नेहरू ने 25 साल बाद सुभाष चंद्र बोस के लिए वकालत की अपनी कोट क्यों पहनी ?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
रवीश कुमार ने कल कहा कि नेहरू ने 25 साल बाद सुभाष चंद्र बोस के लिए वकालत की अपनी कोट पहनी। केवल इतनी सी लाइन पर रवीश कुमार का पूरा प्राइमटाइम टिका हुआ रहा। जबकि सत्य है कि आईएनए के तीनों ब्रिगेडियर को फांसी की सजा मुकर्रर कर दी गई तो पूरे देश में सुभाष चंद्र बोस के समर्थन में एक जनआंदोलन खड़ा हो गया था।
शायद गुलाम भारत के इतिहास में भारत की सड़क इतने बड़े जन आंदोलन के कदमों का गवाह नहीं बनी होगी। कांग्रेस पशोपेश में आ गया। एक तरफ जहां नौसेना विद्रोह की भूमिका तैयार हो गई, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेश तीन मोर्चों पर काम कर रहा था-
पहला पूरे जन आंदोलन को कांग्रेस के नेतृत्व में भुनाने की पुरजोर कोशिश की गई और इसके लिए नेहरू ने वकालत की कोट पहन ली।
दूसरा कि तीनों ब्रिगेडियर के साथ कांग्रेस सरकार में मंत्री पद के नाम पर सौदा करने की कोशिश की गई। जिसमें से एक मुस्लिम ब्रिगेडियर को खरीदने में कांग्रेस सफल भी हुआ।
तीसरा नौसेना विद्रोह को अंग्रेजों के द्वारा दबाये जाने के साथ-साथ कांग्रेसियों ने भी पुरजोर कोशिश की। कोशिश इतनी की कि कांग्रेसियों की पूरी अंग्रेजियत ही बाहर आ गई थी।
अगर नेहरू को नेताजी की मदद करनी ही थी तो जब नेताजी आजादी का अभियान लिए पूर्वोत्तर भारत को आजाद कराते हुए दिल्ली के तरफ चले आ रहे थे, तब नेहरू ने मदद क्यों नहीं किया? संभवतया नेहरू की मजबूरी गांधी के अहिंसा के कारण रही होगी। तो फिर नेहरू ने वकालत के नाम पर दिखावा करने की कोशिश क्यों की? गांधी ने सुभाष चंद्र बोस के हिंसा का हवाला देकर नेहरू को रोकने की कोशिश क्यों नहीं की? गांधी इरविन समझौता में भगत सिंह को न बचाने के पॉलिसी सीक्वेंस को कांग्रेस ने बरकरार क्यों नहीं रखा?
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)