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काशी विश्वनाथ की भव्यता देख नौशाद क्यों रो पड़ा?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
औरंगजेब की बनाई ज्ञानवापी गुंबद में तहजीब अदा करने के लिए बंगाल से नौशाद आया।

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फिर तक वाले ने माइक सटाकर पूछा, “कैसा लग रहा है?” नौशाद रो पड़ा। इसलिए रो पड़ा कि उसने कहा, “काशी विश्वनाथ की भव्यता के सामने गुंबद नजर नहीं आ रहा।” उसने कहा कि पूरे जीवन में उसे इतना तकलीफ नहीं हुआ, जितना आज हुआ।

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हमारी भव्यता से उसके अंदर उत्पन्न ईर्ष्या महसूस करने की चीज है। हमारा धर्म स्थल तोड़कर उस पर गुंबद लगाकर तहजीब का स्टीकर कोई आतताई औरंगजेब आकर चिपका दे, तब वह बहुत खुश रहता है। लेकिन उस गुंबद को हम छुए भी ना और अलग से ही अपने सांस्कृतिक विरासत को भव्य करने लगें, तो हमारी यह आध्यात्मिक उन्नति नौशाद की रूह जला देती है।

अब हम क्या करें नौशाद भाई! हम पर तो वैसे भी असहिष्णु होने का पिछले 7 वर्षों में लेबल चिपका दिया गया है। तुम तो इंसानियत की तालीम बांटते हो। तो फिर हमारी उन्नति देखकर रोते क्यों हो? अगर हमारे मोदी योगी की तरफ देख रहे हो तो यह जान लो, जिस खजाने से काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बना है उस खजाने में हम लगातार पूरे भारत भर की मंदिरों के दान पेटी का धन उड़ेलते आ रहे हैं। दान तो छोड़ो अगर दक्षिणा भी कोई पुजारी अपनी जेब में रख ले तो पूरा भारत कोहराम काटने लगता है। और फिर काशी विश्वनाथ को कोरिडोर के नाम पर धन दिया गया है जो कि आध्यात्मिक नहीं इन्फ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट का कार्य है।

प्रिय नौशाद, तुम्हारे पास तो उम्मत की तलवार है। तुमने 57 देश कब्जा कर लिया है। धीरे-धीरे तो तुम आने वाले समय में पूरे विश्व पर कब्जा कर सकते हो। हम कहां जाएंगे? हमारा तो एकलौता भारत ही बस मेरे पास है। उसमें भी पूरब और पश्चिम से काट काट कर आधा से ज्यादा भारत हमने तहजीब के नाम पर लुटा दिए हैं। अब इतने में भी हम खुलकर सांस लेना चाहते हैं तो तुम रोने क्यों लगते हो याद है?

तुम जिस आक्रमणकारी वंशज की पीढ़ी से आते हो, उसे हमारे पूर्वजों ने जीवित रहने के लिए टैक्स दिया था। जजिया टैक्स। अगर वे टैक्स नहीं देते तो उनकी सांसे छिन जाती। काशी के जिस गुंबद के लिए आज तुम आंसू बहा रहे हो, वह गुंबद कभी काशी विश्वनाथ की अनुषंगिक मंदिर का गर्भगृह हुआ करता था। जिसका प्रमाण आज भी आधा मौजूद है, जमीन के ऊपर। हम जब जब भी काशी विश्वनाथ जाते हैं, मस्जिद परिसर में बैठा नंदी उस गर्भ गृह की ओर मुंह करके हमको याद दिलाता रहता है। लेकिन हम तो सदियों से खून का घूंट पीकर चुप हैं।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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