अफगानिस्तान से #मुसलमान भी जान बचा कर अपने बीवी-बच्चों सहित घर-बार छोड़ कर क्यों भाग रहा है ?
-अमिताभ राजी की कलम से-
Positive India:Amitabh Raji:
आज अफगानिस्तान से #मुसलमान भी जान बचा कर अपने बीवी-बच्चों सहित घर-बार छोड़ कर भाग रहा है, किससे बचकर भाग रहा है ये बात तो सब जानते हैं, लेकिन इस बात पर ध्यान बिरले ही दे पाते हैं कि आज की इन परिस्थितियों के पीछे ये आम सा दिखाई देने वाला मुसलमान भी कुछ कम दोषी नहीं है….
जिस राह को आज #सर्वधर्म_समभाव कहने वाले खुद को अधिक समझदार मानने वाले अदूरदर्शी लोग श्रेष्ठ बताते हैं उसकी असल परिणिति आम आदमी का यह पलायन ही है….
वो समय अब ज्यादा दूर नहीं है जब हिंदु-मुसलमान कुछ नहीं देखा जाएगा, सीधे-सीधे यह देखा जाएगा कि औरत को जमीन समझने वाले, तथा हर मामले में शरिया कानूनों को मानने वाले कौन हैं, जीने का हक सिर्फ उसे ही होगा, जो दूसरों का कत्ल करके अपनी जन्नत सुनिश्चित करने को अपना पहला फर्ज मान सकता हो….
और क्योंकि हर मुसलमान न तो व्यवहारिक रूप से औरत को कतई बेजान जमीन मानता, और न ही वो स्वाभाविक रूप से किसी अन्य इंसान की हत्या करने का आदि होता, सो तालिबान जैसे आतंकी संगठनों की नजर में वो भी अल्लाह की राह का रोडा ही समझा जाता है और इसलिए उनका अंजाम भी अन्य काफिरों से कोई अलग नहीं होता उनकी नजर में….
लेकिन काबिलेगौर बात ये भी है कि ये आम मुसलमान चलता भले ही न हो शरई कानूनों के तहत, लेकिन खुलकर इनकी खिलाफत भी कभी नहीं करता, हाल ही में जब शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने कुरान की 26 ऐसी आयतों को कुरान से हटाने की जनहित याचिका सुप्रिम कोर्ट में दायर की, जिनसे गैर-इस्लामी लोगों के प्रति नफरत और हिंसा को प्रोत्साहन मिलने की संभावना प्रतीत होती हैं, तब उनके खिलाफ जो मुस्लिम्स की पोस्ट की बाढ़ सोशल मीडिया पर देखने को मिली, उससे साफ जाहिर था कि आम मुसलमान, जिसे हम भाई कहते नहीं थकते वो भी कुरान को #एज_इट_इज ही देखना चाहता है भले ही वो अल्लाह में विश्वास न करने वालों को कत्ल करने को भी कहती हो….
कौन से मजहब को मानता है तालिबान…? कौन सी मजहबी किताब को फाॅलो करते हैं तालिबानी…? कहाँ से मिलती हैं उन्हें निर्दोष लोगों को कत्ल करने की प्रेरणा ये सब जानते हैं, फिर क्या वजह है कि हम उन चीजों का खुद तो कभी विरोध करते ही नहीं बल्कि उल्टे विरोध करने वाले के साथ गाली-गलौच पर उतारू हो जाते हैं…..
सो मेरे विचार में अफगानिस्तान की आज की अराजकता के पीछे पहले दोषी तो वो आम मुसलमान हैं जो आतंकवाद का कभी भी विरोध इसलिए नहीं करते क्योंकि वो उन्हें अपने भाई लगते हैं जबकि वो किसी के भाई नहीं सिर्फ जन्नत के लालची हैं, और दूसरे दोषी वो तथाकथित समझदार हिंदु हैं जो धर्म की परिभाषा न जानने के बावजूद “सब धर्म बराबर हैं” का राग अलापे रखते हैं, और तीसरे दोषी आज की स्थिति में वो समर्थ और सक्षम देश हैं जो शांति से वहाँ के कत्लेआम को आँखें बन्द करके देख रहे हैं और कुछ नहीं कर रहे….
देख सकें तो अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति प्रकृति के उस शाश्वत नियम को साबित कर रही है जिसमें अंत में शक्तिशाली की जीत (सरवाइवल आफ द फिटेस्ट) का जिक्र किया गया है, वैश्विक संस्थाएँ/सत्ताएँ अगर ऐसे ही मूकदर्शक बनी रही तो वो दिन अकल्पनीय नहीं जब धीरे-धीरे पहले सभी प्रकार के अहिंसक जीव/व्यक्ति इस दुनियाँ से विदा कर दिये जाएंगे और उसके बाद हिंसको में से भी सिर्फ वो बचेंगे जो हिंसा के मामले में किसी प्रकार का समझोता नहीं करते यानि कतई पक्के तैमूर लंग और ओरंगजेब टाइप के लोग जैसे #तालिबान…
साभार:अमिताभ राजी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)