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ओवैसी ने क्यों कहा बाबरी शहीद हो गया अब हम और कोई दूसरी शहादत नहीं दे सकते ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
‘बाबरी शहीद हो गया, अब हम और कोई दूसरी शहादत नहीं दे सकते।’ हृदय से महसूस करें तो इस एक पंक्ति में कितना दर्द छुपा हुआ है। बाबरी का ढांचा गुंबद पर चढ़कर हथौरा लेकर ढ़ाह दिया गया। ज्ञानवापी के ऊपर बने ढांचे को भी ठीक उसी प्रकार ढ़ाहा जा रहा। अंतर सिर्फ इतना है कि आज हथौड़ा सीधे-सीधे कानून का चल रहा है। सर्वे का काम अपने अंजाम पर पहुंचने वाला है। ऐसा लग रहा जैसे फिर एक ढांचे पर किसी कोठारी बंधु ने पहला आघात कर दिया है। ढांचे की एक-एक खींचकर निकाल दी जाएगी। ठीक वैसे ही जैसे ईमान के जिस्म से एक-एक कतरा खून निकाला जा रहा हो।

हे इमान वालों! जिस दर्द को आज आप महसूस कर रहे हैं उस दर्द को हमने हजार साल तक महसूस किया है। हमारी कोई नियति नहीं कि आप भी उस दर्द को महसूस करो। हम तो सिर्फ इतना चाहते हैं कि जिस दर्द को हमने हजार साल महसूस किया है उस दर्द के हकीकत को बस आप समझें। इसे समझने में अगर तकलीफ हो रही है तो स्वीकारें कि इस तकलीफ को आपने अपने हाथों से चुना है। अयोध्या, काशी और मथुरा जैसे धाम को आपने ढांचा समझकर अतिक्रमण किया। जबकि यह सनातन की आत्मा है। इस धरती पर जब तक एक भी सनातन धर्मी बचा रहेगा, ये धाम सहस्त्रों विध्वंस के बाद भी आकार लेता रहेगा।

ओवैसी जी! आपके पास इस भारत देश ने सारे तकनीकी अधिकार दिए हुए हैं। आप स्वयं बैरिस्टर हैं। आपके पास बाबा साहब का लिखा हुआ संविधान है। धर्मनिरपेक्ष गांधी के सहयोग से विदेशी मुल्क के अंग्रेजों का दिया हुआ कानून है। बोलने, अपनी आवाज रखने के लिए तमाम मंच उपलब्ध है। तनिक सोच कर देखिए हजार साल में इस देश की आत्मा पर जो जुर्म हुआ है तब हमारे पास क्या था? इस देश ने सदियों सुल्तानी आतंक के साए में सांस लिया है।
दिल्ली को सल्तनत बनवाने वाले गजनबी और गोरी से लेकर औरंगजेब तक ने एक बार नहीं चार बार काशी को तोड़ा। हमने कभी बदला नहीं लिया। गजनबी से शुरू हुआ यह सिलसिला सुल्तानों ने बार-बार तुड़वाया, सनातन धर्मियों ने अपने सामर्थ्य से बार-बार बनवाया। औरंगजेब का तोड़ा हुआ भगवान महादेव ने चाह लिया है तो एक बार फिर बनेगा।

बावजूद इसके हम बड़े प्रमाणिकता से सारी कानूनी तकनीकियों की सीमा में काशी का यह अनुष्ठान कर रहे हैं। आज भी हमारे पास आपके विरुद्ध प्रतिशोध नहीं है। हम अपना अनुष्ठान बड़ा विनयवत् करना चाहते हैं। सर्वे भवंतु सुखिन: के हमारे भाव को देखिए। हमारे दर्द को समझिए।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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