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सरकारी आयुर्वेद महाविद्यालय की इतनी बदतर हालत क्यों?

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
आयुर्वेद मे शुरू से गुरु शिष्य की परंपरा रही है, जो शायद अभी तक चल रही है । ऐसा नही की सभी छात्र वैसे रहते है,पर कुछ छात्र तो रहते ही है जो दोनो मे ही अपनी महारथ रखते है । इसलिए इस तरह के छात्र अपनी पढ़ाई के साथ-साथ कार सेवा के लिए हर समय तत्पर रहते है । उन्हे उसका फायदा भी होता है । आत्म सम्मान वाले छात्रो को परीक्षा के दलदल मे हर समय उतरना पड़ता है । यहा का पुराना इतिहास ऐसा है कि जो छात्र बीएससी मे फेल हो जाये, ले देकर संस्कृत महाविद्यालय की परीक्षा उत्तीर्ण करे, ऐसे छात्र आयुर्वेद महाविद्यालय में आकर मेरिट मे आने लगते है । ठीक ठाक सामान्य छात्र पूरक की परीक्षा देते नजर आते है । हो सकता है अहाता बदलने से, जलवायु के चलते, शायद दिमाग मे भी असर पड़ता हो । कुछ प्राध्यापक तो सौजन्यता के चलते, उस समय सायकल चलाकर पूरक आये विधार्थी के घर अभिभावक को बताने पहुंच जाते थे और अपने लड़के के मेरिट आने की बात भी बताते थे । यह विधार्थी कोई और नही मै ही था ।

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उल्लेखनीय है कि मेरे पिता भी इसी आयुर्वेद महाविद्यालय से सेवानिवृत्त प्राध्यापक थे । कुछ नही, इसका मकसद मात्र उन्हे अपमानित करने का था । ऐसी घटिया घटना को मै कैसे विस्मृत करू ? यहां के कैम्पस की खासियत है कि यहां के स्टाफ के बच्चे जरूरत से ज्यादा अच्छे अंको से पास होते है । पर कार सेवा करने वाले को भी अच्छा फल मिलता है । जहा कुछ छात्र प्राध्यापक के बच्चों को स्कूल छोड़ने, लाने का काम करते है, वही कुछ उस समय गैस की अनुपलब्धता के चलते सायकल से छेना लकड़ी तक लाने का भी काम किया है । कुछ सम्पन्न कृषक पुत्रों ने खाद्यान्न देकर सेवाऐं की है ।

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आज भी पिछले दिनो समाचार पत्र की सुर्खियां बनीं कि यहाँ के छात्र यौन उत्पीड़न का शिकार हुए है । इससे समझा जा सकता है कि उस समय और आज के हालात मे कोई विशेष फर्क नही पड़ा है । वही शिक्षा की गुणवत्ता भी इसलिए बदतर है क्योंकि यहां पर शिक्षको के प्रमोशन का कोई भी मापदंड नही है । अगर कोई प्राध्यापक(दोष धातु मल ) फिजियोलॉजी का प्राध्यापक है तो उसका प्रमोशन( शल्य शालाक्य) ईएनटी मे हो जाता है,जिसके कारण उक्त प्राध्यापक क्लास मे जाकर पढाता, नही पढ़ाता है,आप समझ सकते है । इसलिए वो अपनी पूरी पढ़ाई की गुणवत्ता देने मे असफल रहता है ।

एक आयुर्वेद स्नातक मार्डन मेडिसिन मे भी अच्छी दखल रखता है । हमारे समय मे कालेज के बाद, छात्र अच्छे प्राइवेट प्रैक्टिसनर के यहां सीखने शाम को उनके क्लीनिक जाते थे । यही कारण है जब छोटी जगह मे, जहां एलोपैथिक चिकित्सक नही जाना चाहते थे, वहां इन्होंने क्लीनिक खोलकर, राहत पहुंचा कर;एक सफल चिकित्सक की भूमिका निभाई है । अभी यह आलेख आगे भी जारी रहेगा । क्रमशः

लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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