बुद्धि से राम कथा गाने वाले कुमार विश्वास अपने संत के किरदार मे कभी-कभी विवादित क्यो हो जाते है?
-विशाल झा की कलम से-
Positive India:Vishal Jha:
राम कथा वाचन मात्र से व्यक्ति पूज्य हो जाता है। यह सनातन समाज की उदारता है। राम का मानस लेकर जब कोई बैठ जाता है, सनातन के श्रोता उसे सुनने लग जाते हैं। वाचक के इतिहास और आचरण का विचार नहीं करते। बस केवल वाचन को सुनते चले जाते हैं। राम नाम की महिमा में लीन हो जाते हैं। एक बार को कालनेमि भी यदि भेष बदलकर राम नाम गाने लगे, तो षड्यंत्र समझते हुए भी राम काज का लक्ष्य लिए हनुमान तनिक ठहर जाते हैं। यही मर्यादा है।
कुमार विश्वास का ‘अपने अपने राम’ का आयोजन 6 फरवरी को पटना में होने वाला था। अपरिहार्य कारणों से कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। मैंने भी शरीक होने का विचार किया था। सत्य है कि कुमार विश्वास का सार्वजनिक आचरण मुझे कभी आकर्षित नहीं कर पाया। सदा से उनके शब्दों में मुझे बौद्धिकता का दंभ नजर आया। लेकिन दूसरी तरफ सत्य यह भी है कि जब बोलते हुए सुन रहा होता हूं, तो उसी क्षण स्किप नहीं कर पाता। बस सुनता चला जाता हूं। यही कुमार विश्वास की मजबूती है। यही उनकी बुद्धिमता है। यही कारण है उनके प्रति लोगों में आकर्षण का। लेकिन मैं कुमार विश्वास को तब तरजीह देने लगा, जब माता सीता को लेकर उनके द्वारा कही गई एक बात मुझे समझ में आई। कुमार विश्वास मानस कथा पर उस पक्ष में आते हैं जिस पक्ष के लोग माता सीता का परित्याग उत्तरकाण्ड मिथ्या मानते हैं। इस कारण वामपंथी नैरेटिव को बेहतरीन काउंटर मिलता है।
बुद्धि से राम कथा गाने वाले संत हैं कुमार विश्वास। जबकि रामकथा का गायन वाचन असल में हृदय का चीज है। आत्मा का चीज है। अध्यात्म की विषय वस्तु है। कुमार विश्वास भगवान राम के किरदार को सामाजिक पुरुष के तौर पर मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अपने कथा वाचन में विवेचित करने में सक्षम हो सकते हैं। किंतु ब्रह्म के रूप में भगवान राम की वैदिक विवेचना कुमार विश्वास के सामर्थ्य से बाहर की बात है। इस बिंदु पर कुमार विश्वास की बौद्धिकता ठहर जाती है। और दूसरी तरफ रुख कर लेती है, जिस तरफ सियासी विचारों को साधने में कौशल की बात होती है अथवा वामपंथियों को मुंहतोड़ जवाब देने की।
कुमार विश्वास तमाम सियासी विचारधाराओं के एक ऐसे बिंदु पर हमेशा टिके रहना चाहते हैं, जहां से वे लेफ्ट राइट और सेंटर तीनों बिंदुओं के लिए एक साथ स्वीकृत हो जाएं। बड़ी बात कि वह इसमें सफल भी हो जाते हैं। वे जब रामकथा सेमिनार लगाते हैं तो सामने कुर्सी पर वामपंथी भी बैठकर बड़ी आत्ममुग्धता से राम कथा सुनते हैं। सनातन समाज में कुमार विश्वास की इतनी भर सफलता मैं स्वीकार करता हूं। अपने इसी किरदार को साधने में कुमार विश्वास कभी कभार विवादित हो जाते हैं। साधने के इसी क्रम में मोदी और भाजपा के राम मंदिर की निष्ठा पर जानबूझकर तंज कसते हुए कुमार विश्वास ‘मंदिर वहीं बनायेंगे, तारीख नहीं बताएंगे’ वाले पक्ष में खड़े थे। खालिस्तान की गोद में बैठे केजरीवाल के सारे राज कुमार विश्वास किस प्रकार पचाए बैठे हैं, साधारण बात नहीं। इसलिए कुमार विश्वास में संत वाली अध्यात्मिक निष्ठा खोजना अथवा इसकी अपेक्षा भी रखना हमारी दुर्बलता होगी।
बागेश्वर धाम सरकार धीरेंद्र शास्त्री और कुमार विश्वास में यही बहुत बड़ा फर्क है। धीरेंद्र शास्त्री आध्यात्मिक निष्ठा से राम कथा गाते हैं। कुमार विश्वास बुद्धि से। इसलिए धीरेन्द्र शास्त्री जब भी कोई ऐसा बयान देते हैं, जो उन्हें नहीं देना चाहिए तो वे आकर खुलकर ‘गलती हो गई माफी मांगते हैं’ बोल जाते हैं। इसी कारण उनमें हिंदू राष्ट्र का पताका बुलंद करने का सामर्थ्य है। कुमार विश्वास बोलते भी अपने बुद्धि के शिकार होकर हैं और माफी भी अपने बौद्धिक उद्दंडता से सशर्त मांगते हैं। अपने बौद्धिकता का शिकार होने के कारण ही गुजरात में होने वाली कुमार विश्वास के कार्यक्रम रद्द हो गए। क्योंकि आयोजक स्वयं आरएसएस के सदस्य थे। कुल मिलाकर कुमार विश्वास के आचरण-अनुपालन का अपना एक जोन है। जिसकी सुरक्षा उनके स्वयं के जिम्मे है।
साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)