लंपट वामियों कामियों सेक्युलरों की नौटंकी में क्यों नहीं फंस रहा बहुसंख्यक?
Positive India:
तनिष्क ऐड पर उठे विवाद से वामियों कामियों और सेक्युलरों द्वारा देश में एक चर्चा शुरू की गयी है कि समाज मे इतना “ज़हर” कहाँ से आया ??
देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं में “ज़हर” पीने की परंपरा तो रही है लेकिन समाज में जहर भरने की परंपरा का कंही जिक्र नहीं है। हिंदुओं की तो कोई ऐसी “किताब” भी नहीं जंहा से ज़हर लेकर परोसा जा सके।
खैर, जिसे ये जहर समझ रहे हैं, वो भरा हुआ आक्रोश है, जिसको दशकों सह सह कर हिंदुओं ने अपने अंदर पाला है। और ये आक्रोश आया अंकित सक्सेना व राहुल जैसों की लींचिंग और लव जिहाद में सीमा को जबरन समीना बनाने व समीना बनाने के बाद उससे बलात्कार (ख़ुद से शादी, फिर भाई से शादी, बाप से शादी, दोस्तों से शादी…) तो कभी ज़िंदा जला देना, कभी मार के चुपके से लाश बैग में बन्द करके फेंक देना, कभी एसिड फेंक देना, रेप के बाद एसिड फेंक कर तलाक देने से।
जो नीच हिन्दुओं के आक्रोश को जहर बता रहे है, वो टीवी डिबेटों मे बैठे मुल्लो और मुस्लिम सपोर्टर्स एंकर्स को एकतरफा जहर उगलता देख आनंद लेते रहे, तब न सोचे कि ऐसे प्रयोजित कार्यक्रम भी इस समाज में फैला रहे जहर द्वारा घृणा और नफरत को ही हवा दे रहे।
रेड लेबल चाय के विज्ञापन में एक हिन्दू पति पत्नी अपनी मुस्लिम पड़ोसी के घर थोड़ी देर रुकने से मना कर देते हैं। इसके एक और विज्ञापन में एक हिन्दू गणेश जी की मूर्ति लेने से सिर्फ इसलिए मना करता है क्योंकि मूर्तिकार मुस्लिम है। देश में दशकों से क्रियात्मक माधरजातों द्वारा नफरती हमेशा हिन्दुओं को ही दिखाया जाता है और शांतिदूत मुस्लिम और ये कहानी हर बार की है।
ये सब ऐसी ही खबरें व ऐड हैं जिनके कारण लोगों के भीतर भीतर गुबार भर रहा था जो अब लावा बन बाहर आ रहा है।
इन तथाकथित बुद्धिजिवियो कि परेशानी यही है कि हिंदू समाज अब सजग हो रहा है। वो अब इन लंपट वामियों कामियों सेक्युलरों की फालतू नौटंकी मे नहीं फंसता। मूलतः ये जनआक्रोश सेकुलरिज्म के नाम पर उनके साथ किये जा रहे भेद भाव का नतीजा है। एकतरफ़ा भाई चारे की नौटंकी न चलने से इनके पीठ पर लात पड़ रही तो आर्थिक आमदनी की दुकानें बंद होने से पेट पर लात पड़ रही।
साभार:शरद बाबू वाया सुजीत तिवारी-एफबी(ये लेखक के अपने विचार हैं)