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प्लूटो को देखकर कलेजा धक्क से क्यो रह गया ?

-सुशोभित की कलम से-

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Positive India:Sushobhit:
14 जुलाई 2015 को जब न्यू हॉराइज़ॉन्स प्रोब ने पहली बार प्लूटो की तस्वीर खींचकर हमें भेजी तो यह देखकर हमारा कलेजा धक्क से रह गया कि उस पर इंसानों के दिल के जैसी दिखलाई देने वाली एक आकृति अंकित थी!

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यह सफ़ेद रंग का बड़ा-सा बर्फ़ीला दिल था। ऐसा लग रहा था, जैसे प्लूटो- जिसके बारे में हम बीती एक सदी से जानते थे और जिसे हम नौ प्लैनेट्स में जगह देने के बाद उस शीराज़े से निकाल बाहर कर चुके थे- अपना मायूस दिल हमें सौंप रहा हो। हमने एक ठंडी आह भरी। शायद हम जानते थे कि जब हम प्लूटो को पहली बार देखेंगे तो वो ऐसी कोई करामात ज़रूर करेगा।

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एक साइंस-पेज ने लिखा कि जब हमने प्लूटो को खोजा, 76 सालों तक उसको एक प्लैनेट कहकर पुकारा, फिर उससे उसका यह दर्ज़ा छीन लिया, फिर कहा कि हो ना हो यह एक प्लैनेट ही है लेकिन शायद एक बौना ग्रह, और इसके बाद फिर अपना मन बदल लिया, तब तक उसने सूर्य का एक चक्कर भी पूरा नहीं किया था! उसे अपना यह फेरा पूरा करने में कोई 248 साल लगते हैं।

वर्ष 1990 के आसपास वोयजर प्रोब प्लूटो के पास से होकर गुज़रा था, तो उसकी तस्वीर नहीं खींच सका था, क्योंकि प्लूटो उस समय घर पर नहीं था। वो अपनी ऑर्बिट में कहीं और था। वोयजर की दिलचस्पी यूरेनस और नेपच्यून में ज़्यादा थी। जब न्यू हॉराइज़ॉन्स ने प्लूटो की पहली तस्वीर खींची, तो हो सकता है उसने उसको दबी ज़ुबान से ये इत्तेला दी हो कि दोस्त, बुरा मत मानना, लेकिन अब हम तुमको एक प्लैनेट नहीं मानते। इस पर प्लूटो ने क्या प्रतिक्रिया दी होगी?

जिस साइंस-पेज ने ऊपर लिखी मालूमात दी थी, उसके कमेंट्स पढ़कर मैं मुस्करा दिया। किसी ने कहा, जैसे कि प्लूटो को इस बात से कोई फ़र्क़ पड़ता है कि हम उसको प्लैनेट मानते हैं या नहीं? किसी और ने कहा, प्लूटो को तो यह भी नहीं पता कि हम उसको प्लूटो कहते हैं! एक और ने कहा, हम चाहे जो समझें, वो अपना काम चुपचाप कर रहा है, और शायद उसको मालूम है कि इस यूनिवर्स में उसका क्या मुक़ाम है, जबकि हमको ही इसकी ख़बर नहीं।

फिर भी हम प्लूटो के लिए दु:खी होते हैं। शायद हम प्लूटो के बजाय ख़ुद के लिए मायूस होते हैं। हमें लगता है कि हमने जैसा सलूक़ प्लूटो के साथ किया, वैसा ही हमारे साथ भी कई मर्तबा हुआ है और तब हमें जैसी तकलीफ़ हुई थी, प्लूटो को भी वैसी होती होगी। इसके लिए हम उसके सामने थोड़ी शर्मिंदगी महसूस करते हैं। हम वैसा तसव्वुर करने लगते हैं कि हमने प्लूटो को न्योते पर बुलाकर ख़ारिज कर दिया। कि वो दस्तरख़्वान पर बैठा था, हमारा मेहमान था, और हमने कहा, माफ़ करना, लेकिन तुम इस जलसे का हिस्सा नहीं बन सकते, क्या तुम बाहर जाकर खड़े होओगे? प्लूटो के हाथ में रोटी का टुकड़ा जस का तस रह गया, उसका मुंह खुला रह गया। वह चुपचाप उठा और बाहर चला गया। उसने कोई शिक़वा नहीं किया। उसने तो नहीं कहा था कि उसको इस जलसे में शरीक़ किया जाए, हमीं ने उसको बुलाया था। हमीं ने उसको यह मान दिया था, फिर हमीं ने एक दिन अपना मन बदल लिया। इसमें उसका क़सूर नहीं था।

साल 1905 में पर्सीवल लोवेल ने सबसे पहले प्लूटो की मौजूदगी को महसूस किया था, अलबत्ता वो उसको अपनी दूरबीन से देख नहीं पाया था। ये पर्सीवल लोवेल निहायत ही ख़ब्ती आदमी थी। इसको लगता था कि मार्स पर नहरें हैं, और वो इंसानों जैसी किसी नस्ल ने बनाई हैं। वो अपनी इस बात पर ताज़िंदगी अड़ा रहा (जब इंसानों के भेजे अंतरिक्षयान मार्स पर पहुंचे तो उनको वहाँ पर नहरें नहीं मिलीं, अलबत्ता मार्स पर बर्फ़ बहुत थी)। इसी लोवेल ने साल 1905 में बतलाया कि हो ना हो, नेपच्यून के बाद एक और प्लैनेट ज़रूर है, मैं उसे देख नहीं सकता, लेकिन महसूस कर सकता हूँ।

साल 1930 में जब क्लायड टोम्बो ने प्लूटो को खोज निकाला (इत्तेफ़ाक़ की बात है कि तब वो लोवेल ऑब्ज़र्वेटरी से ही आकाश में नज़रें गड़ाए हुए था) तो लोवेल के नाम के इनिशियल्स के आधार पर प्लूटो को यह नाम दिया गया। उसे नौवां प्लैनेट पुकारा गया। ऐसा मालूम हुआ, जैसे हम वैसे किसी नौवें की तलाश के लिए बेचैन थे और उसका ज़रा-सा अहसास होते ही हम उसे इस ख़िताब से नवाज़ बैठे। यह हमारी जल्दबाज़ी थी, इसमें प्लूटो का कोई दोष नहीं था। हमें ऑड नम्बर्स का बड़ा चाव है। हम कहते हैं, ख़ुदा एक है, डायमेंशन तीन हैं, एलीमेंट्स पाँच हैं, म्यूज़िकल नोट्स सात हैं, और इसी तर्ज़ पर प्लैनेट नौ होने चाहिए।

हमने प्लूटो का सोलर-सिस्टम में स्वागत किया। तस्वीर पूरी हुई। एक फ़ैमिली पोर्ट्रेट बनकर तैयार हुआ, जिसमें सबसे बीच में आग का गोला था, उसके आसपास कमोबेश एक जैसे आकार की चार गेंदें, जिनमें से एक पर हमारा एक घर। फिर मार्स के बाद हमारे सोलर-सिस्टम का कूड़ेदान- एस्टेरॉइड बेल्ट, जिसकी सरहद के परे जुपिटर, जो प्लैनेट कम और एक फ़ेल्ड-स्टार ज़्यादा था, जो कि स्टार बनते-बनते रह गया था, क्योंकि उसके भीतर ईंधन तो भरपूर था लेकिन चिंगारी नहीं सुलग सकी थी। वो सैटर्न की तरह गैस-जॉयंट था। उसके बाद यूरेनस और नेपच्यून ये दो आइस-जायंट थे।

और सबसे आख़िर में एक नन्हा-सा प्लूटो- परिवार का सबसे छोटा, सबसे धीमा, सबसे दूर का सदस्य, और इसीलिए सबका दुलारा। फिर एक रोज़ किसी ने दबी ज़ुबान से कहा, ये इतना छोटा है कि इसको प्लैनेट कहना ठीक नहीं मालूम होता। फिर किसी ने कहा, जिस क्यूइपर बेल्ट में वो शुमार है, वहाँ तो उसके जैसे बहुतेरे हैं। कोई तीसरा बोल उठा, अगर प्लूटो को प्लैनेट कहेंगे तब तो उसके जैसे सौ और को कहना होगा। आख़िर हम किस-किस को अपने सोलर-सिस्टम में शुमार करेंगे? एक न्यूमेरोलॉजिकल वहशत में हम उस नन्हे-से पिंड को प्लैनेट कहकर पुकार बैठे थे, ये हमारी भूल थी। दरअस्ल, सोलर-सिस्टम में नौ नहीं आठ ही प्लैनेट थे।

तब प्लूटो को हमने, शायद थोड़े एम्बैरेसमेंट के साथ, घर छोड़कर जाने को कह दिया। उसको लगभग दिलासा देते हुए कहा, लेकिन क्यूइपर बेल्ट में सबसे बड़े तुम्हीं कहलाओगे। यह सुनकर प्लूटो मुस्कराया होगा?

जिसको हम अपनी ज़िंदगी से निकाल बाहर कर देते हैं, उसको कभी फूल, कभी तोहफ़ा, कभी कोई ख़िताब देकर हम उसको, और उससे बढ़कर ख़ुद को बहलाने की कोशिश करते हैं। क्योंकि यही हमारी फ़ितरत है। हम ऐसे ही हैं। ये हमारी ‘एन्थ्रोपोमोर्फ़ीक’ आदतें हैं।

14 जुलाई 2015 को जब न्यू हॉराइज़ॉन्स ने पहली बार हमें प्लूटो की तस्वीर दिखलाई तो हमें मायूसी तो हुई, शायद ये दिलासा भी मिला हो कि हमारी ख़ुशफ़हमियों का प्लूटो ने बुरा नहीं माना होगा। आख़िर उसका दिल बर्फ़ का जो बना हुआ था। बर्फ़ के दिलों को भी भला कोई दु:ख होता है?

14 जुलाई 2015 को प्लूटो ने हमें अपना सफ़ेद दिल दिखाकर हमको अपने गिल्ट से थोड़ा-सा बरी कर दिया। वो बुझकर बर्फ़ हो गया और हमारी गिनतियों को मुक़म्मल कर गया!

इसके लिए उसको शुक्रिया कहने से पहले हमको क्या 248 साल इंतज़ार करना चाहिए?

साभार:सुशोभित-(ये लेखक के अपने विचार है)

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