संविधान खतरे में है का विध्वंसकारी नारा लगाने वाले लोग अचानक मनुवाद की उल्टी क्यों करने लगते हैं?
-दयानंद पांडेय की कलम से-
Positive India:Dayanand Pandey:
संविधान खतरे में है का विध्वंसकारी नारा लगा कर संविधान बचाने की बात करने वाले , इस की मुहिम चलाने वाले लोग अचानक मनुवाद की उल्टी करने लगते हैं। तो क्या देश मनुवाद से चलता है ? मनुवाद से चलता है देश , तो यह संविधान बचाने का कुचक्र क्यों रचते हैं। और जो देश संविधान से चलता है तो यह मनुवाद की उल्टी क्यों करते हैं। यह कौन लोग हैं।
यह वही लोग हैं जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा आतंकी अफजल को फांसी दिए जाने पर , फैसले को ज्यूडिशियल किलिंग का फ़तवा जारी करते हैं। तुम कितने अफजल मारोगे , हर घर से अफजल निकलेगा , का नारा नारा लगाते हैं। भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्ला , इंशा अल्ला का कुचक्र रचते हैं। कश्मीर में पत्थरबाजों और आतंकियों को मासूम और भटका हुआ बताते फिरते ही थे यह लोग।
रोहित वेमुला को जबरिया दलित घोषित कर जय भीम , जय मीम का नैरेटिव सेट करते हैं। तब जब कि अंबेडकर इस्लाम को अभिशाप और वामपंथियों को बंच आफ ब्राह्मण ब्वायज कहते हुए दुत्कारते मिलते हैं। फिर भी यह दोगले लोग सेक्यूलरिज्म की घात लगा कर देश में आग लगाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। बारंबार संविधान की दुहाई देने वाले यही लोग , संसद से पास सी ए ए क़ानून को मानने से इंकार करते हुए दंगे करते हैं। शहर-शहर , शाहीन बाग़ की नौटंकी करते हैं। और तो और कोरोना जैसी महामारी को भी देश भर में फ़ैलाने का कुचक्र रचते हैं। बात-बेबात हिंदू , मुसलमान का गड्ढा खोद कर मनुष्यता को दफनाने वाले यह लोग उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात को किसी सनक , किसी ज़िद , किसी साज़िश की तरह परवान चढ़ाते हुए अकसर कामयाब भी दिखते हैं। समय आ गया है कि संविधान बचाने की आड़ में मनुवाद की उल्टी करते हुए , देश जलाने वाले इन दोगलों को अब खुल कर सबक सिखाया जाए।
कोरोना से भी ज़्यादा घातक , ज़्यादा मनुष्य विरोधी हैं यह लोग। इन की लाख कोशिश के बावजूद कोरोना महामारी के फैलाव पर अब लगाम सरकार के हाथ आ गई है। जल्दी हो कोरोना की विदाई हो जाएगी। तब संविधान बचाने के नाम पर जब-तब देश को आग लगाने वाले इन दोगलों पर भी सामजिक सख्ती की ज़बरदस्त दरकार है। नहीं , जिस तरह कोरोना फैलाने वाले जामतियों के लिए इन लोगों ने कवरिंग फायर दिया है , वह देश के लिए , समाज के लिए हरगिज-हरगिज शुभ नहीं है। इस प्रवृत्ति को जल्दी से जल्दी दफना दिए जाने की ज़रूरत है। मनुष्यता पर गहरा दाग हैं यह लोग।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)