खरगोन मे बुलडोज़र को लेकर लेफ्ट मीडिया भूखे भेड़िए की तरह क्यों खौंझ गया है?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
मध्य-प्रदेश के खरगोन को लेकर रिएक्शन पर चर्चा अर्थात बुलडोजर पर चर्चा ज्यादा हुई। एक्शन तो ठीक से मीडिया में आ ही ना सका। क्या क्या नहीं हुआ खरगोन में? हिन्दू परिवारों का पलायन हो रहा है। शिवम की तस्वीरें देखी आपने? उम्र ठीक से 20 वर्ष भी नहीं है। गलती सिर्फ इतनी कि रामनवमी की शोभायात्रा में शामिल हो गया था। आज जिस प्रकार अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा है, तस्वीर देखते ही कलेजा मुंह को आ जाता है।
मध्य-प्रदेश के खरगोन को लेकर बुलडोजर वाली कार्रवाई पर जिस प्रकार से लेफ्ट मीडिया ने नैरेट करने की कोशिश की, ताकि सीएम शिवराज सिंह को घेरा जा सके, लेकिन आज के वक्त में संभव नहीं हो पा रहा। बावजूद इसके कि बुलडोजर की फुटेज को शिवम की फुटेज से ज्यादा कवरेज प्राप्त हुई है।
2002 के गुजरात में जो कुछ भी हुआ, लेकिन मीडिया का नैरेशन केवल रिएक्शन को लेकर डेवलप किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को मुसलमानों का हत्यारा की तरह देशभर में मीडिया प्रोजेक्शन किया गया। ज्यूडिशियल जजमेंट में क्लीन चिट मिलने के बावजूद सीएम मोदी की छवि के साथ मीडिया ने जिस प्रकार से खेल खेला, उसका वर्षों तक कोई काट ना हो सका।
आज लेफ्ट मीडिया ठीक उसी प्रकार का नैरेशन तमाम वैसी ही कार्यवाही के खिलाफ डेवलप करना चाहता है। जो कि हो नहीं पा रहा है। लिहाजा लेफ्ट मीडिया भूखे भेड़िए की तरह खौंझ गया है। न्यूज़ 24 के संदीप चौधरी को बुलडोजर के सवाल पर मामूली से क्षेत्रीय दल के प्रवक्ता अजय आलोक ने जिस प्रकार से जवाब दिया, मानो भूखे भेड़िया की हलक में हाथ डालकर मांस का टुकड़ा छीन लिया हो। संदीप एकदम निरुत्तर सा।
बुलडोजर रिएक्शन की तमाम कवरेज-फुटेज के बावजूद यदि लेफ्ट मीडिया अपने सुपारी की साख नहीं बचा पा रहा तो कहीं ना कहीं अजय आलोक तथा तमाम ऐसे सोशल मीडिया यूजर्स हैं जो अच्छे-अच्छे डिज़ाइनर नैरेटिव की पोल पट्टी तत्काल खोल देते हैं।
जब सोशल प्लेटफॉर्म नहीं था तब मीडिया एक तरफा हुआ करता था। आज सोशल प्लेटफॉर्म ने मीडिया को बड़ा संतुलित कर दिया है। आज का मीडिया बंद मीडिया ना होकर खुला मीडिया है जिसने महज आठ से दस वर्षों में भारत को बदल कर रख दिया है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)