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साध्वी एवं साधु दी कश्मीर फाइल क्यों जा रहे हैं देखने?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
दीदी माँ के नाम से विख्यात साध्वी ऋतंभरा जी को कौन नहीं जानता? दी कश्मीर फाइल(The Kashmir Files) अगर फिल्म होता तो ये दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा क्या करने जातीं? साधुओं की मर्यादा में इंटरटेनमेंट थिएटर्स कहां?

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दीदी माँ ने वृंदावन शहर से कुछ बाहर एक वात्सल्य ग्राम नाम से तीर्थ स्थापित किया हुआ है। यह वात्सल्य ग्राम कोई अनाथालय ना होकर अपने आप में एक तीर्थ स्थान है। जोकि एक पारिवारिक समाज का प्रारूप प्रस्तुत करता है। ऐसे नवजात शिशु जो किसी कारण जन्म से ही बेसहारा होते हैं, उनको इस तीर्थ स्थान में वात्सल्य मिलता है। कहा जाता है कि जिस नवजात को दिल्ली के एक कूड़ेदान में फेंक दिया गया था और उस बालिका के मस्तिष्क का कुछ हिस्सा कुत्ते खा गए थे आज वह बालिका स्वस्थ्य रुप से वात्सल्य ग्राम में 4 वर्ष की हो चुकी है। सुंदरता यह कि वात्सल्य ग्राम में संस्कारित होने वाले बालक बालिकाओं के भावनाओं में हीनता का कोई स्थान नहीं।

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इतना विराट वात्सल्य को संभालने वाली दीदी माँ स्वयं एक स्त्री हैं। स्त्री के सम्मान पर बोलने का दीदी ऋतंभरा को पूरा अधिकार है। कैसे यह अधिकार जेएनयू कि वामपंथी प्रोफेसर निवेदिता मैनन आजादी का नारा लगाते हुए छीन सकती हैं?

दीदी ऋतंभरा ने दी कश्मीर फाइल देखने के बाद लोगों से आह्वान किया है कि इस फिल्म को निश्चित तौर पर देखें। स्त्री के सम्मान, सुरक्षा और भारत की सुरक्षा के लिए, नैरेटिव को तोड़ने के लिए, भारत में यह दोबारा न दोहराया जाए उसके लिए। यह कहते हुए दीदी मां की आवाज में ही इतनी करुणा है आप को झकझोर देगा।

एक पूज्यनीय संत आत्मा श्री नमन कृष्ण भागवत जी की मित्र सूची में मैं बड़े सौभाग्य से उपलब्ध हूंँ। वे लिखते हैं कि कोई 23 वर्षों बाद वह इस फिल्म को देखने जाएंगे। संदेश सीधा है कि जहां राष्ट्र मर्यादा की बात होती है संत, महापुरुष प्राथमिक तौर पर सम्मान देते हैं।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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