ओलंपिक खेलों में भारत के लिए पहला पदक जीतने वाली मनु ने श्रीमद्भगवद्गीता को श्रेय क्यों दिया?
-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-
Positive India: Sarvesh Kumar Tiwari:
आज ओलंपिक खेलों में भारत के लिए पहला पदक जीतने वाली मनु ने कहा,” मेरी सफलता की राह में श्रीमद्भगवद्गीता का सहयोग रहा है। हर परिस्थिति में वही साहस और कर्म करते रहने की प्रेरणा देती रही है।”
जीवन की कठिन परिस्थितियों में गीता से अधिक सहायक संसार में कुछ भी नहीं। जीवन की भागदौड़ जितनी ही बढ़ती जायेगी, मनुष्य के लिए गीता उतनी ही आवश्यक होती जायेगी।
ठीक से सोचिए तो आज हर व्यक्ति स्वयं को कुरुक्षेत्र में ही खड़ा पाता है। हमने जीवन को युद्ध बना ही लिया है। आज के अर्जुन को हस्तिनापुर ही नहीं, पूरी दुनिया चाहिए। दिन भर में दस बार हमें सुनाया जाता है कि कर लो दुनिया मुट्ठी में। हमें बंगला, गाड़ी, बैंक बैलेंस, प्रॉपर्टी सबकुछ चाहिए और जल्द से जल्द चाहिए। हमें अपने सहकर्मी से पहले प्रमोशन चाहिए, उससे बेहतर जीवन चाहिए। इस कुरुक्षेत्र में हमारे सामने हमारा मोह खड़ा है, हमारा लोभ खड़ा है, हमारी ईर्ष्या खड़ी है।
जैसे कुरुक्षेत्र में अर्जुन के पास पराजित होने का ऑप्शन नहीं था, वैसे ही हमारे पास भी नहीं है। हमारी दशा तो यह है कि एक पराजय ही हमें स्वयं को समाप्त करने की ओर धकेल देती है। रोज ही अखबार में कोई न कोई घटना तो दिखती है न?
आज आपको कदम कदम पर जीत के लिए प्रेरित करने वाले लोग मिल जाएंगे। प्रेरित करना तो अब व्यवसाय हो गया है। लोग पैसा ले ले कर प्रेरित करने का काम करते हैं, और हम पैसा दे दे कर प्रेरित होते फिरते हैं। पर इस दौड़ में शायद ही कोई मिले जो आपको पराजय बर्दाश्त करना सिखाये।
फिर? क्या करें? इसका पूरे संसार में एक ही उत्तर है, श्रीमद्भगवद्गीता। उसी की शरण में जाना होगा। वही लड़ना सिखाएगी, वही जीतना सिखाएगी। वही हार जीत दोनों को समान भाव से स्वीकार करना सिखाएगी। भगवान श्रीकृष्ण ने कलियुग के लिए यह सबसे बड़ा उपहार दिया है।
वह बाइस वर्ष की खिलाड़ी जो आज राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ा रही है, उसके माता पिता को बधाई। उन्होंने अपनी बच्ची को धर्म की शिक्षा दी, गीता का ज्ञान दिया। अंततः संसार को गीता की ही शरण में जाना होगा।
बहुत बहुत बधाई मनु! आप जीवन के हर क्षेत्र में सफल हों।
साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।