मदनी ने दुनिया में इस्लाम की उपस्थिति हज़रत आदम के दौर से होने का दावा क्यो ठोका?
-राजकमल गोस्वामी की कलम से-
Positive India:Rajkamal Goswami:
इस्लाम के शुरुआती बरसों में मुसलमान यरूशलम की ओर मुँह करके नमाज़ पढ़ते थे जब तक कि क़ुरान में काबारुख़ हो कर नमाज़ पढ़ने का हुक्म नहीं आ गया ।
यहूदी और भी पहले से यरूशलम की ओर मुँह करके प्रार्थना करते थे और आज भी करते हैं । यरूशलम में भी सबसे पवित्र स्थल टेंपल माउंट है । जो यहूदी यरूशलम में रहते हैं वे टेम्पल माउंट की ओर अपनी प्रार्थना करते हैं ।
बाद में जब हज़रत उमर ने यरूशलम पर क़ब्ज़ा कर लिया तब तक चूँकि नमाज़ काबा रुख़ होकर पढ़ी जाने लगी थी इसलिए उन्होंने टेम्पल माउंट पर एक मस्जिद बनवाई जो अल अक़्सा के नाम से जानी जाती है और इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र मस्जिद है । इस्लाम की एक महत्वपूर्ण घटना शबे मेराज है जिस रात को पैग़ंबर को पहले मक्का से यरूशलम और फिर यरूशलम से बुराक़ पर बैठा कर रातोंरात अर्श पर अल्लाह से भेंट कर वापस मक्का पहुँचा दिया गया था । माना जाता है कि पंजवक़्ता नमाज़ों का हुक्म तभी जारी हुआ । जिस चट्टान से उन्हें ले जाया गया था वहाँ पर स्वर्ण गुम्बद वाला डोम ऑफ़ रॉक स्थित है ।
मुसलमानों का वैधानिक अधिकार यरूशलम पर केवल इस कारण ही हो गया कि कुछ वर्षों तक उन्होंने उस तरफ़ रुख़ कर के नमाज़ पढ़ी थी , वह उनका पहला क़िबला था ।
श्रीलंका और भारत के बीच स्थित रामसेतु को ईसाई और मुसलमान आदम का पुल ( Adam’s Bridge ) कहते हैं । एक कहानी पैदा की गई कि हज़रत आदम को जब स्वर्ग से निकाला गया तो उन्हें श्रीलंका में उतारा गया और वे इसी पुल को पार कर मुख्य भूमि में आए । आदम चूँकि पाश्चात्य धर्मों के मुताबिक़ सृष्टि के आदि पुरुष हैं और ईश्वर से सीधे संवाद स्थापित किए हुए हैं इसलिए पहले नबी भी माने जाते हैं । दुनिया के किसी ख़ित्ते पर वैधानिक दावा और क़ब्ज़ा करने के लिए इतना काफ़ी है । अभी कुछ ही समय पहले एक मौलवी साहब बद्रीनाथ मंदिर को बद्रुद्दीन ग़ाज़ी की मज़ार बता रहे थे ।
महमूद मदनी ने दुनिया के इस ख़ित्ते में इस्लाम की उपस्थिति हज़रत आदम के दौर से होने का दावा ठोक दिया है और इस लिहाज़ से इस्लाम को दुनिया का सबसे पुराना दीन भी बता दिया है । बाक़ी ग़ज़वा ए हिंद की हदीस तो बहुत पहले से मुजाहिद्दीन को पढ़ाई जा रही है ।
महफ़िल में मौजूद जैन मुनि ने तब भी अपना दावा पेश किया कि महाराज भरत पहले जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे और इन्हीं भरत के नाम से भारत देश का नाम चला आ रहा है । हिंदू साधु संत तो चुपचाप सुन कर चले आए गोया उन्हें साँप सूँघ गया हो ।
सुना है जहाँ एक बार निशान साहब गाड़ दिया जाता है वहाँ गुरुद्वारा बन कर ही रहता है । रामसेतु पर अब बस निशान साहब भी लगाना शेष है ।
साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)