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पीएम मोदी ने पीयूष गोयल से रेलमंत्रालय वापस लेकर उन्हें कपड़ा मंत्रालय क्यों सौंपा.?

प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रघोष "INDIA FIRST" का अर्थ लुटियन गदहे अब भी क्यों नहीं समझे रहे हैं?

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Positive India:Satish India:Satish Chandra Mishra:
प्रधानमंत्री मोदी के मंत्रघोष “INDIA FIRST” का अर्थ लुटियन गदहे अब भी नहीं समझे हैं। ये गदहे राजनीति के मैदान में दशकों से केवल जातपात की घास ही चर रहे हैं।😊
कृपया बहुत ध्यान से इस महत्वपूर्ण तथ्य को पढ़िए जिसका जिक्र मीडिया या सोशलमीडिया में आपको कहीं नहीं मिलेगा।

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कल शाम हुए मंत्रिमंडल विस्तार के बाद लुटियन गदहे जातीय गणित का पहाड़ा रटने में जुट गए हैं। जावड़ेकर निशंक और रविशंकर प्रसाद की विदाई पर सोशल मीडिया जबरदस्त जश्न मना रहा है। लेकिन इन सबसे अलग मेरी दृष्टि, मेरी कसौटी के अनुसार कल हुए विस्तार का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय पीयूष गोयल को रेलमंत्री के पद से हटाया जाना रहा। अपने इस निर्णय से प्रधानमंत्री मोदी ने एकबार पुनः यह संदेश दिया है कि उनकी कार्यशैली, उनकी प्राथमिकता विशिष्ट है, विलक्षण है। आजादी के बाद से एक घिसेपिटे ढर्रे पर चल रही राजनीतिक प्रशासनिक परम्पराओं को प्रधानमंत्री मोदी जड़ों से उखाड़ कर फेंक रहे हैं।

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ध्यान रहे कि रेलमंत्री के रूप में पीयूष गोयल का प्रदर्शन अद्वितीय रहा है। उन्हें भारत के इतिहास का अबतक का सर्वश्रेष्ठ रेलमंत्री कहा जा सकता है। ऐसा प्रदर्शन करने वाले मंत्रियों के तथाकथित प्रमोशन की परंपरा दशकों पुरानी है।
अतः यह प्रश्न स्वाभाविक है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पीयूष गोयल से रेलमंत्रालय का दायित्व वापस लेकर उन्हें कपड़ा मंत्रालय का दायित्व क्यों सौंपा.? यह सवाल इसलिए क्योंकि पिछले 74 सालों से कपड़ा मंत्रालय की तुलना में रेलवे को बहुत महत्वपूर्ण और हाई प्रोफाइल मंत्रालय माना जाता रहा है। अतः प्रथम दृष्टया ऐसा लग रहा है कि कल हुए मंत्रिमंडल विस्तार में प्रधानमंत्री मोदी ने पीयूष गोयल का प्रमोशन करने के बजाए उनका कद घटा दिया है। लेकिन यह सच नहीं है। यही वह तथ्य है जो प्रधानमंत्री की कार्यशैली, उनकी प्राथमिकताओं की विशिष्टता, विलक्षणता को प्रदर्शित करता है। जानिए कैसे…
बहुत कम लोगों को यह ज्ञात होगा कि पूरी दुनिया के कपड़ा उद्योग का बाजार लगभग 96 लाख करोड़ का है। इससे भी अधिक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि अक्टूबर 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार इतने बड़े वैश्विक कपड़ा उद्योग के निर्यात व्यापार में बांग्लादेश की हिस्सेदारी 6.8% है जबकि उससे लगभग 7 गुना बड़े भारत की हिस्सेदारी मात्र 5% है। 35-36% हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़े निर्यातक के रूप में चीन इस बाजार पर एकछत्र राज करता रहा है। ध्यान रहे कि इतनी कमजोर स्थिति के बावजूद वर्तमान में कपड़ा उद्योग लगभग 4.5 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रूप से और लगभग 6 करोड़ लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार दे रहा है।

कोरोना फैलाने के चीन के राक्षसी कुकर्म के उजागर हो जाने के बाद विश्व के कपड़ा बाजार पर चीन का वर्चस्व तेजी से घटता जा रहा है। लेकिन कोरोना काल के दौरान इसका सर्वाधिक लाभ बांग्लादेश और वियतनाम सरीखे छोटे से देश जमकर उठा रहे हैं। कोरोना से पहले भी यह दोनों देश वैश्विक कपड़ा बाजार का जमकर दोहन करते रहे हैं। भारत इस दौड़ में बहुत पिछड़ गया है। स्वाभाविक है कि इसकीं पूरी जिम्मेदारी कपड़ा मंत्रालय की ही रही है। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो सच यह है कि तथाकथित “लो प्रोफ़ाइल” कपड़ा मंत्रालय के कामकाज में हाई प्रोफाइल स्मृति ईरानी का मन नहीं लग रहा था।😊
अतः 96 लाख करोड़ रुपए के वैश्विक कपड़ा बाजार पर भारत का सिक्का चलाने, भारतीय तिरंगा ऊंचा फहराने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सेना के सबसे योग्य और कुशल सेनापति सिद्ध हो चुके पीयूष गोयल को सौंपी है। यही काऱण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने हाई प्रोफाइल रेलवे के बजाए उस कपड़ा मंत्रालय की जिम्मेदारी पीयूष गोयल को सौंपी है जिसको सत्तालोलुप धूर्त राजनेताओं और लुटियन गदहों के दुष्प्रचार कुप्रचार के कारण आजादी के बाद से ही “लो प्रोफ़ाइल” मंत्रालय माना जाता रहा है। यही कारण है कि भरपूर प्राकृतिक औधोगिक संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद वैश्विक कपड़ा बाजार में भारतीय उपस्थिति बहुत दयनीय और दुर्बल रही है। यह स्थिति अगर बदल जाए तो देश का खजाना तो भरेगा ही साथ ही साथ कम से कम करोड़ों और लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के नए अवसर उपलब्ध होंगे।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लीक से हटकर कल किए गए इस फैसले के बाद मुझे विश्वास भी है कि यह स्थिति बदलेगी। कपड़ा मंत्रालय के मंत्री के रूप में पीयूष गोयल वैसी ही पारी खेलेंगे जैसी पारी 2011 के क्रिकेट वर्ल्डकप के फाइनल में कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी ने खेली थी।

तो यही है प्रधानमंत्री मोदी के INDIA FIRST का अर्थ जिसके अनुसार सबसे योग्य सबसे सक्षम व्यक्ति का प्रमोशन वो सबसे कठिन चुनौतियों का सामना करने के लिए उसे नियुक्त कर के करते हैं। स्वयं 16 से 18 घंटे काम करने वाले प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल में प्रमोशन का सही अर्थ सत्तासुख लूटना और मौज करना नहीं बल्कि यही होता है।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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