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गाय को लेकर वामपंथी हिंदुओं की भावनाओं को समझने को क्यों नहीं तैयार हैं ?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India: Rajkamal Goswami:
गाय को लेकर बहुत से लोग जिनमें वामपंथी अग्रगण्य हैं हिंदुओं की भावनाओं को समझने को तत्पर नहीं प्रतीत हो रहे हैं ।

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हिंदू एक विशाल भौगोलिक क्षेत्र में विस्तृत समुदाय है जो बाली द्वीप तक फैला हुआ है । हिंदी पट्टी को अंग्रेजी में cow belt भी बोलते हैं । यहाँ गाय अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है । मुसलमान राजा हिंदू भावनाओं का सम्मान करते थे । मगर अंग्रेज पूरी तरह गोभक्षक थे । महर्षि दयानंद ने एक बार एक अंग्रेज से केवल इस कारण हाथ मिलाने से मना कर दिया था कि अंग्रेज गोभक्षक होते हैं ।

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बंगाल में अंग्रेज सबसे पहले आये और उन्होंने हिंदू धर्म की भावनाओं को ठेस पहुँचाने में कसर नहीं छोड़ी । बंगाली भद्र लोक अंग्रेजों से बहुत प्रभावित था । गोवध को ले कर बंगालियों के संस्कारों को बहुत हद तक अंग्रेजों ने समाप्त कर दिया । कम्युनिस्टों ने अपने राज में धार्मिक मूल्यों को ठोकर पर रखा । कभी वहाँ गाय की चर्बी लगे कारतूसों को ले कर ग़दर हो गया था किंतु आज सारे उत्तर भारत से तस्करी हो कर गायें बंगाल जाती हैं। और बंगलादेश तक पहुँचाई जाती हैं ।

मुग़ल बादशाह भी गाय को ले कर हिंदू प्रजा की भावनाओं को समझते थे बहादुर शाह ज़फ़र ने विद्रोह की कमान संभालते हुए सबसे पहले गोवध निषेध की ही घोषणा की थी । गोवध निषेध हिंदू मुस्लिम एकता की बुनियाद थी ।

हिंदी पट्टी में यह संभव नहीं है कि कोई हिंदू अपने सामने गाय कटते हुए देख कर बर्दाश्त कर ले । वह कुछ न कुछ अवश्य करेगा । सामर्थ्य नहीं होगी तो भीड़ इकट्ठी करेगा नहीं तो पुलिस बुलायेगा ।

रामचरितमानस में रावण द्वारा सीता को घसीट कर अपहृत करने का वर्णन करते समय तुलसी ने मर्मभेदी उपमा दी है जो गाय को ले कर हिंदू संवेदनाओं पर पर्याप्त प्रकाश डालती है ,

अधम निसाचर लीन्हें जाई !
जिमि मलेछ बस कपिला गाई !!

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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