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धीरेंद्र शास्त्री के हिंदू राष्ट्र का मतलब लोग मुस्लिम विहीन राष्ट्र क्यो समझते हैं?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
हाँ, मुझे मालूम है तुम्हें संस्कृत नहीं आती। क्योंकि संस्कृत के गलत उच्चारण को लेकर तुमने माफी भी मांगी है। फिर तुम्हें वेद का भी ज्ञान नहीं। तुमको वेदान्त-दर्शन नहीं पता। तुम्हें कथा वाचन करना नहीं आता। व्यास गद्दी की मर्यादा तुम्हें नहीं मालूम। कथा वाचन में तुम जब सत्संग गाते हो तुम्हारे गले में राग बिल्कुल नहीं होता। तुम्हारी मोटी बिखरी हुई आवाज होती है। तुम अनपढ़ हो। लेकिन क्या कहूँ धीरेंद्र शास्त्री जी..?

तुम्हें देखने के लिए बेचैन होने लगा हूं। तुम्हारी गलती पर तुम्हारी माफी मेरा ध्यान खींच लेता है। दर्शन तुम नहीं जानते, लेकिन तुम्हारी भक्ति वाचन की निश्छलता में रम जाता हूं। तुम जब “चोला माटी के है राम” गाते हो, लगता है जैसे गीत की सुंदरता राग में नहीं, बल्कि एक क्षेत्रिय भाषा को देशभर में सुनाने के लिए आभार प्रकट करूँ। मध्य प्रदेश के होते हुए भी तुम उत्तर भारत की मैथिली गीत को छत्तीसगढ़ में बैठकर गा लेते हो, तो लगता है हिंदू राष्ट्र बनाने का तुम्हारा नारा अबोध नहीं है। तुम्हारी फटी आवाज भाने लगती है। जब मैं तुमसे मोहित हो जाता हूँ, तुम्हारी किसी गलतियों पर नजर नहीं जाता। तुम्हारी हर खामियों में भोलापन नजर आता है।

अर्धसत्य वाले कल दिखा रहे थे कि वीआईपी और वीवीआईपी के लिए बाबा के पंडाल में अलग-अलग प्रवेश द्वार है और आम गरीब लोगों के लिए अलग। लेकिन जब तुम व्यासपीठ से बैठकर अमीर गरीब की बात करते हो और खुलकर कहते हो गरीब लोग सामने नीचे बैठे होते हैं केवल ताली बजाने के लिए, वीआईपी लोगों को मंच पर स्थान दिया जाता है, यह भी एक मजबूरी है। कि यह जो पंडाल लगा है किसने लगवाया है? अगर उन्हें 10 मिनट समय मंच पर दे दिया जाए तो क्या बिगड़ जाएगा। इतनी निश्छल बातें कौन करता है शास्त्री जी? मैंने बहुतों रामकथा आयोजन देखी हैं। करोड़ों के पंडाल बनते हैं। हर जगह वीआईपी वीवीआईपी और आम आदमी के अलग-अलग प्रवेश द्वार होते हैं, लेकिन व्यासपीठ से इतना खुलकर कौन बोलता है?

हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करते हो खुले मंच से, लेकिन अपने एक मुस्लिम मित्र का नाम लेते नहीं लजाते। इस देश का कमोबेश 50 करोड़ हिंदू तुम्हें सुन रहा होगा और अपने एक मुस्लिम मित्र का ₹20000 का चुकाया हुआ कर्ज कितनी बार पब्लिकली बोल चुके हो। इतने मूल्य में तो तुम्हारा वह मुस्लिम मित्र तुम्हारा ऋणी बन गया होगा। क्या तुम्हें मालूम है, हिंदू राष्ट्र का मतलब लोग मुस्लिम विहीन राष्ट्र समझते हैं? तुम्हें साम दाम का तनिक भी भान नहीं।

व्यास गद्दी से बैठकर गांधी का मानस गाया जाता है। तुम नेताजी का नारा दहारने वाले पहले वाचक हो। “तुम मेरा साथ दो, हम हिंदू राष्ट्र बनाएंगे” नेताजी के नारे को कौन इस प्रकार बदलता है? धर्म मंच से कौन राष्ट्र की बात इतना खुलकर करता है? सही है या गलत मुझे नहीं मालूम लेकिन मैं एक बात कहूं? मुझे जब दर्शन सुनना होगा, जब राग वाला सत्संग सुनना होगा, संस्कृत का वाचन सुनना होगा, वेद और वेदांत समझना होगा, पर्याप्त मंच उपलब्ध हैं, मैं जाकर सुन समझ लूंगा। लेकिन धर्म के शामियाने में बैठकर एक बार देशभक्त श्रद्धालु बनना चाहता हूं, आनंद आता है मुझे। तुम जैसे हो वैसे ही स्वीकार हो। क्योंकि मुझे तुम भाने लगे हो। मैं पांडाल में बैठा ताली बजाने वाला एक निर्धन आम व्यक्ति भले हूँ, लेकिन मैं तुम्हारा ‘पागल’ हूं, प्रेमी हूं।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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