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रवीश कुमार ने राजू श्रीवास्तव के निधन पर वामपंथ का विषवमन क्यो किया?

-विशाल झा की कलम-

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Positive India:Vishal Jha:
रवीश कुमार ने राजू श्रीवास्तव के निधन पर किस प्रकार वामपंथ का विषवमन किया है, जानना जरूरी है। जो लोग रवीश पर मेरे लिखे को नहीं पढ़ना चाहते हैं मत पढ़ें। पर मैं चाहता हूं कि लोग जाने कि एक कलाकार की मृत्यु का किस प्रकार वामपंथियों द्वारा अपमान किया जाता है। केवल इसलिए कि राजू श्रीवास्तव कॉमेडियन होने के साथ-साथ एक राष्ट्रभक्त भी थे।

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राजू श्रीवास्तव की पहचान उनके कलाकार होने से है। एक ऐसा कलाकार जिसके ऊपर कला का एहसान भी नहीं है, बल्कि जिसने स्वयं स्टैंड अप कॉमेडी को एक राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। लेकिन रवीश कुमार ने जिस लेख को शेयर किया है, आरंभ में ही राजू श्रीवास्तव को भाजपा से जोड़कर पहचान दिया है।

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राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी में खड़ा देसीपन था। अपने उसी शैली को राजू ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और शिखर पर पहुंचे। रवीश के शेयर लेख में लिखा है कि शिखर पर पहुंचने के बाद राजू श्रीवास्तव का स्तर नीचे गिरने वाला था। ठीक जिस प्रकार कपिल शर्मा की कॉमेडी का स्तर है। लेकिन नहीं गिरा। यह भी लिखा है कि न्यूज़ चैनलों के तमाशा के जरिए राजू श्रीवास्तव ने रातों-रात राष्ट्रीय पहचान अर्जित की। और इसी कड़ी में राजू श्रीवास्तव की तुलना राखी सावंत से कर दी गई है। इतना ही नहीं फिल्मों में राजू श्रीवास्तव की उपस्थिति को बेतुकी और बेमानी वाली कॉमेडी से बताने की कोशिश की गई है।

रवीश राजू श्रीवास्तव की कॉमेडी के बारे में यह साझा करते हुए नहीं चूकते हैं कि उनकी कॉमेडी भी सामंती सड़ांध और आधुनिक लंपटता में फंसने से नहीं बची, बस उनकी पहचान अलग होने के कारण वह इसके लिए जाने नहीं गए। ‘हंसाने वाला रुला कर चला गया’ पंक्ति पर भी रवीश कुमार का साझा लेखन बहुत दुखी दिखाई पड़ता है। यह कि हंसाने और रुलाने की बात तो एक नाटकीयता है, जबकि मौत की अनिवार्यता से हम परिचित होते हैं।

रवीश कुमार के साझा लेख में लिखी तमाम सारी बातें पढ़ते-पढ़ते आपका ह्रदय जवाब दे देगा। यही हाल रवीश कुमार ने महान नेत्री सुषमा स्वराज के निधनोंपरांत किया था। रवीश कुमार के साझा डिजाइनर लेखों को समझने के लिए आप को बुद्धिजीवी वाला दिमाग चाहिए। दो तीन बार पढ़ना पड़ेगा। तब समझ में आएगा कि वह किसी राष्ट्रवादी के निधन पर लोगों द्वारा दी जा रही आत्मिक श्रद्धांजलि से किस प्रकार विचलित हो उठता है। रवीश कुमार को याद रखना चाहिए वे स्वयं भी एक दिन मृत्यु को प्राप्त होंगे। कोई इस धरती पर अमर होकर नहीं आया है। उनके साझा लेखों और उसमें शब्दों के डिजाइन को हम चाहते हैं लोग सीखें और इन पापियों के मृत्यु उपरांत इस विधा का इस्तेमाल करें।

बाकी एक राष्ट्रभक्त कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का नाम सदा इस देश में सम्मान से लिया जाएगा। सबसे बड़ी बात कि उन्होंने अपनी कॉमेडी को बिना सनातन धर्म का मजाक उड़ाए स्थापित करके, उदाहरण पेश किया है। हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ा कर कॉमेडी करने वाले और समर्थन करने वाले दरबारी पत्रकारों गिरोहों को राजू श्रीवास्तव आखिरकार कैसे भा सकते हैं?

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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