महज एक -अक्सीजन- बयान से हाईली इन्वेस्टेड प्रोजेक्ट पैगेसस आज विमर्श से कैसे बाहर हो गया?
वह रिपोर्ट कहां है जिसे द वायर समेत 17 घोषित लेफ्ट मीडिया संस्थानों ने प्रोजेक्ट किया?
Positive India:Vishal Jha:
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारिता जगत के 17 बड़े घोषित वामपंथी मीडिया संस्थानों की एक कन्सोर्टियम ने पैगेसस प्रोजेक्ट किया था। एक्सप्लोसिव थ्योरी कहकर इस प्रोजेक्ट के निष्कर्ष को द वायर ने भारत में पटका। सपोर्ट में द गार्जियन समेत अंतरराष्ट्रीय मीडिया जगत ने भी पूरे दमखम के साथ पैगेसस(Pegasus) प्रोजेक्ट की थ्योरी को वेभ की।
इस प्रोजेक्ट में गजब के इन्वेस्टमेंट को रवीश कुमार ने ‘लोकतंत्र खत्म’ का पुराना राग अलापने के साथ-साथ ‘सत्यानाश’ तक को भी अपने प्राइम टाइम में कनक्लूड कर दिया था। साथ ही उसने दरखास्त भी की थी कि इस थ्योरी को ‘गांव-गांव तक लोगों में’ पहुंचाएं। किंतु आखिरकार यह हवा हवाई प्रोजेक्ट जिसमें दुनिया भर की मोदी विरोधी ताकते लगी थी, महज एक ‘ऑक्सीजन’ पर बयान से धराशाई हो गया।
हो भी क्यों ना? फोरबिडेन स्टोरी और एमनेस्टी इंटरनेशनल को पैगेसस की जो सूचना कथित तौर पर हाथ लगी, इन दोनों ने ही इसे एक मीडिया कन्सोर्टियम को दिया। इस कन्सोर्टियम में भारत के तरफ से जय के खिलाफ 16000 गुना राजस्व वृद्धि वाले एक ऐसे ही प्रोजेक्ट पर माफी मांग चुके द वायर ने रोल किया। जिसमें द वायर के ही कई पत्रकारों के मोबाइल नंबर पैगेसस हैक पर होने की बात कही। जो कहीं ना कहीं इन संदिग्ध परिधि के पत्रकारों के लिए एक वैचारिक ढाल का निर्माण करता है। इसे सुनिश्चित करने के लिए अथवा मसले में जान डालने के लिए विपक्ष के नेता को पाले में कर लेना, सरकार के कुछ मंत्री तक को भी नामित कर लेना द वायर के लिए जरूरी था।
आश्चर्य होगा कि कन्सोर्टियम को जो डाटा प्राप्त हुए उसमें उपस्थित मोबाइल नंबर आधे से भी कम अंकों का था। इस पर भी यह कंफर्म नहीं की अमुक मोबाइल नंबर पर पैगेसस का अटैक हुआ या नहीं। क्योंकि इसको कंफर्म करने के लिए मोबाइल उपयोगकर्ता का मोबाइल लेबोरेटरी में चाहिए। तब जाकर स्पष्ट होगा। हैरत है कि ये सारा विमर्श तब तैयार किया गया जबकि कन्सोर्टियम को ठीक से यह तक पता नहीं कि किन-किन देशों ने पैगेसस खरीदा।
द वायर मीडिया कन्सोर्टियम के जिस रिपोर्ट को लेकर बुलेटिन निकाल रहा है वह रिपोर्ट तैयार करने में भारत के तरफ से किसने रोल किया? तो जवाब है स्वयं द वायर ने। आप कह सकते हैं कि द वायर ने अपने द्वारा ही तैयार की गई रिपोर्ट को आधार कर स्वयं ही बुलेटिन निकाल रहा है। है ना कितना हास्यास्पद! इस हवा हवाई को जमीन देने के लिए भारत में भी कुछ लेफ्ट अलाइन्ड डिजाइनर मीडियाकारों ने मेहनत की।
मैं पूछता हूं वह रिपोर्ट कहां है जिसे द वायर समेत 17 घोषित लेफ्ट मीडिया संस्थानों ने प्रोजेक्ट किया? क्या किसी को भी इस रिपोर्ट की कॉपी हाथ लगी है? आप बहुत रिसर्च करेंगे तो भी आपको पैगेसस प्रोजेक्ट के तहत मुश्किल से काम के दो चार पंक्तियां मिलेंगी। जिसमें आवश्यकता से भी अधिक बार आपको ‘माना जाता है कि’ लिखा हुआ मिलेगा। हद है कि इसी रिपोर्ट को आधार बना कर स्वयं द वायर और फैशन न्यूज़ डिजाइनर रवीश कुमार ने ताल ठोक कर बुलेटिन निकाल दी।
मुझे तो लगता है इस प्रोजेक्ट पर सिर्फ इतना ही काम किया गया होगा कि किस प्रकार से थ्योरी लॉन्च करनी है। ठीक इसी फिलासफी के आधार पर कि जैसे कोई कह दे अमुक ने मेरे से रिश्वत ली, अगर ना ली तो प्रमाणित करके दिखाएं। अब तो कोर्ट में हलफनामा देने को लेकर भी सरकार पर दबाव डाल रहे हैं ये प्रोजेक्ट वाले।
बावजूद इसके फोन टैपिंग का अधिकार सरकार को होना चाहिए, यह बात मैं नहीं मनमोहन सिंह जी कह रहे हैं। भारत कॉरपोरेट सप्ताह 2010 का उद्घाटन करते हुए 14 दिसंबर 2010 को। राहुल गांधी ने चीन के साथ मिलकर 2008 में कौन सा एमओयू साइन किया था? इसका भेद क्यों नहीं पब्लिक कर रहे? आखिरकार इस प्रकार की देश विरोधी षड्यंत्र ना हो, इसे ही सुनिश्चित करने के लिए न मनमोहन सिंह ने सरकार को जासूसी का अधिकार रखना जरूरी बताया था?
आजाद भारत में सबसे बड़ा जासूसी भारत के असली नेता सुभाष चंद्र बोस की हुई थी। किसने कराई? भारत के प्रधानमंत्री ने। आधिकारिक तौर पर इंटेलिजेंस ब्यूरो से। यद्यपि यह डाटा पब्लिक नहीं हुआ है अभी तक। बावजूद इसके, अधिकारिक इसलिए कह रहा हूं कि नेहरू ने ब्रिटिश शासक से अथॉरिटी पावर मांगते हुए 1947 में शर्त पर साइन किया था कि वॉर क्रिमिनल सुभाष चंद्र बोस को जिंदा या मुर्दा ब्रिटेन को सौंपा जाएगा। जिस नेहरू के परम गुरु गांधी थे।
इससे शर्मनाक जासूसी और क्या ही हो सकती है?
साभार:विशाल झा(ये लेखक के अपने विचार हैं)