोह घोषित कर रही थी। लेकिन राणे बंधुओं के खिलाफ एक शब्द बोलने की हिम्मत संजय राऊत नहीं जुटा पाया था। आज एक महिला नवनीत राणा का घर घेरने पहुंच गए शिवसेना के गुंडे भी 2 वर्ष पूर्व राणे बंधुओं के घर के आसपास नहीं फटके थे। वहां से उतनी ही दूर रहे थे जितनी दूर शेर की मांद से सियार रहते हैं।
2 वर्ष पूर्व रामदास आठवले भी जब कंगना के समर्थन में खुल कर खड़े हो गए थे तो उनके खिलाफ बोलने के बजाए संजय राउत और उसकी शिवसेना के लफ़ंगो ने चुप्पी साध लेने में ही भलाई समझी थी।
तो यह है संजय राऊत की उस हिम्मत, हौसले, मर्दानगी का लेखा जोखा जो केवल महिलाओं से लड़ने की हिम्मत जुटा पाता है। मर्दों से सामना होते ही चुप्पी साध लेता है। यूपी, एमपी, बिहार समेत हिंदी भाषी राज्यों में संजय राऊत सरीखी मर्दानगी वाले ऐसे मर्दानों को जिस नाम से पुकारा जाता है, उस नाम के उल्लेख की इजाज़त फेसबुक नहीं देता…😊
लेकिन समझ तो गए हुईहो😊
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)