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प्रधानमंत्री मोदी ने बोहरा समुदाय के मुसलमानों के साथ अपनी मुलाकात को नए तरीके से क्यो पेश किया?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
बोहरा समुदाय के मुसलमानों के साथ कार्यक्रम में मोदी जी ने आज हिस्सा लिया। यह कोई नयी बात नहीं है। लेकिन मोदी जी ने इसे नए तरीके से पेश करने का प्रयास अवश्य किया है। बीते दिनों हैदराबाद के एक कार्यक्रम में उन्होंने पसमांदा मुसलमानों को लेकर आरक्षण की बात की थी और पूरा राजनीतिक माहौल चढ़ गया था। फिर क्या था, मोदीजी के इस बयान का विरोध न केवल हिंदुओं की तरफ से हुआ, बल्कि इसे मुस्लिम समाज के कथित खेवनहारों की तरफ से भी हुआ, कि जातिभेद का असलियत बाहर ना आ जाए।

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जब पठान को रिलीज हुए दूसरे या तीसरे दिन हुआ था, मेरी मुलाकात एक तरुण आयु के मुस्लिम बच्चे से हुई। मैंने उससे पूछा फिल्म देखने नहीं गए? उसने कहा- कौन सी फिल्म, हम लोग अंसारी हैं सर। मैंने फिर उससे कुछ भी ना पूछा और मुझे आश्चर्य हुआ मुसलमान समाज के इस जमीनी नब्ज को सत्ता के सबसे शिखर पर बैठा मोदी किस प्रकार से एड्रेस कर रहा है और पसमांदा मुसलमानों को उसका हक दिलाने के लिए हर प्रकार से तैयार हो चुका है। मानो मोदी की यह अंतिम पारी भारत की राजनीति में एक नए अध्याय का आरंभ करेगा।

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पसमांदा मुसलमानों और अशराफ मुसलमानों का अनुपात तकरीबन 80 अनुपात 20 का है। ठीक वैसे ही जैसे दलित और सवर्ण का है। 20% अशराफ, 80% पसमांदा को दबाकर कुचलकर उसके ऊपर मजहबी एकता का झंडा बुलंद करते हैं। बस एक संबोधन भर की देर है, एक भरोसाजनक आवाज की देर है, 80% पसमांदा मुसलमानों को जहां से उनका हक मिल जाए, वे अपने शोषणकारी समाज के बंधन को तोड़कर मुख्यधारा समाज में शामिल हो जाएंगे।

भारत की मुख्य राजनीति को आज तक सिर्फ एक ही काम मिला, 85% दलित को 15% सवर्णों के खिलाफ तैयार करने की सियासत बांचना। दूसरी तरफ यह नैरेटिव मजबूत किए रखना कि तमाम मजहब में जाति विभेद जैसी कोई चीज नहीं है। इस झूठ को बरकरार रखने के लिए 85% पसमांदा ने लगातार अपने अधिकारों की कुर्बानी दी है। आज का भारत पसमांदा के इस सत्य को संबोधित करने के लिए तैयार हो चुका है। इससे ना केवल पसमांदा के अधिकारों को बल मिलेगा, बल्कि तमाम मजहबों में जातीय विभेद की सच्चाई को देखने का लोगों में एक सम दृष्टि प्राप्त होगा।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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